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भेड़िये यूँ घूमते हैं झोपड़ी के सामने
डालते वहशी नज़र सब छोकरी के सामने
जेब खाली देखकर ये रेजगारी कह उठी
जेब खाली मत दिखाना तुम किसी के सामने
पेट बच्चा भर ना पाता बूढ़े से माँ बाप का
रोज मजमा जो लगाता घर गली के सामने
इस नशे में देखिये तो घर उजाड़े हैं बहुत
ये नशा दीवार है घर की ख़ुशी के सामने
शाम से ही सज रही मजबूर सी ये लडकियाँ
ज़ख्म ढक के आ गयीं हैं अब सभी के सामने
मिल ही जाती इक दवा तो यार मेरे गम की भी
मैं सदा से चुप ही रहा हूँ वैध जी के सामने
मौलिक व अप्रकाशित
गुमनाम पिथौरागढ़ी
Comment
आदरणीय गुमनाम भाई , आपकी ये ग़ज़ल ठीक ठीक है , मै भी आदरणीय सौरभ भाई जी की बात से सहमत हूँ , शायद कुछ समय और देना था आपको । गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
नमस्कार दोस्तो अच्छा लगा कि मुझसे और बेहतर की उम्मीद की जाती ,,,,,, सौरभ जी मैं आपकी उमीदों पर खरा उतरने की कोशिश करूंगा ........... छोकरी क्या युवा होती लड़की या टीन एजर के लिए प्रयोग नही कर सकते ,,,,,,,,,,,
गुमनाम भाई अच्छी गजल हुई है आदरणीय सौरभ जी कि बातों क संज्ञान ललें....
गुमनाम भाई, मैं आपकी कोईग़ज़ल एक अरसे बाद देख रहा हूँ. क्षमा कीजियेगा मैं स्वयं भी तनिक व्यस्त चल रहा हूँ.
आपकी इस ग़ज़ल में बहुत कुछ है जो मुझे इस ग़ज़ल को आपकी ग़ज़ल कहने से रोक रहा है. कई भाव स्पष्ट रूप से निखर के नहीं आ पाये है. अर्थात शेरों को और समय देना था. मतला में ’छोकरी’ शब्द का प्रयोग भी अटपटा लग रहा है. हिन्दी में या उर्दू में किसी युवती के लिए ’छोकरी’ कोई सम्माननीय शब्द नहीं माना जाता.
आपसे आपके लायक की प्रस्तुति की प्रतीक्षा रहेगी.
शुभेच्छाएँ
भेड़िये यूँ घूमते हैं झोपड़ी के सामने
डालते वहशी नज़र सब छोकरी के सामने … गहन भावों को समेटे इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर।
बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है आपको हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर आदरणीय.
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