Added by Aakarshan Kumar Giri on April 30, 2011 at 1:00pm — 2 Comments
Added by Abhinav Arun on April 29, 2011 at 10:30pm — 9 Comments
Added by अमि तेष on April 29, 2011 at 9:49am — No Comments
Added by rajni chhabra on April 27, 2011 at 10:30pm — 5 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2011 at 10:20pm — 3 Comments
Added by AjAy Kumar Bohat on April 27, 2011 at 4:30pm — 4 Comments
Added by Veerendra Jain on April 27, 2011 at 12:15pm — 9 Comments
Added by Dheeraj on April 26, 2011 at 5:00pm — 2 Comments
Added by sanjiv verma 'salil' on April 26, 2011 at 2:00pm — 1 Comment
Added by rajni chhabra on April 26, 2011 at 1:00pm — 12 Comments
देवभूमि ऋषिकेश में दिनांक 23-24 अप्रैल को आयोजित विश्व भोजपुरी सम्मेलन के दसवें राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान भोजपुरी भाषा, संस्कृति व कला को सम्मान दिए जाने की जोरदार मांग की गई । दिनांक 24 अप्रैल को समापन समारोह के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में…
Added by देवDevकान्तKant पाण्डेयPandey on April 25, 2011 at 6:00pm — 1 Comment
Added by neeraj tripathi on April 25, 2011 at 3:30pm — 2 Comments
कालचक्र : आचार्य संदीप कुमार त्यागी
ओस कण भी दोस्तों अँगार हो गये ।
घास के तिनके सभी तलवार हो गये॥
रौंदते ही जो रहे फूलों को उम्र भर।
देखलो उनके सभी गुलखार हो गये॥
था यकीं जिनपर उन्हें सौ फीसदी कभी।
सब फरेबी देखलो मक्कार हो गये ॥
टाँकते थे जो हमारे आसमां पर चिंदियाँ।
चीथड़ों में आज वो सरकार हो गये॥
कीजियेगा क्या उन्हें देकर सलाम ।
आजकल वो दुश्मनों के यार हो…
ContinueAdded by आचार्य संदीप कुमार त्यागी on April 24, 2011 at 9:30pm — 1 Comment
Added by rajni chhabra on April 24, 2011 at 4:30pm — 7 Comments
सबसे पहले आपको बता दूं कि औरों की तरह मैं भी तकनीक की टेढ़ी नजर से दूर नहीं हूं। तकनीक के फायदे कई हैं तो नुकसान तथा फजीहत भी मुफ्त में मिलती हैं। वैसे मेरे पास न तो विरासत में मिली संपत्ति है और न ही मैंने इतनी अकूत संपत्ति जुटाई है, जिससे जिंदगी बड़े आराम से गुजरे। मेरा तो ऐसा हाल है, जैसे बिना सिर खपाए कुछ बनता ही नहीं, मगर पिछले दिनों से इस बात को लेकर चिंतित हूं कि मैं रातों-रात लखपति क्या, करोड़पति से अरबपति बनते जा रहा हूं। दरअसल, मैंने सोचा कि जब बड़े शहरों में तकनीक की खुमारी छाई हुई है…
ContinueAdded by rajkumar sahu on April 24, 2011 at 1:05am — No Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2011 at 12:48am — 4 Comments
Added by रौशन जसवाल विक्षिप्त on April 23, 2011 at 8:19pm — 3 Comments
दिल में चंद पल तन्मय रब रीझाना भी होता था।
हरिक आबाद घर में एक वीराना भी होता था।।
ि
तश्नगी से सहरा में तूं पी करते मर जाना भी होता था ।
हैरतअंगेज गजाला-गजाली सा याराना भी होता था ।।
वादाफर्मा को वादा निभाना भी होता था ।
दिले-नाशाद को जाके मनाना भी होता था ।।
आजकल गिरगिट की तरह रंग बदलते हैं लोग ।
पहले अपना मजहबीं इक बाना भी होता था।।
अब तो अजीजों का हमें सही पत्ता नहीं मिलता।
किसी जमाने में दुश्मन का भी ठिकाना भी होता था ।।
अब न…
ContinueAdded by nemichandpuniyachandan on April 23, 2011 at 3:30pm — No Comments
Added by Raj on April 23, 2011 at 11:22am — No Comments
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