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आहत संवेदनायें (लघुकथा)

एक किसान, एक सैनिक से यूं रूबरू हुआ :
"तुम्हारे पास क्या-क्या है?"
"मेरे पास हैं बंदूक, तोप, गोला-बारूद और रक्षा और युद्ध के आधुनिक साजो-सामान! अब तू बता, तेरे पास क्या-क्या है?"
"हमरे पास तो बाबू गैंती-फावड़े, बीज-खाद, और खेती-किसानी के पुराने और आधुनिक साजो-सामान हैं! वैसे अपनी चीज़ों के नाम और रूप भले अलग-अलग हैं, पर काम और नसीब तो अपन दोनों के एक जैसे लगते हैं!"
"हां, दोनों ही अपनी मां के लिए अपना-अपना ख़ून-पसीना और परिवार दांव पर लगा देते हैं!"
"पर बाबू अपनी इस धरती मां के कपूत तो सब गड़बड़ कर देते हैं न!"
किसान की बात सुनकर सैनिक ने कहा - "हां, कपूत ही तो सपूतों पर हावी हैं!"
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 28, 2018 at 9:17pm

इस रचना पर भी समय देकर अनुमोदन और हौसला अफ़ज़ाई के साथ विचार साझा करने के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on January 28, 2018 at 2:49pm

आपकी अच्छी लघुकथा देश में आज की सच्चाई सामने ले आई । हार्दिक बधाई, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी।

Comment by Mohammed Arif on January 27, 2018 at 11:13am

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                   किसान और सैनिक ही देश के असली नायक होते हैं । लेकिन किसानों की कृषि प्रधान देश में क्या स्थिति है पूरा देश जानता है । बहुत अच्छा कटाक्ष । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on January 26, 2018 at 8:44pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।आज के हालात पर ज़बरदस्त कटाक्ष।जय जवान और जय किसान का नारा देने वाले देश में एक नया तीसरा गुट तैयार हो रहा है, जो इन दोनों पर भारी पड़ रहा है। बेहतरीन लघुकथा।

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