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कष्ट सहे जितने यहाँ,डाल समय की धूल|

अंत भला सो सब भला ,बीती बातें भूल||

 

विद्या वितरण से खुलें ,क्लिष्ट ज्ञान के राज|

कुशल तीर से ही सधे ,एक पंथ दो काज||

 

कृष्ण काग खादी पहन,भूला अपनी जात|

चार दिवस की चाँदनी,फिर अँधियारी रात||

 

जिसके दर पर रो रहा , वो है भाव विहीन|

फिर क्यों आगे भैंसके,बजा रहा तू बीन|| 

 

सफल करो उपकार में,जीवन के दिन चार|

अंधे की लाठी पकड़ ,सड़क करा दो पार||

        

विटप बिना जो नीर के ,जड़ से सूखा जाय|

सावन का अंधा उसे ,हरा हरा बतलाय||

 

बुरी बला लालच समझ ,मन का तुच्छ विकार|

जितनी चादर ढक सके ,उतने पैर पसार||

 

तू देखेगा और का ,भगवन तेरा हाल|

बस करके नेकी यहाँ ,दरिया में तू डाल||

 

 लाया क्या कुछ साथ तू ,जो ले जाए साथ|

  छूटेगा सब कुछ यहाँ ,जाना खाली हाथ|| 

 

 (पुच्छल)

ओबीओ की भीड़ में, रचना  खो ना जाय|

जैसे मुँह में ऊँट के ,जीरा मिल ना पाय||

**************************

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2013 at 12:15pm

सविता मिश्रा जी आपको दोहावली पसंद आई दिल से आभार आपका| 

Comment by savitamishra on December 14, 2013 at 6:35pm

bahut khubsurat .........


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2013 at 9:47am

आदरणीय विजय निकोरे जी आपको दोहावली पसंद आई हृदय से आभारी हूँ. 

Comment by vijay nikore on December 14, 2013 at 12:00am

इस सुन्दर दोहावली के लिए बधाई, आदरणीया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 13, 2013 at 11:44am

प्रिय प्राची आपकी प्रतिक्रिया पाकर दोहावली मुस्कुरा उठी, दिल से आभारी हूँ 

पूँछ ज़रूर वार कर रही है :))  इस पूँछ को थोडा सा मुलायम तो किया जाना बनता है... :))----अब तो ठंडी होकर पूरी अकड़ गई है ये पूँछ पर सीधी हो गई :))))))))हाहाहा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 12, 2013 at 10:36pm

बहुत सुन्दर दोहावली आदरणीया राजेश जी 

मज़ा आ गया पढ़ कर.... हार्दिक बधाई इस शानदार प्रस्तुति पर..

पूँछ ज़रूर वार कर रही है :))  इस पूँछ को थोडा सा मुलायम तो किया जाना बनता है... :))

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2013 at 8:50pm

बैद्यनाथ सारथी  जी दोहावली और उसके भाव आपको पसंद आये मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका.   

Comment by Saarthi Baidyanath on December 12, 2013 at 8:12pm

कृष्ण काग खादी पहन,भूला अपनी जात|

चार दिवस की चाँदनी,फिर अँधियारी रात||........क्या बात , क्या बात ! सारे दोहे बहुत अच्छे लगे ..भाव भी निराले हैं ..और फिर मुहावरे का प्रयोग भी उचित है !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 12, 2013 at 7:14pm

आदरणीया  कुंती जी कौन ऊँट कौन जीरा ?ना पूछें तो अच्छा है वरना ये पूँछ बस काटनी ही पड़ जायेगी :)))))))

चलो मेरे अपने इस पुच्छल का हाल जानने आ रहे हैं इस ख़ुशी को कायम रहने दो हाहाहा ....

Comment by coontee mukerji on December 12, 2013 at 7:01pm

(पुच्छल)

ओबीओ की भीड़ में, रचना  खो ना जाय|

जैसे मुँह में ऊँट के ,जीरा मिल ना पाय||.........क्या बात है...कौन ऊँट...कौन जीरा...........?///

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