साथियों,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -1) अत्यधिक डाटा दबाव के कारण पृष्ठ जम्प आदि की शिकायत प्राप्त हो रही है जिसके कारण "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-100 (भाग -2) तैयार किया गया है, अनुरोध है कि कृपया भाग -1 में केवल टिप्पणियों को पोस्ट करें एवं अपनी ग़ज़ल भाग -2 में पोस्ट करें.....
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आद0 मोहन बेगोवाल जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का बेहतरीन प्रयास पर दिली मुबारकबाद कुबुल करें।
आदरणीय, गजल के लिए मेरी बधाई लीजिये।हाँ,दूसरे शेर की उला जरा संशय पूर्ण है,देखिएगा।
आदरणीय मोहन बोगवाल जी, खूबसूरत प्रयास, बहुत बहुत बधाई आपको।
'हद रहे शेख़ियों बिना' (पहली कोशिश) :
2122 1212 112/22
दास्तां वो सुना गया है मुझे
आसमां ही दिखा गया है मुझे।
भाषणों में फंसा नज़ाकत से
लोकसेवक डरा गया है मुझे।
दानवों के कुशासनों वाला
आबरू ले, रुला गया है मुझे।
ज़ुल्म सहना, दिखा-सिखा ज़ालिम
सब्र करना तो आ गया है मुझे।
हद रहे शेख़ियों बिना दोस्तों,
क़द समझना बता गया है मुझे।
(मौलिक व अप्रकाशित)
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
' हद रहे शेख़ियों बिना दोस्तों'
ये मिसरा बह्र में नहीं है,'दोस्तों' की जगह "यारो" कर लें ।
आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे अभ्यास का अवलोकन कर इस्लाह के लिए मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब। संशोधित मिसरा :
//हद रहे शेख़ियों बिना यारों//
आदरणीय उस्मानी साहब बहुत अच्छी गजल हुई दिली मुबारकबाद कुबूल करें
आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे अभ्यास का अवलोकन कर मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु मुहतरम जनाब डॉ. छोटेलाल सिंह साहिब।
मोहतरम जनाब शेख उस्मानी साहिब, इस कोशिश के लिए हार्दिक बधाई आपको
आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे अभ्यास का अवलोकन कर प्रोत्साहित करने के लिए मुहतरम जनाब शिज्जु 'शकूर' साहिब।
साथियों की बात से मैं भी सहमत हूँ कि ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है लेकिन अभी बात बन नहीं पाई है आ. शहज़ाद उस्मानी साहब।
आदाब। बहुत-बहुत शुक्रिया मेरे अभ्यास का अवलोकन करने के लिए मुहतरम जनाब दिनेश कुमार साहिब। इस महत्वपूर्ण अंक में सहभागिता करने की कोशिश में इतना ही बन पड़ा। आप सभी की रचनाओं के अध्ययन से सीखने की कोशिश कर रहा हूं। सादर।
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