२१२२/२१२२/२१२
सत्य को कुछ उत्खनन तो कीजिए
दर्द होगा पर सहन तो कीजिए।१।
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देशहित में क्या भला है आप भी
कौम से हटकर मनन तो कीजिए।२।
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जब है मंदिर और मस्जिद में वही
आप दोनों में गमन तो कीजिए।३।
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सद्गुणों को जब बढ़ाना आ गया
क्यों कहें अवगुण दमन तो कीजिए।४।
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धर्म माटी को समझकर देश की
आप भी झुककर नमन तो कीजिए।५।
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चाहिए अधिकार तो कर्तव्य का
आप थोड़ा निर्वहन तो कीजिए।६।
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फिर उठाना दूसरे की आप सौं
पहले पूरा इक वचन तो कीजिए।७।
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नाग देवा कह के पूजेंगे सभी
आप थोड़ा विष-वमन तो कीजिए।८।
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हम कहेंगे आपको भी शिव यहाँ
भेद-भावो का शमन तो कीजिए।९।
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति व स्नेह के लिए आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर सृजन। बहुत बहुत बधाई।
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