आदरणीय साथिओ,
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धन्यवाद् आ ० शशि जी |
धन्यवाद् आदरणीया बरखा जी |
क्या गजब का प्रवाह है लघुकथा में मोहतरमा कल्पना भट्ट जी, मज़ा आ गया. एक पढ़े लिखे बेरोजगार की मनोदशा का जिस बखूबी से मनोवैज्ञानिक चित्रण किया है वह दखते ही बनता है.
//“ऐसा सुख मेरी माँ को कब मिलेगा भगवान?”//
यह पंच लाइन सीधे मन में उतर जाने वाली है. कथ्य, शिल्प और सम्प्रेष्ण सभी उच्चकोटि के हैं. सबसे बड़ी बात ये कि सन्देश एकदम शीशे की तरह साफ है और रचना प्रदत्त विषय के साथ पोर पूरा न्याय कर रह है. आपकी यह लघुकथा इस आयोजन की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है, मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें
जो भी हूँ ओ बी ओ से ही सीख रहीं हूँ | आपके आशीर्वचन मिलना मेरे लिए सौभाग्य की बात है | सादर नमन सर |
बहुत सुंदर रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको
धन्यवाद् आदरणीय विनय सर |
कल्पना क्या कहूँ इस रचना के लिए सर जी सब कह चुके. बधाई बधाई
आदरणीय ताई धन्य हुई मैं आज , मेरे सर के आशीर्वचन प्राप्त हुए बड़ी ताई के आशीर्वचन प्राप्त हुए , ताई कोई शब्द नहीं हैं मेरे पास |
धन्यवाद् आदरणीय शहजाद भाई |
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