२२१/२१२१/१२२१/२१२
होता न माँ का तुझ पे जो अहसान आदमी
मिलते न राम -श्याम से भगवान आदमी।१।
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चरणों में माँ के तीर्थ हैं दुनिया जहान के
समझा नहीं है आज भी यह ज्ञान आदमी।२।
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माता बसी हो मन में तो शौतान मारकर
नारी का जग में करता है सम्मान आदमी।३।
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गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ
मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी।४।
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पढ़ने को माँ के रूप में केवल किताब इक
लिखने को लिख ले लाख तू दीवान आदमी।५।
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चाहे पिता के नाम का सिर पर है ताज पर
सँस्कार माँ के बनते हैं पहचान आदमी।६।
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आशीष माँ का तोड़ दे अभिषाप देव का
पाता न उस को पीड़ा दे उत्थान आदमी।७।
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दुख से जो माता रोती है देते हैं ईश दण्ड
लेता नहीं है फिर भी क्यों संज्ञान आदमी।८।
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मानव के नाम धरती पे केवल कलंक वो
करता नहीं है माँ का जो गुणगान आदमी।९।
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रंगत भरेगा कौन वो माँ की ठसक से जो
जिस के बिना यूँ सूना है दालान आदमी।१०।
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मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आद0 लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी सादर अभिवादन
बढ़िया माँ को समर्पित रचना है। बधाई स्वीकार कीजिये
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति , उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन के लिए आभार।
जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I
'गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ
मन माँ का पढ़के जब हुआ इन्सान आदमी'--इस शे`र का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है, क्योंकि "क़ुुुरआन" शब्द का वज़्न २२१ होता है,दूसरी बात दोनों मिसरों में रब्त भी नहीं है, देखिएगा I
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं।
'गीता कुरान बाँचना तब ही सफल समझ' इस मिसरे में सहीह शब्द 'क़ुरआन' है, अतः 'क़ुरआन गीता बाँचना तब ही सफल समझ' कर सकते हैं।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद
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