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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-33 (विषय: नीड़ की ओर)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 32 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव  में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-33
विषय: "नीड़ की ओर"
अवधि : 29-12-2017 से 30-12-2017 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी 

गोष्ठी में आपकी रचनाओं से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया उम्दा भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। इस रचना की ख़ूबी यह है कि इसमें ख़ूबसूरत अतीत भी है नीड़ का और समसामयिकता भी! पीड़ा है और विचारोत्तेजक संदेश भी। दूसरी बात यह कि इस रचना में कुछ वाक्यांश कहे-अनकहे में बहुत कुछ कह रहे हैं, जैसे कि ://इतना पुराना गाना कैसे याद आ गया //; //“यस आई डूI” //;

//गोरों से भी दस कदम आगे वाले गोरे बन गए होI//; //एक पाकिस्तानी के  पिता के साथ आज कल बाउजी की गहरी छन  रही हैI//; // घर की याद आ रही है I//;  व

//आप उन लोगों के साथ ज्यादा दोस्तियाँ मत बढाओ बाउजीI कई बार इन लोगों के धोखे....// शीर्षक प्रभावित नहीं कर सका,  हालांकि अच्छा है!

सादर।

कथा के मर्म पर सटीक नज़र रखकर टिपण्णी करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी ...शीर्षक  को लेकर आपकी टिपण्णी से मै भी सहमत हूँ     

आदरणीय प्रतिभा पाण्डेय जी। विषय पर कथा उम्दा बनी है, परसतुतिकरण और संवाद कथा को और प्रभावी बनाते है। हालांकिहालांकि अतीत और वर्तमान दोनों के बीच का भेद थोड़ा स्पष्ट नही है लेकिन फिर भी बढ़िया रचना के लिये दिल से बधाई देना तो बनता है आदरणीया।

हार्दिक आभार आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी 

“ डज़ एनी बडी नो हिम ?’’ गोरा पुलिस वाला कड़क आवाज़ में पूछ रहा थाI

कुछ दिन से वो बाऊजी से खुलकर बात करने...

आ. प्रतिभा मैम, मुझे लगता है कि लघुकथा यदि कुछ इस तरह से शुरु होती तो अतीत और वर्तमान का भेद जो थोड़ा अस्पष्ट है, स्पष्ट रहता. साथ ही, कालखण्ड दोष की जो सम्भावना बन रही है, वो भी न रहती. थोड़े से संपादन से या कमी दूर हो जाएगी. इसके इतर, यह एक सशक्त लघुकथा है. पढ़ते हुए अच्छा लगा. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

 

 जिस तरह से आप कह रहे हैं पहले मैंने भी कथा का आरम्भ इसी तरह करने के बारे में सोचा था पर बनते बनते फॉर्मेट दूसरा बन गया ..वैसे कालखंड दोष जैसा यहाँ कुछ नहीं है कथा एक ही समय में घटित हो रही है सड़क के किनारे घायल मोहम्मद के पास.  .कथा पर समय देकर अपनी विस्तृत टिपण्णी से इसका मान बढ़ने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र जी  

प्रा नही "भ्रा"

हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।दिल को बहुत करीब से छूकर निकलती हुई लाजवाब लघुकथा।वैसे भी आपकी लघुकथाओं का शिल्प और भाषा का स्तर उच्च कोटि का और प्रशंसनीय होता है,जो पाठक को मंत्रमुग्ध कर देता है।

 इस उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी 

मुझे पंजाबी नहीं आती .पाण्डे साहब से पूछा  था  उन्होंने भ्रा ही कहा होगा मैंने प्रा सुना,  आपकी विस्तृत टिपण्णी  की प्रतीक्षा रहेगी   

विषय बहुत बढ़िया है और आपने उसे बखूबी निभाया है, बस प्रस्तुतीकरण में थोड़ी और मेहनत की जरुरत थी जिससे उलझन नहीं होती| बहरहाल आपकी रचनाएँ पढ़ना बहुत सुखद होता है, बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए

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