आदरणीय साथिओ,
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सुझाव के लिए धन्यवाद कोशिश करूँगी की कथा में संशोधन कर पाऊं।अमूल्य समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका
सच का आईना दिखाती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीया अर्चना दी।
जख़्मी सपने
आज कल बाहर के मुल्क जाने के रुझान ने हमारे शहर भी लपेटे में ले लिया है।
यही सुनने को मिल रहा है,कोई यहाँ रह कर,करे भी तो क्या पढ़ने के बाद भी ढंग की नौकरी न ही तनखाह मिलती है।
फलाईट पकड़ने को हर कोई तैयार खड़ा हैं और इस के लिए हर तरह की जायज नजायज कोशिश हो रही है।
बच्चे तो क्या आज कल माँ बाप भी यही चाहते हैं बच्चे किसी तरह बाहर के मुल्क सेट हो जाएँ। खासकर मध्य वर्गीय परिवार तो यही निशाना पाल रखा है ।
सुनीता को भी घर में अक्सर ऐसा ही सुनने को मिल रहा था, यहां तो कुछ नहीं ? सुनीता पढ़ने में होशियार थी, और दोस्तों के कहने पर उस ने भी आइलेट्स के बैंड प्राप्त कर रखे थे...।
मगर पढ़ने जाने के लिए तो पैसे भी चाहिए और वो भी डालरों में,जो उसके माँ बाप के पास नहीं था , मगर उसके माँ बाप भी चाहते कि सुनीता किसी तरह़़?
जब यहाँ का पैसा डालर में तब्दील होता है, रुपए की कीमत डालर के मुकाबले तो कुछ नहीं रह जाती।
रौशन ने इक दिन सुनीता के बाप बख्शीश से कहा, "देख तेरी लड़की बहुत होशियार और इस ने आइलेट्स भी किया है, हम आप की लड़की के लिए वीजा, पढ़ाई के लिए फीस के लिए पैसा लगाने को तैयार हैं। आप अपनी लड़की का रिश्ता मेरे बेटे से कर दो"
बख्शीश ने इक दम कहा, "पर ये कैसे हो सकता है?" आप अपनी लड़की को बाहर भेजना चाहते हैं, मगर इस लिए पैसा तो चाहिए।
बख्शीश ने घर आकर बात की, “ऐसा ही तो होता है, आजकल। “
घर वाली ने कहा, " कोई बात नहीं, सुनीता ने विवाह तो उसे बाहर जाने के लिए करना है."
" ये तो कागजी विवाह होगा, वहाँ जा कर ये कोई अच्छा सा लड़का देख विवाह कर लेगी। यही तो बस करना है ... उसको और सुनीता को बाहर भेजने के लिए।
"ऐसा उसको अपनी लड़की के लिए करना होगा" , बख्शीश हैरान होने लगा।
कुछ दिनों में ही विवाह हो गया, कोर्ट से भी इस का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया गया वीजा और फ्लाईट की टिकटें भी बुक हो गई. अचानक ही इक शाम पहले अचानक ही रौशन के घर से चीके आने लगी, दबी जुबान में हर कोई कह रहा था ये कैसे हो गया.......... ?
लड़के ने ऐसा क्यों किया? हर इक की जुबान पे था।
उसकी आत्म हत्या पर सभी लोग हैरान थे,इक ने कहा,”कहाँ जाना चाहता था,उसको
पर ऱौशन भेजना चाहता था,कह सके कि मेरा बेटा भी बाहर गया है और भेज दिया।“ ये खबर सुनीता के घर भी पहुंच गई और उसका सपना भी जख्मी हो चुका था। "मौलिक व अप्रकाशित
आदाब। बहुत ही गंभीर मुद्दे उठाये हैं आपने। बढ़िया कथानक और कथ्य। किसी से टंकण व व्याकरणिक त्रुटियाँँ सही करवा कर ही पोस्ट करना बेहतर होगा। जबरन विदेश भेजना और नाजायज़ स्वार्थपरक विवाह अरेंज करने की परिणति को बाख़ूबी उभारा है आपने। हार्दिक बधाई जनाब मोहन बेगोवाल साहिब।
जनाब मोहन बेगोवाल जी आदाब,अच्छी लघुकथा लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।
अच्छी लघुकथा है आदरणीय मोहन बेगोवाल जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. पहले वाली लघुकथा की तरह मुझे इसमें भी सम्पादन की आवश्यकता महसूस हो रही है. सादर.
जनाब मोहन बेगोवाल साहिब, अच्छी लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
असंख्य प्रश्न खड़े कर रही हैं यह कथा , सक्षम और असक्षम अभिभावक की चाह ऐसी क्यो ? विवाह जैसी संस्था का इतना दुरुपयोग ? बढिया कथा के लिये हार्दिक बधाई मोहन बेगोवेल जी
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय मोहन सरजी ।
पुनश्च
.....
सत्तासीन कबीले ने नई जीत का जश्न मनाया।विजित कबीले हार पर मंथन करने लगे।हार की वजहों में खानदान परस्ती पर ज्यादा उँगलियाँ उठीं।हुआ कि कबीले नये लोगों के सुपुर्द किये जायें।संगठन मजबूत हों।जन-आकांक्षा-आधारित कार्य प्राथमिकता में रहें।प्रतिनिधियों के भाषणों से लगता जैसे प्रदेश के अलावे कबीलों में भी जनतंत्र दस्तक देने लगा है।एक कबीले ने हार का ठीकरा समूह के सिर फोड़ा।सरदार बचा रहा।फिर दूसरे,
तीसरे कबीले यथाक्रम चलते रहे।सरदारनी वाले कबीले में ऐसी चर्चा होती ही न थी।अतः,वहाँ चुप्पी कायम रही।हाँ, सबसे पुराने पर लुप्तप्राय कबीले से पुरजोर आवाजें आतीं.....सरदार ने पराजय का जिम्मा अपने सिर लिया है।यह उनकी महानता है....कोई कहता कि हार हम सबकी है...।फिर हुआ कि समय की नजाकत को देखते हुए नेतृत्व-परिवर्तन लाजिमी है।तब आवाजें आने लगीं कि कुछ समय में नये नेतृत्व की पहचान कर ली जाय, फिर पुराने को छुट्टी दे दी जाय।फिर समवेत स्वर में लोग चिल्लाने लगे कि यदि वर्त्तमान नेतृत्व बदला,तो फिर कबीला तितर-बितर हो जायेगा।इस खानदान का बड़ा योगदान है इस कबीले के निर्माण में और प्रदेश की आजादी हासिल करने में भी।जनता के लोग मूक-बधिर-से थे।वे अपना निर्णय दे चुके थे।कुछ बच्चे शोर मचा रहे थे--
फिर वही बात,फिर वही बात!
तेरे घर अँधेरी रात, अँधेरी रात!!
उस कबीले के लोग कहते,"पुनश्च,पुनश्च दासोहं"।
"मौलिक व अमुद्ररित"
वाह और आह। तीनों क़बीलों और मूक-बधिरों आदि के बिम्बों में इतने कम शब्दों में जो तीर आपने समसामयिक राजनीतिक और लोक-अलोकतांत्रिक परिदृश्य सृजकों पर बाख़ूबी छोड़े हैं, उसकी जितनी प्रशंसा की जाये. कम है। वंशवाद और.वंशानुगत प्रतिभाओं योग्यताओं व संभावनाओं के सकारात्मक पक्षों की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए, मैं ऐसा मानता हूं। सुयोग्य नेताओं के अभाव में वंशवाद का सकारात्मक उपयोग मतदाताओं को कर लेना चाहिए जब तक कि लोकतांत्रिक विचारधारा वाले उच्च शिक्षित प्रशिक्षित नये नेता अधिक संख्या में तैयार न हो जायेंं हर.राजनीतिक दल में। सादर.
आभार भाई उस्मानीजी।
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