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हाथी हाथ से नहीं ठेला जाता (लघुकथा)

''मिश्रा जी, बेटी का बाप दुनिया का सबसे लाचार इंसान होता है. आपको कोई कमी नहीं, थोड़ी कृपा करें, मेरा उद्धार कर दें. बेटी सबकी होती है.' कहते-कहते दिवाकर जी रूआंसे हो गए । मिश्रा जी का दिल पसीज गया ।

अगले वर्ष घटक द्वार पर आए तो दिवाकर जी कह रहे थे

''अजी लड़के में क्‍या गुण नहीं है, सरकारी नौकर है. ठीक है हमें कुछ नहीं चाहिए, पर स्‍टेटस भी तो मेनटेन करना है. हाथी हाथ से थोड़े ना ठेला जाता है. चलिए 18 लाख में आपके लिए कनसिडर कर देते हैं और बरात का खर्चा-पानी दे दीजिएगा, और क्‍या. बेटी आपकी है जैसे चाहे संवारें या एक जोड़ी कपड़े में विदा कर दें.. हमें कोई आपत्ति नहीं ''

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

राजेश 'मृदु'

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Comment by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 7:38pm

हमारे समाज का  चारित्रिक पतन और नारियों का अपमान  दिवाकर जैसे दोहरे चरित्र वाले लोगों ने कर रखा है ... बधाई आपको 

Comment by राजेश 'मृदु' on December 20, 2013 at 4:13pm

कैसा अद्भुत मेल है यह !  एक ही घटना दोनों जगह ! पर उसके बाद आप अधिक खुशकिस्‍मत रहे और मुझे अपने ही भाई की शादी से स्‍वयं को अलग करना पड़ा, शायद मिसफिट होने के कारण और आजतक मिसफिट ही रहा, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:50pm

आदरणीय राजेशजी, क्या कह दिया आपने !

मेरा अनुभव भी एक भाई के तौर पर ही अर्जित किया हुआ है. मुट्ठियाँ भींच-भींच कर रहा जाता था तब. लेकिन उस अशक्त छटपटाहट ने मुझे बहुत कुछ नियत-संयत होने की प्रेरणा दी थी. मेरे वृहद परिवार में किसी पुत्र के विवाह में यह घृणित परिपाटी अब नहीं अपनायी जाती. दहेज के नाम पर होने वाला कोई ढंग हमसभी ने एकदम से बन्द कर दिया है. ऐसा मैं किसी गर्व के वशीभूत नहीं, बल्कि हार्दिक नम्रता से निवेदित कर रहा हूँ. 

सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on December 20, 2013 at 1:25pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय, वैसे यह यथार्थ एक भाई के रूप में मेरा भी भोगा हुआ है, सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:21am

यह तो मेरा स्वयं का भोगा हुआ यथार्थ है. मेरे दायरे में दिवाकर जैसों की कमी नहीं है.

बहुत-बहुत बधाई..

Comment by राजेश 'मृदु' on December 19, 2013 at 1:21pm

आदरणीय शुभ्रांशु पांडेय जी एवं अन्‍नपूर्णा जी, आपका हार्दिक आभार, सादर

Comment by annapurna bajpai on December 17, 2013 at 10:49pm

आ0 राजेश जी सुंदर लघु कथा , अक्सर देखने मे आता है कि जब बेटी ब्याहनी होती है तब व्यक्ति का रवैया दूसरा होता है और जब बेटे कि बारी आती  है तेवर ही बदल जाते है । इस लघु कथा हेतु बधाई आपको । 

Comment by Shubhranshu Pandey on December 17, 2013 at 9:20pm

आदरणीय राजेश जी, 

दरअसल यह लघुकथा मेरी आंखों देखी हकीकत है, इसे कहानी के तौर पर बस प्रस्‍तुत करने का प्रयास भर मैंने किया है


अब आगे क्या कहा जाये? आपने व्यक्ति के दोनो रुपों को बहुत पास से देखा है..

सादर.

Comment by राजेश 'मृदु' on December 17, 2013 at 4:17pm

दरअसल यह लघुकथा मेरी आंखों देखी हकीकत है, इसे कहानी के तौर पर बस प्रस्‍तुत करने का प्रयास भर मैंने किया है

Comment by राजेश 'मृदु' on December 17, 2013 at 4:15pm

आप सबका हार्दिक आभार । लघुकथा पर यह मेरा प्रथम प्रयास था, अगली बार आप सबके द्वारा सुझाए गए तथ्‍यों को ध्‍यान में रख प्रस्‍तुति देने का प्रयास करूंगा, सादर

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