आदरणीय साथिओ,
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सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय आशीष जी।आपकी लघुकथा का विषय और संदेश दोनों ही उत्तम हैं। आपकी लेखन शैली भी बेहतर है। मगर मेरे विचार से आपकी लघुकथा का कथ्य एक कहानी के लिये उचित है क्योंकि इसमें आपने तीन पीढ़ियों को समाहित करने का प्रयास किया है।जो कि लघुकथा के दायरे में माकूल नहीं लगता।सादर।
आदरणीय तेजवीर जी आपकी प्रतिक्रिया प्राप्त हुई, धन्यवाद। भविष्य में आपके सुझाव को ध्यान में रखकर लिखने का प्रयास करेंगे। यूं हम ऐसे विषयों पर नहीं लिखते, लेकिन जब हमने गोष्ठी में समीकरण विषय पर सामाजिक परिवेश से रची-बसी लघुकथायें पढ़ी तो लगा हमें भी कुछ अवश्य ही लिखना चाहिए और आप सभी के आशीर्वाद और शुभकामनाओं के फलस्वरूप ये रचना प्रस्तुत कर पाये। निवेदन है कि आपका मार्गदर्शन हमें आगे भी मिलता रहे। धन्यवाद सादर
जनाब आशीष जी आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती उम्दा लघुकथा हुई,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय जनाब समर कबीर साहब आदाब, अग्रिम मुआफी के साथ कहना चाहता हूं कि शायद आपके पास समय की कमी है, तभी आपने काॅपी पेस्ट जैसी संक्षिप्त प्रतिक्रिया व्यक्त की। फिर भी वक्त देने के लिए दिली शुक्रिया, दरअसल आप जैसे अनुभवी रचनाकारों से हम जैसे नवोदित लेखक बहुत कुछ सीखना, समझना चाहते हैं और दूरी के बावजूद ओबीओ जैसा प्रतिष्ठित मंच ही इस कमी को पूरा करता है। इसलिए हमने इतने ज्वलंत मुद्दे पर लिखने की कोशिश की है जिस पर अधिक-से-अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त होना चाहिए थीं, लेकिन लगता है पाठकों/साहित्यकारों/लेखकों को समझ नहीं आई। ओबीओ टीम को लघुकथा को विलोपित करने का पूरा अधिकार एवं स्वतंत्रता है। लघुकथा पर सभी तरह की प्रतिक्रियाओं का स्वागत है जो सार्वजनिक रूप से प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे हैं वे हमें पर्सनल नं. पर भी अपने विचारों से अवगत करा सकते हैं। धन्यवाद
प्रदत्त विषय को इस रचना के माध्यम से परिभाषित करने का सद्प्रयास हुआ है आ० आशीष श्रीवास्तव जी. लेकिन यह रचना लघुकथा न होकर लघु-कथा बन गई है क्योंकि लघुकथा में कोई अंतराल अथवा एक से अधिक कालखंड नहीं होता है. यदि कालखंड एक से अधिक हो तो उन्हें अतीतावलोकन (फ्लैश बैक) तकनीक से लिखना होता है. मैं आ० तेजवीर सिंह जी के कथन से भी सहमत हूँ कि यह कथानक लघुकथा की बजाय कहानी के लिए अधिक मुफीद है. बहरहाल, आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकार करें.
आदरणीय मंच संचालक, प्रधानसंपादक महोदय, आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया और नई जानकारी प्रदान करने के लिए बहुत-बहुत आभार। ये रचना हमने सीखने और नया करने के उद्देश्य से ही आपके समक्ष प्रेषित की। लघुकथा को लिखने का तरीका भी मालूम होने से मन हर्षित है। आप सभी के आशीर्वाद और शुभकामनाओं का सदैव आकांक्षी। सादर धन्यवाद
आदरणीय आशीष जी, आपकी कथा को संशोधित रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ। शायद आपको यह प्रयास पसन्द आये। सादर।
सही-ग़लत के चक्रव्यूह में उलझी हुई सीमा अपने अतीत में खोयी हुई थी।
उस वक़्त उसकी बेटी गौरी आठ साल की थी। पति के असमय गुज़र जाने पर सीमा ने अकेले ही गौरी को पढ़ाया-लिखाया और फिर एक अध्यापक से शादी कर दी। जल्द ही नन्दिनी का जन्म हुआ और सीमा नानी बन गयी। उस वक़्त सीमा की ख़ुशी देखते ही बनती थी। मगर यह अच्छा समय ज़्यादा दिन टिका नहीं।
गौरी के पति को सड़क दुर्घटना ने अपाहिज बना दिया और गौरी को नौकरी करने पर मजबूर। मगर बुरा समय आना अभी बाकी था।
कुछ ही समय बीता कि गौरी ने अपने बॉस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना शुरू कर दिया। जब उसके लाचार पति ने उसे रोका तो उसने साफ़ कह दिया, ‘‘मुझे अपने तरीके से जीने का पूरा हक है।’’ पति अपनी लाचारी से अधिक अपनी गरीबी और अपमान से आहत था।
गौरी पर परिवार के संस्कारों की दुहाई का भी कोई असर नहीं हुआ। अंततः उसने अपने पति के साथ रहने से इंकार कर दिया। और नन्दिनी?
नन्दिनी के रूप में आठ साल की बेटी एक बार फिर सीमा के पास थी। ईश्वर की इच्छा और परिवार का मान रखते हुए जिस सीमा ने अपनी बेटी को पाल-पोस कर बड़ा करने में अपना पूरा जीवन लगा दिया, आख़िर उसे क्या मिला?
“तैन्तीस साल पहले ये समीकरण मेरी समझ क्यों नहीं आया?’’ सही-ग़लत के चक्रव्यूह में उलझी हुई सीमा मन ही मन सोच रही थी।
स्वयं को संभालते हुए सीमा ने अपनी नातिन का चेहरा देखा और अन्ततः गौरी से पूछ ही लिया, ‘‘ये मेरे पश्चाताप के लिए मुझे सौंपे जा रही है या फिर मेरी भूल सुधार के लिए?’’
“इसका जवाब तो वही बड़ी होकर देगी।” महंगी कार में बैठते हुए गौरी ने कहा। हतप्रभ सीमा के सामने अब नयी चुनौतियाँ मौजूद थीं।
सम्मानीय श्री महेन्द्र कुमार जी सादर प्रणाम। इतनी विनम्रता से आपने इतना अच्छा प्रयास किया। मन गद्गद् हो गया। आप सब कैसे मनोभावों को इतने अच्छी तरह से शब्दों में पिरो लेते हैं कि रचना प्रभावोत्पक बन जाती है। हम भी सीखने को आतुर/लालायित हैं। कृपया अपना मार्गदर्शन बनाये रखियेगा। हम भी समाज को बहुत ही सार्थक, प्रेरणास्पद और झकझोर देने वाली रचनाएं प्रस्तुत कर सकते हैं, पर क्या करें आप सभी की तरह असरदार तरीके से लिख नहीं पाते। अब ओबीओ का मंच मिला है तो मन उत्साहित है और आप सभी को पढ़कर थोड़ा-बहुत जो ज्ञान है उसका उपयोग कर लिख देते हैं लेकिन आपने जो रचना को मान दिया है वह आपके बड़प्पन को दर्शाता है। हम आभारी हैं आपके जो आपने हमारे ही शब्दों से ऐसी अनोखी रचना कर डाली। पता नहीं हम ऐसा कब कर पायेंगे। हम अधिक तो कुछ कर नहीं सकते परंतु सुधरी हुई रचना अवश्य ही आपको उपहार में दे सकते हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद जो आपने कीमती समय देकर प्रस्तुत रचना को समझा बल्कि नये सिरे से प्रस्तुत भी किया। सादर
यह परिमार्जित रचना आपके लिए भाई महेंद्र कुमार जी का उपहार है भाई जी।
बहुत ही बेहतरीन प्रयास । हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय आशीष श्रीवास्तव जी ।
आक्रोश
लीना ने घबराते हुए पति निलेश को बताया ,”सुनिए निन्नी अभी तक कोचिंग से नहीं आयी है।”
“अरे आ जाएगी ,मोबइल लगायो उसे । “निलेश बोले ।
“अरे कब से लगा रही हूँ , बंद आ रहा है ।”लीना बोली ।
“उसकी किसी सहेली से पूछो ।”पति बोले ।
लीना के पूछने पर सहेली ने बताया “आज वो कोचिंग ही नहीं आयी ।”
ये सुन कर निलेश भी घबरा गए ।और फिर चौंक कर घर के नौकर राजू के बारे में पूछते हुए बोले “वो राजू कहाँ है ,मुझे लेने दफ़्तर भी नहीं आया ।”
“वो तो ४ बजे मुझे किट्टी पार्टी में छोड़ कर बोला “राशन लेकर साहब को लेने चला जाऊँगा ।”लीना ने बताया ।
“कही वो ही तो अपनी निन्नी को भगा कर नहीं ले गया ।”निलेश सर थाम कर बैठते हुए बोले ।
“ये क्या कह रहे है आप ।”लीना रुआंसी होकर बोली ।
“तुम्हें अपनी पार्टी से फ़ुर्सत मिले तब तो घर पर ध्यान दो , गाँव से राजू को आगे पढ़ाने का लालच देकर ले आयी ,यहाँ उसे नौकर बना कर रख लिया ।”निलेश बोले ।
“खाना ,रहने की जगह सब तो उसे मिल रही थी ,उसके पिताजी को रुपए भी तो भिजवाती थी ,इन सबका ये सिला दिया ।”लीना रोते हुए बोली ।
“पर उसे तो पढ़ना था न । “निलेश बोले ।
“एक बार दिलवाई तो थी परीक्षा पास ही कहाँ हो पाया ।”लीना बोली
“तुम घर के काम के चक्कर में उसे पढ़ने ही कहा देती थी ।तुमने अपना समीकरण लगाया ,उसने अपने आक्रोश में अपना समीकरण लगा लिया ।”निलेश बोले ।
“अब उठो ,चल कर पुलिस की मदद से बेटी को खोजे ,अभी ज़्यादा देर नहीं हुई है ।”लीना बोली ।
मौलिक व अप्रकाशित
लघुकथा में कुछ कमी सी लग रही है। आदरणीय गुरुजन इस पर प्रकाश डालेंगे। आपके प्रयास हेतु बधाई।
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