For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जरा ज़ुल्फें हटाओ....(ग़ज़ल)

जरा ज़ुल्फें हटाओ चाँद का दीदार मैं कर लूँ !
बस्ल की रात है तुमसे जरा सा प्यार मैं कर लूँ !!

बड़ी शोखी लिए बैठा हूँ यूँ तो अपने दामन में !
इजाजत हो अगरतो इनको हदके पार मैंकरलूँ!!

मुआलिज है तू दर्दे दिल का ये अग़यार कहते हैं!
हरीमे यार में खुद को जरा बीमार मैं कर लूँ !!

यूँ ही बैठे रहें इकदूजे के आगोश में शबभर !
जमाना देख ना पाये कोई दीवार मैं कर लूँ !!

तुझे लेकर के बाहों में लब-ए-शीरीं को मैं चूमूँ !
कि होके बेगरज़ अब इकनहीं सौबार मैं कर लूँ!!

दानिस्ता दिल जला के यूँ तेरा पर्दानशीं होना !
है तीर-ए-नीमकश इसको जिगर के पार मैं कर लूँ !!

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 750

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on July 1, 2018 at 7:29pm

आदरणीय रक्षिता जी, सुन्दर ग़ज़ल के प्रयास के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें. ये ग़ज़ल १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ की बह्र में हैं. चुनांचे नीचे के शेर पे गौर कीजिएगा. क्या ये बह्र में हैं?

दानिस्ता दिल जला के यूँ तेरा पर्दानशीं होना !
है तीर-ए-नीमकश इसको जिगर के पार मैं कर लूँ !!

Comment by Samar kabeer on July 1, 2018 at 5:55pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब,आप ओबीओ के पुराने सदस्य होने के नाते ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि इतनी मुख़्तसर टिप्पणी देना ओबीओ की परिपाटी नहीं है,उम्मीद है आप मेरी बात पर ध्यान अवश्य देंगे ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 1, 2018 at 5:18pm

हार्दिक बधाई ..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 30, 2018 at 1:52pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीया...भाव बहुतखूब हैं..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 29, 2018 at 4:14pm

आदरणीया रक्षिता सिंह जी इस मनभावन ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Samar kabeer on June 29, 2018 at 3:12pm

मुहतरमा रक्षिता सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

कुछ बातें आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा ।

'बस्ल की रात हे तुमसे ज़रा सा प्यार में कर लूँ'

सबसे पहली बात इस मिसरे में 'बस्ल'शब्द ग़लत है,सहीह शब्द "वस्ल" है, दूसरी बात,'वस्ल' शब्द से मिसरे की लय बाधित हो रही है,इस मिसरे को यों कर सकती हैं :-

'मिलन की रात है तुमसे ज़रा सा प्यार मैं कर लूँ'

दूसरे शैर के ऊला में 'शौखी' एक वचन है, इसलिये सानी मिसरे में 'इनको' की जगह "इसको" करना उचित होगा ।

5वें शैर के सानी मिसरे में 'अब' की जगह "ये" कर लें ।

कुछ शब्दों के बीच स्पेस नहीं है देखियेगा ।

Comment by Neelam Upadhyaya on June 29, 2018 at 1:03pm

आदरणीया रक्षिता जी, नमस्कार । खूबसूरत गजल कि प्रस्तुति के हार्दिक बधाई ।

 

Comment by Shyam Narain Verma on June 29, 2018 at 11:23am
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Amit Kumar "Amit" on June 28, 2018 at 5:52pm
आदरणीय रक्षिता जी शानदार एक शानदार दिल में उतरने वाली गज़ल कहने के लिए बहुत-बहुत बधाइयां
Comment by रक्षिता सिंह on June 28, 2018 at 5:25pm

आदरणीय शहज़ाद जी नमस्कार,
आपकी शिर्कत व हौसला अफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
10 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय नीलेश जी सादर अभिवादन आपका बहुत शुक्रिया आपने वक़्त निकाला मतला   उड़ने की ख़्वाहिशों…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया अभी ज़िंदा हैं मेरी हसरतें भी तुम्हारी…"
11 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,,, मुझे तो स्कॉच और भजिये याद आए... बाकी सब मिथ्याचार है. 😁😁😁😁😁"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया  टपकने जा रही है छत वो…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय दयाराम जी मुशायरे में सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आपको"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश नूर जीआपको बारिशों से जाने क्या-क्या याद आ गया। चाय, काग़ज़ की कश्ती, बदन की कसमसाहट…"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, मुशायरे के आग़ाज़ के लिए हार्दिक बधाई, शेष आदरणीय नीलेश 'नूर'…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"ग़ज़ल — 1222 1222 122 मुझे वो झुग्गियों से याद आयाउसे कुछ आँधियों से याद आया बहुत कमजोर…"
15 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"अभी समर सर द्वारा व्हाट्स एप पर संज्ञान में लाया गया कि अहद की मात्रा 21 होती है अत: उस मिसरे को…"
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service