नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम
वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......
गत्य धुरी पर आगत नित नव
युग्म सतत, प्रति क्षण हो उत्सव,
सद्विचार सन्मार्ग नियामक
ऊर्ध्व करें मानवता मस्तक,
मिटे कलुषता का अँधियारा, हृदय ज्ञान से ज्योतिर्मय हो ......
नित्य प्रगति सोपान गढ़ें हम, वर्ष नवल शुभ मंगलमय हो ......
परिष्कार को प्रतिक्षण तत्पर
संकल्पित अभ्यास सतत कर,
नित्य ज्ञान हित सर्व समर्पित
क्षुद्र अहम् कर पूर्ण…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on December 31, 2013 at 11:30am — 43 Comments
पूर्व संध्या की हुई विदाई
भाव भीनी भीनी
राजा जी का महल जागा
नव वर्ष की कर अगवानी
*
मंदिर का बजा घण्टा
ले टीका चंदन का
धूप दीप कर्पूर की आरती
पूरी घाटी महकी चंदन सी
*
सूरज अलसाता जागा
बादलों का मोह न छोड़ा
रहा दिन सोया सोया
सांझ पर न पहरा कोई
*
कुछ बुँदों की टीप टाप
पवन में सुर न जागा
आधि दुनिया में हो-हल्ला
आधि दुनिया खोयी खोयी.
*
कहीं आदि कहीं अंत
कहीं मातम कहीं खुशी
दक्षिणी…
Added by coontee mukerji on December 30, 2013 at 10:30pm — 17 Comments
212221222122
पूर्ण कर अरमान, नूतन साल आया।
जाग रे इंसान, नूतन साल आया।
ख़ुशबुओं से तर हुईं बहती हवाएँ,
थम गए तूफान, नूतन साल आया।
गत भुलाकर खोल दे आगत के द्वारे,
छेड़ दे जय गान, नूतन साल आया।
कर विसर्जित अस्थियाँ गम के क्षणों की,
बाँटकर मुस्कान, नूतन साल आया।
मन ये तेरा अब किसी भी लोभ मद से,
हो न पाए म्लान, नूतन साल आया।
पूछता है रब कि तेरी, क्या रज़ा…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on December 30, 2013 at 10:00pm — 31 Comments
सूखे पत्तों के ढेर में
उम्मीद का
एक अंकुर फूटा
सूखे पत्ते मानो,
लाशें हैं
लाश हारे हुये लोगों की
लाश,
पराधीनता को किस्मत समझ
डर-डर के जीने वालों की
वो अंकुर है
भाग्योदय का
कीचड़ में उतर
परजीवियों को
साफ कर
समाज से
बीमारी हटाने वालों का
जो एक ज़र्रा था कल तक
आज
ज़माना उसकी चमक देख रहा है
अपनी नन्हीं आँखें खोल
मानो, कह रहा…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 30, 2013 at 10:52am — 32 Comments
Added by AVINASH S BAGDE on December 28, 2013 at 11:00pm — 27 Comments
नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव
आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव
धधक रही भठ्ठी में
महुवा महक रहा है
धनिया की हंसुली पर
सुनरा लहक रहा है
कारतूस की गंध
अभी तक नथुनों में है
रोजगार गारंटी अब तक
सपनों में है
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती
या, फिर हो डुमरांव
कब तक पानी पर तैरायें
काग़ज़ वाली नांव !
माहू से सरसों, गेहूं को
चलो बचाएं जी
नील गाय अरहर की बाली
क्यों…
ContinueAdded by Rana Pratap Singh on December 28, 2013 at 2:30pm — 40 Comments
Added by अजय कुमार सिंह on December 19, 2013 at 12:30pm — 12 Comments
मै जीना चाहती हूँ माँ !!
कैसे जियेगी तू मेरी बच्ची ?
समय के साथ ये सब
श्रद्धांजलि और प्रदर्शनों
के आडम्बर शांत हो जायेंगे
सब कुछ भूल, लग जायेंगे
सभी अपने अपने काम में
पर तेरा जीवन नही बदलेगा !!
जो बच गई
जीवन तेरा और भी नर्क हो जाएगा
तू जब भी निकलेगी घर से
तेरी तरफ उठेंगी सौकड़ों आँखे
तू भूलना भी चाहेगी तो
दिखा – दिखा उंगुली
लोग तुझे भूलने नही देंगे
जानना चाहेंगे सभी ये कि
कैसे हुआ ये…
Added by Meena Pathak on December 16, 2013 at 7:00pm — 36 Comments
ग़ज़ल – २१२२ १२१२ २२
इश्क़ न हो तो ये जहां भी क्या ,
गुलसितां क्या है कहकशां भी क्या |
पीर पिछले जनम के आशिक़ थे ,
यूँ ख़ुदा होता मेहरबां भी क्या |
औघड़ी फांक ले मसानों की ,
देख फिर ज़ीस्त का गुमां भी क्या |
बेल बूटे खिले हैं खंडर में ,
खूब पुरखों का है निशाँ भी क्या |
ख़ुशबू लोबान की हवा में है ,
ख़त्म हो जायेंगा धुआँ भी क्या |
माँ का आँचल जहां वहीँ जन्नत ,
ये जमीं क्या…
ContinueAdded by Abhinav Arun on December 16, 2013 at 3:30pm — 22 Comments
''मिश्रा जी, बेटी का बाप दुनिया का सबसे लाचार इंसान होता है. आपको कोई कमी नहीं, थोड़ी कृपा करें, मेरा उद्धार कर दें. बेटी सबकी होती है.' कहते-कहते दिवाकर जी रूआंसे हो गए । मिश्रा जी का दिल पसीज गया ।
अगले वर्ष घटक द्वार पर आए तो दिवाकर जी कह रहे थे
''अजी लड़के में क्या गुण नहीं है, सरकारी नौकर है. ठीक है हमें कुछ नहीं चाहिए, पर स्टेटस भी तो मेनटेन करना है. हाथी हाथ से थोड़े ना ठेला जाता है. चलिए 18 लाख में आपके लिए कनसिडर कर देते हैं और बरात का खर्चा-पानी दे दीजिएगा,…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on December 16, 2013 at 1:30pm — 24 Comments
मिसरों का वज़न - २१२२ १२१२ ११२/२२
रौशनी का भला बखान भी क्या !
दीप का लीजिये बयान भी, क्या.. ?!
वो बड़े लोग हैं, ज़रा तो समझ-- …
Added by Saurabh Pandey on December 16, 2013 at 11:00am — 54 Comments
2122 -1212- 112
कट ही जाये अगर ज़बान भी क्या
फिर मिलेगा हमें वो मान भी क्या
आदमीयत के मोल जो मिली हो
दोस्तो ऐसी कोई शान भी क्या
मेरे पैरों में आज पंख लगे
अब ज़मीं क्या ये आसमान भी क्या
छोड दें गर ज़मीन अपने लिये
ऐसे सपनों की फिर उड़ान भी क्या
और के काम आ सके न कभी
ऐसा इंसान का है ज्ञान भी क्या
भाग के गर मुसीबतों से कहीं
बच ही जाये तो ऐसी जान भी…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 10:00am — 40 Comments
रात का दूसरा पहर
दूर तक पसरा सन्नाटा और
गहरा कोहरा
टिमटिमाती स्ट्रीटलाइट
जो कोहरे के दम से
अपना दम खो चुकी है लगभग
कितनी सर्द लेहर लगती है
जैसे कोहरे की प्रेमिका
ठंडी हवा बन गीत गाती हो
झूम जाती हो
कभी कभी हल्के से
कोहरे को अपनी बाहों में ले
आगे बढ़ जाया करती
पर कोहरा नकचढ़ा बन वापस
अपनी जगह आ बैठता
ज़िद्दी कोहरा प्रेम से परे
बस अपने काम का मारा
सर्द रात में खुद का साम्राज्य
जमाये है हर…
Added by Priyanka singh on December 11, 2013 at 10:00pm — 41 Comments
कष्ट सहे जितने यहाँ,डाल समय की धूल|
अंत भला सो सब भला ,बीती बातें भूल||
विद्या वितरण से खुलें ,क्लिष्ट ज्ञान के राज|
कुशल तीर से ही सधे ,एक पंथ दो काज||
कृष्ण काग खादी पहन,भूला अपनी जात|
चार दिवस की चाँदनी,फिर अँधियारी रात||
जिसके दर पर रो रहा , वो है भाव विहीन|
फिर क्यों आगे भैंसके,बजा रहा तू बीन||
सफल करो उपकार में,जीवन के दिन चार|
अंधे की लाठी पकड़ ,सड़क करा दो पार||
…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 11, 2013 at 2:30pm — 33 Comments
उन्हें विरासत में मिली है सीख
कि देश एक नक्शा है कागज़ का
चार फोल्ड कर लो
तो रुमाल बन कर जेब में आ जाये
देश का सारा खजाना
उनके बटुवे में है
तभी तो कितनी फूली दीखती उनकी जेब
इसीलिए वे करते घोषणाएं
कि हमने तुम पर
उन लोगों के ज़रिये
खूब लुटाये पैसे
मुठ्ठियाँ भर-भर के
विडम्बना ये कि अविवेकी हम
पहचान नही पाए असली दाता को
उन्हें नाज़ है कि
त्याग और बलिदान का
सर्वाधिकार उनके पास सुरक्षित…
Added by anwar suhail on December 10, 2013 at 9:30pm — 9 Comments
'साहेब हमरी किडनी ख़राब है I इलाजु चलि रहा है I उनकी जगह हमरे लरिकऊ का नौकरी तो दिहेव मालिक पर अकेलु लरिका नोडा (नॉएडा) चला जाई तो हमार देखभाल कौन करी I इसै हियें लखनऊ माँ जगह दै देव साहेब , नहीं तो ई बुढ़िया मरि जाई I
'हाँ साहेब !" बेटे ने भी हाथ जोड़कर मिन्नत की I
' ठीक है, तुम लोग बाहर जाओ I मै कुछ करता हूँ I"
माँ-बेटे बाहर चले गए I 'थोड़ी देर में माँ को बाहर छोड़ कर बेटा फिर अन्दर आया I
'येस?' - साहेब ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा I
'सर, मेरी माँ…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 10, 2013 at 1:00pm — 32 Comments
वह भीगा आँचल
धूप
कल नहीं तो परसों, शायद
फिर आ जाएगी
अलगनी पर लटक रहे कपड़ों की सारी
भीगी सलवटें भी शायद सूख ही जाएँगी
पर तुम्हारा भीगा आँचल
और तुम अकेले में ...
उफ़ ...
तुमने न सही कुछ न कहा
थरथराते मौन ने कहा तो था
यह बर्फ़ीला फ़ैसला
दर्दीला
तुम्हारा न था
फिर क्यूँ तुम्हारी सुबकती कसक
कबूल कर जाती है…
ContinueAdded by vijay nikore on December 10, 2013 at 9:00am — 31 Comments
शास्त्री जी बहुत खुश हैं, नए घर का आज गृह प्रवेश समारोह है । विदेश से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट की पढ़ाई पूर्ण कर इकलौता बेटा भी कल घर पहुँच गया था ।
"पापा, गेस्ट आ गये हैं आप कहें तो डिनर स्टार्ट करवा दूँ"
"नहीं बेटा, कुछ विशिष्ट अतिथियों का मैं इन्तजार कर रहा हूँ पहले वो आ जाएँ फिर भोजन प्रारम्भ कराते हैं" शास्त्री जी ने बेटे को समझाया ।
"विशिष्ट अतिथि कौन पापा ?"
"इस घर को अपने श्रम और पसीने से बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर"
"उफ्फ ! आप…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 9, 2013 at 9:31pm — 43 Comments
“पापा ! टीचर ने कहा है कि फीस जमा करवा दो, नहीं तो इस बार नाम अवश्य काट दिया जाएगा।"
“अजी सुनते हो ! बनिया आज फिर पैसे मांगने आया था।”
“अरे बेटा ! कई दिन हो गए दवाई खत्म हुए, अब तो दर्द बहुत बढ़ता जा रहा है, आज तो दवाई ला दो।”
ये सभी आवाज़ें उसके मस्तिष्क पर हथोड़े की भाँति चोट कर रही थीँ।
मगर उसके दिल में एक नई कविता का खाका जन्म ले रहा था।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Ravi Prabhakar on December 9, 2013 at 7:00pm — 41 Comments
मैं रात का एक टुकड़ा हूँ
मैं रात का एक टुकड़ा हूँ
आवारा
भटक गया हूँ शहर की गलियारों में.
जिंदगी सिसक रही है जहाँ
दम घोटूँ
एक बच्चा हँसता हुआ निकलता है
बेफ़िक्र, अपने नाश्ते की तलाश में.
सहमा रह जाता हूँ मैं मटमैले कमरों में.
(2)
मैं क्या करूँ
सूरज निकलता है
भयभीत होता हूँ पतिव्रताओं की आरती से
मुँह छिपाये मैं छिप जाता हूँ
कभी धन्ना सेठों की तिज़ोरी में तो
कभी किसी सन्नारी के गजरों में.…
Added by coontee mukerji on December 9, 2013 at 6:07pm — 21 Comments
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