आदरणीय साथिओ,
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.मुहतरम तेज वीर साहिब ,महा भारत के पत्रों के माध्यम से प्रदत्त विषय को परिभाषित करती सुंदर लघु कथा
के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ----
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
बहुत बढ़िया रचना ऐतिहासिक विषय और पात्रों को लेकर, बधाई आपको
हार्दिक आभार आदरणीय विनय कुमार जी।
बहुत कुछ कह कर भी कुछ नहीं कहा, बहुत बढ़िया रचना का सृजन किया है आदरणीय तेज वीर सिंह जी सर| सादर बधाई स्वीकार करें|
दुर्भाग्य
पिताजी का दफ्तर के कार्य से दिल्ली जाते समय ट्रेन में ह्रदय गति रुक जाने से देहांत हो जाने पर उनकी जगह १२वी पास बड़े लडके सुरेश को रजिस्ट्रार दफ्तर में नौकरी मिल गई | सामान्य जाति के होने के कारण उनके छोटे बेटे प्रकाश को एम् ए करने के बाद भी नौकरी नहीं मिली तो वह एक जोहरी की गद्दी पर नौकरी करने लगा किन्तु वहां से कुछ कम वेतन पर गुजारा नहीं हो पा रहा था | विवाह के पश्च्यात बड़े बेटे ने प्रथक रहने का निर्णय कर लिया | छोटे बेटे के पास माँ और बीबी-बच्चे की गृहस्थ का भार असहनीय होने पर घर में अशांति रहने लगी |
सामाजिक दायित्व निभाने के भार पर माँ से तकरार पर छोटे बेटे प्रकाश ने कहाँ, माँ बड़े भैया सक्षम होने पर भी सामाजिक दायित्वों का खर्चा नहीं उठाते | माँ बोली - बेटा मै तो जिसके पास रहूंगी उसी को कहूँगी न | इस पर प्रकाश ने कहाँ – मेरा पिताजी की म्रत्यु पर दुर्भाग्य से मेरा अवयस्क होना और तेरे को साथ रहने का दण्ड भुगतना ही मेरे भाग्य में लिखा है तो ठीक है |
असहाय माँ दुखी मन से सुनकर चुप हो गयी |
(मौलिक व अप्रकाशित)
हार्दिक आभार आपका श्री मोहमाद आरिफ साहब
वर्तमान स्वरूप में यह रचना लघुकथा नहीं है आ० लड़ीवाला जी, इसका आकर भले ही लघु हो लेकिन प्रस्तुतिकरण एक कहानी की तरह हैI कालखंड दोष के बारे में अवश्य पढ़ें ताकि भविष्य में ऐसी त्रुटी फिर से न हो. वैसे भी इसमें अनुत्तरित क्या है? बेटे ने खुद ही तो उत्तर दे दिया है:
//मेरा पिताजी की म्रत्यु पर दुर्भाग्य से मेरा अवयस्क होना और तेरे को साथ रहने का दण्ड भुगतना ही मेरे भाग्य में लिखा है तो ठीक है //
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