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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

ग़ज़ल

2122  1212  22

सब दुआ का असर है क्या कहिए
बेबसी दर ब दर है क्या कहिए

याद करके तुझे महकता हूँ
फूल का तू शज़र  है क्या कहिए

की जमा मैंने दौलतें ताउम्र
साथ आखिर सिफर है क्या कहिए

खत लिखे थे जिसे कभी तुमने
अब भी वो बेखबर है क्या कहिए

है सुकूं ये कि मैं भी जिन्दा हूँ
ज़िन्दगी मुख़्तसर है क्या कहिए

खार राहों के कह रहे गुमनाम
अब तेरा घर ही घर है क्या कहिए

गुमनाम पिथौरागढ़ी
मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2014 at 9:50pm

है सुकूं ये कि मैं भी जिन्दा हूँ
ज़िन्दगी मुख़्तसर है क्या कहिए ----- बहुत खूब ! बधाइयाँ , आदरणीय गुमनाम भाई ।

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 17, 2014 at 11:35am

waah mitra waah

Comment by gumnaam pithoragarhi on November 16, 2014 at 9:00pm

dhanywaad dosto.......


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 16, 2014 at 8:05pm

खत लिखे थे जिसे कभी तुमने 
अब भी वो बेखबर है क्या कहिए 

है सुकूं ये कि मैं भी जिन्दा हूँ 
ज़िन्दगी मुख़्तसर है क्या कहिए -----बहुत खूब  

सुन्दर ग़ज़ल है ...हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 15, 2014 at 12:22pm

है सुकूं ये कि मैं भी जिन्दा हूँ
ज़िन्दगी मुख़्तसर है क्या कहिए

---------सुन्दर गजल हुयी है i

Comment by umesh katara on November 14, 2014 at 8:47pm

बढ़िया सर 

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