For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गज़ल- कैसे कहूँ मै आप से मुझको गिला नहीं

देखिए ग़ज़ल हुई क्या ??

*221 2121 1221 212*

कैसे कहूँ मैं आपसे मुझको गिला नहीं ।
चेहरे से क्यूँ नकाब अभी तक उठा नहीं ।।

भूखा किसान शाख से लटका हुआ मिला ।।
शायद था उसके पास कोई रास्ता नहीं ।।

नेता को चुन रहे हैं वही जात पाँत पर ।
जिसने कहा था जात मेरा फ़लसफ़ा नहीं ।।

मजबूरियों के नाम पे बिकता है आदमी ।
तेरे दयार में तो कोई रहनुमा नहीं ।।

मुझसे मेरा ज़मीर नहीं माँगिये हुजूर ।
इसकी ही वज़ह से मैं अभी तक मरा नहीं ।।

हालात आजमा के गए मुझको बार बार ।
रहमत खुदा की थी कि नज़र से गिरा नहीं ।।

उठती हैं बेटियां भी यहां रोज कार से ।
मत बोलिये कि बाप यहां गमज़दा नहीं ।।

उलझा दिया चमन है ये मजहब के नाम पर ।
रोटी से हुक्मरां का कोई वास्ता नहीं ।।

चेहरे को देखकर वो मुकरते हैं इस तरह ।
जैसे हो उनके पास कोई आईना नहीं ।।

कोटे से कर रहे हैं सियासत वो देश में ।
पैनी सी ज़ेहन पर है कोई तबसरा नहीं ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on June 27, 2017 at 5:58pm
आपको भी ईद की मुबारकबाद ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 27, 2017 at 4:47pm
आ0 कबीर सर को नमन । आपके आये तो मुझे बहुत खुशी मिली । आपकी प्रतीक्षा कर रहा था । बिना गुरु जग सूना लग रहा था । ईद पर हार्दिक मुबारकवाद ।
Comment by Samar kabeer on June 27, 2017 at 3:29pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास बहुत उम्दा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

दूसरा शैर देखिये :-
'भूखा किसान शाख़ से लटका हुआ मिला
शायद था उसके पास कोई रास्ता नहीं'

इस शैर में मफ़हूम साफ़ नहीं हो रहा है,और रदीफ़ से इंसाफ़ भी नहीं हुआ,इसे इस तरह किया जा सकता है :-
"भूखे किसान करते हैं ये कह के ख़ुदकुशी
इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं"
तीसरे शैर में "ज़ात"स्त्रीलिंग है ।
4थे शैर का सानी मिसरा यूँ कर स्करे हैं :-
'तेरे दियार में क्या कोई रहनुमा नहीं'
सही शब्द 'दियार' है ।
7वें शैर में मफ़हूम स्पष्ट नहीं हो रहा है ।
8वें शैर में भी मफ़हूम साफ़ नहीं,ऊला मिसरा यूँ किया जा सकता है:-
'उलझा दिया चमन को सियासत के नाम पर'
आख़री शैर में भी मफ़हूम स्पष्ट नहीं,देखियेगा ।
बाक़ी शुभ शुभ ।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 25, 2017 at 9:38pm

बेहतरीन ग़ज़ल 

Comment by Naveen Mani Tripathi on June 25, 2017 at 9:26pm
आ0 अनिता मौर्या जी शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 25, 2017 at 9:26pm
आ0 जयनित मेहता जी सादर आभार ।
Comment by Anita Maurya on June 25, 2017 at 6:01pm

wah.. 

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 25, 2017 at 3:31pm
मुझसे मेरा ज़मीर नहीं माँगिये हुजूर ।
इसकी ही वज़ह से मैं अभी तक मरा नहीं ।।

हालात आजमा के गए मुझको बार बार ।
रहमत खुदा की थी कि नज़र से गिरा नहीं ।।

बेहद खूबसूरत हक़ीक़ी ग़ज़ल हेतु हार्दिक बधाई आपको।।
Comment by Naveen Mani Tripathi on June 24, 2017 at 11:45pm
आ0 आरिफ साहब शुक्रिया ।
Comment by Mohammed Arif on June 24, 2017 at 10:48pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, हर शे'र मारक क्षमता वाला । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service