For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-28 (विषय: सुख)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले  27 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, वह सच में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उनपर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-28
विषय: "सुख"
अवधि : 30-07-2017 से 31-07-2017 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि भी लिखे/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
5. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
6. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
7. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
8. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
9. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
10. गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI    
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 15905

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीया नयना आरती जी आदाब, बेहतरीन , बेजोड़ और हृदय स्पर्शी लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
बहुत सम्वेदन शील कथ्य है आ०नयना ताई!भूख से बड़ा कोई दुख नहीं है,और भूख मिटने से बढ़कर कोई सुख नहीं।
रचना पर थोड़ा और समय देंगी तो और निखर आएगी। लघुकथा में दोहराव की गुंजाइश नहीं होती। इस कथा के लिए ह्रदय से बधाई।
बेहद मार्मिक कथा दुःख में जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई भूख को समेटे हुये बहुत बढ़िया कथा के लिए हार्दिक बधाई नयना जी

हार्दिक बधाई आदरणीय नयना जी, बेहतरीन प्रस्तुति। बाल मन की सहजता को मृत्यु जैसे वीभत्स प्रसंग से जोड़ कर, बहुत सुंदर लघुकथा लिखी गयी है।

अतिसंवेदनशील कथा हैअंतिम पंक्ति सब कुछ कह गई बधाई आद० नयना कानिटकर जी ।
बहुत बढ़िया रचना आदरणीय नयना जी ,बहुत २बधाई इस रचना के लिए
मोहतरमा नयना जी आदाब,अच्छी लगी आपकी लघुकथा,बधाई स्वीकार करें ।

आपकी लघुकथा के बारे में आदरणीय अशोक भाटीया जी की पुस्‍तक 'समकालीन हिन्‍दी लघुकथा' के पेज नंबर 236 पर लिखित बात को दोहराना चाहता हूं- 'हिन्‍दी की अधिसंख्‍या लघुकथाएं एक-सी कथ्‍य-रूढ़ि में उलझ गई हैं और फार्मूलाबद्ध लेखन की शिकार हो गई हैं। अपेक्षित दृष्‍टि के अभाव में कई बार रचना में व्‍याप्‍त तनाव अंत में चटखारे में बदलकर रह जाता है। दंगे में दादा के मरने पर मुआवजा मिला, तो पोता कहता है- 'बापू, तुम कब मरोगे?' ऐसी दर्जनों लघुकथाएं एक दूसरे की नकल पर लिख डाली गयी हैं। पर इने पीछे क्‍या दृष्‍टि है? दृष्‍टि-विपन्‍नता अनिवार्य रूप से अभिव्‍यक्‍ित-क्षमता को भोथरा बना देती है। ऐसी रचनाओं में रेडीमेड यथार्थ मिलता है, दो मिनट-नूडल्‍ज़ की तरह 'चटखारेदार'। आशा है आप मेरा इशारा समझ गई होंगी । आभार

आ.  रवी दादा आपकी टिप्प्णी से मुझे थोडी निराशा हुई है. यह कथानक  या रचना किसी पुर्वलिखित कथ्य को लेकर नहीं रची गई हैं.मैने अभी साल-दो साल से ही इस विधा को लिखना आरंभ किया है और यह क्षण उस वक्त उभरा जब मेरे आफ़िस मे काम करने वाले प्यून ने उसके घर के पास हुए हादसे मे उस बच्चे व उसके परिवार के लिए एक दिन का भोजन मुहैया कराने के लिए मुझसे सहायता  राशी की माँग की. द्रवित मन से उसकी सहायता के बाद ऐसा लगा की भुखा इंसान शायद एक दिन के भर पेट खाने मे ही अपना सुख ढूँढता है और ये रचना लिख गई, जिसे किसी चटखारे के साथ दो मिनट में लिखना और वो नकल के रुप मे सामने आए  ऐसी  विचार धारा मेरी नहीं है. इसके पिछे की मेरी दृष्टि यही थी कि सुख कि परिभाषा बहुत व्यापक है. कोई अथाह संपत्ति के बाद भी सुखी नही है तो कोई एक बार के भर पेट खाने में भी खुश है.
एक से कथानक पर जैसे वृद्धो का अपमान, यौनाचार, स्त्रीवाद आदि पर मैने अनेक रचनाएँ पढी है वे सब की सब नकल की श्रेणी में तो नहीं आती. इसमे आप से बहस करने का मेरा कतई उदेश्य नहीं हैं.  
आप लेखन मे मुझसे वरिष्ठ है . करत करत अभ्यास मै भी अपनी रचना को परिष्कृत करने का प्रयास करुँगी जिससे उसमे उपजा भोथरा पन दूर कर सकू. सादर आभार

आदरणीय ताई, मेरा संकेत सिर्फ विषय के पुन: पुन: दोहराव की और है  । एक ही प्रकार के कथानक व निश्‍चित कथ्‍य से नीरसता उपजती है । आपकी प्रतिभा पर मेरे समेत मंच पर किसी काे कोई संदेह नहीं है । मेरा आशय किसी भी प्रकार से आपको दुख पहुंचाना कदापि नहीं है, किसी भी प्रकार से आपको आहत किया उसके लिए करबद्ध क्षमा प्रार्थी हूं ।

अरे! नहीं रवी दादा करबद्ध क्षमा जैसी कोई बात ही नही हैं. कथानक के दोहराव की बात पर मैं आपसे सहमत हूँ किंतु उस दोहराव से बचने के लिए ही यहाँ मैने बालमन की मनोस्थिती दर्शाने की कोशिश की थी किंतु शायद असफ़ल रहीं. आप मुझे बडी बहन का दर्जा देते है फिर माफ़ी वाली बात ना करे. मुझे तो दुख इस बात का नहीं कि आपने दोहराव की बात उठाई बल्कि दुखी इस बात से हूँ कि अंतिम २-३ वाक्यों पर काम करने के लिए आप से सुझाव अपेक्षित था ताकि अंत दृढ रुप से सामने आ सके. आप के विचारो की अहमियत मैं  समझती  हूँ. 

चुभता हुआ सत्य आदरणीया,मार्मिक कथा हेतु आपको बधाई!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
20 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सादर, सुन्दर गीत रचा है आपने. प्रदत्त विषय पर. हार्दिक बधाई स्वीकारें.…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी सादर, मौसम के सुखद बदलाव के असर को भिन्न-भिन्न कोण…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . धर्म
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service