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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।

पिछले 94 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-95

विषय - "वो भी क्या दिन थे"

आयोजन की अवधि- 14 सितम्बर 2018, दिन शुक्रवार से 15 सितम्बर 2018, दिन शनिवार की समाप्ति तक

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.

रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 सितम्बर' 2018, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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"रात से मुलाक़ात" - (अतुकान्त/छंदमुक्त) :

आज अर्द्धरात्रि में रात के महाउत्सव में
रात से हो गई कुछ 'राज़' की बात!
बोली -
वो भी क्या दिन थे,
जब बहुत सी रातें मय सौगातें
होती थीं सम-सुहागरातें
बेडशीट पर टूटती थी चूड़ियां
बेडरूम में गुंजन करतीं
दो तन-मन में रिश्तों को बुनती-गुनती!
शिक़वे-शिक़ायतें फ़रमाइशें सुन
दो दिलों में सपने बुनतीं!


रात से हो गई कुछ 'राज़' की बात!
बोली -
वो भी क्या दिन थे,
बिस्तर पर गूंजती थीं लोरियां
शिशु संग पति भी परीलोक में जाते
थकावट भूल जाते,
प्रेमपूर्वक यथावत दिन गुजारते!
तन-मन में धन को न लाते
जितनी चादर, उतने पैर फैलाते!
रिश्ते मधुर बनाते!


रात से हो गई कुछ 'राज़' की बात!
बोली -
वो भी क्या दिन थे,
सपरिवार कैरम, लूडो या खेले जाते ताश के पत्ते
दिन-रात न कटते टीवी, इंटरनेट, मोबाइल के बूते
छुट्टियां को, देसी खेलों को दानवों सा न खाते!
एक ही कक्ष में अपनों से दूर न हो पाते!
डायरी में शब्द बोलते, ख़तों में मुहब्बत घोलते!
एक-दूजे को मीठे सपने सुनाते!


रात से हो गई कुछ 'राज़' की बात!
बोली -
वो भी क्या दिन थे,
समय पर सोना, समय पर जागना
धन-दौलत या ओछी प्रतिस्पर्धा की
मृग-मरीचिकाओं के पीछे न भागना
सादा जीवन, उच्च विचार की रखते भावना!
विकास, ह्रास, त्रास, भड़ास, ग्रास, दिवास्वप्न,
रातों के जश्न, ज़ुल्म, रात भर जागना
न होता भयंकर डरावना!


रात से हो गई कुछ 'राज़' की बात!
बोली -
वो भी क्या दिन थे,
गजरे थे, मुजरे नहीं!
बातें-सौगातें थीं, लातें-घातें नहीं!
न अपराध, अपहरण, न कोई सांस्कृतिक प्रदूषण!
मनुष्य 'मानव' था और मशीन 'मशीन'
पर्यावरण अशुद्ध, मानव 'मशीन' नहीं!
बिन रात्रि-जागरण
जब रात 'रात' थी और दिन 'दिन'!


आज रात रोती क्यों है?
नित नयी समस्याएं बोती क्यों है?
रिश्तों को खोती क्यों है?
अपने आप से हो गई बात,
खो गई एक और 'रात'!


(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरणीय शेख शाहजाद उस्मानी साहब विषय को चरितार्थ करती बेहतरीन रचना के लिए बहुत बहुत बधाई

मेरी रचना पर उपस्थित होकर पहली व अहम प्रतिक्रिया रूप में अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब  डॉ. छोटे लाल सिंह साहिब।

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, प्रदत्त विषय पर अच्छी कविता हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

आपकी उपस्थिति और अनुमोदन हमारे लिए बहुत अहम और प्रोत्साहक है। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर  साहिब।

आ. भाई शेख शहजाद जी, सुंदर प्रस्तुति हुयी है । हार्दिक बधाई ।

रचना पर समय देकर मुझे प्रोत्साहित करने हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'  साहिबा।

आज रात रोती क्यों है?
नित नयी समस्याएं बोती क्यों है?
रिश्तों को खोती क्यों है?
अपने आप से हो गई बात,
खो गई एक और 'रात'!//  वाह    एक अलग अंदाज़ की  पेशकश   हार्दिक बधाई आदरणीय उस्मानी जी 

हमारी रचनाओं पर आप सुधीजन की उपस्थिति और यूं हमारी हौसला अफ़ज़ाई हमें लेखन करते रहने और अच्छा लिखने को प्रेरित करती है। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय  साहिबा।

वाह! वाह! वाह!  मज़ा आ गया, मज़ा आ गया । बहुत ही लाजवाब रचना । हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी ।

मेरी रचनाओं पर सदैव पर्याप्त समय देकर मर्म तक जाकर, विस्तृत टिपप्णियां कर अपने विचारों और इस्लाह से आपने मुझे प्रोत्साहित किया है। तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब मोह़म्मद आरिफ़  साहिब।

आदरणीय  शेख  शहजाद  भाई

बहुत सुंदर , पूरी बात कह दी इस रचना में, हार्दिक बधाई

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