For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-16 (विषय: प्रायश्चित)

आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पिछले 15 आयोजनों की अपार सफ़लता के बाद "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक 16  में आपका हार्दिक स्वागत हैI प्रस्तुत है:
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-16
विषय : "प्रायश्चित"
अवधि : 30-07-2016-2016 से 31-07-2016 
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 30 जुलाई 2016 लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२. सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
४. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
५. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
६. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
७. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
८. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
९. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
१०. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
११. रचना/टिप्पणी सही थ्रेड में (रचना मेन थ्रेड में और टिप्पणी रचना के नीचे) ही पोस्ट करें, गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी बिना किसी सूचना के हटा दी जाएगी I
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 17395

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर.
आली जनाब विजय शंकर जी आदाब,वाह वाह ,बहुत ख़ूब, आनंद आ गया पढ़ कर, विषय को सार्थक करती इस सुंदर प्रस्तुति के लिये दिल की गहराइयों से बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय समर कबीर साहब , नमस्कार , आपको कथा पसंद आई , बहुत अच्छा लगा , प्रयास सफल लगा। आपको ह्रदय से आभार और धन्यवाद , सादर।

बहुत ही अच्छे विषय को लेकर कही गयी रचना के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी सर|

आदरणीय चंद्रेश कुमार छतलानी जी , आपको कथा पसंद आई , आपको ह्रदय से आभार और धन्यवाद , सादर।

इस प्रभावशाली रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी, सादर!

आदरणीय महेंद्र कुमार जी , आपको कथा पसंद आई , बधाई हेतु आपको ह्रदय से आभार और धन्यवाद , सादर।

खाली हाँथ

.
अपनी बेग़म को चुपचाप एकटक महल को निहारते देख,बादशाह सलामत ने उनसे बात करने की गरज से पूछा-
"याद है बेग़म!ये खूबसूरत महल हमने आपको किस मौक़े पर दिया था?"
"याद है बादशाह सलामत!अच्छी तरह याद है ।ये उस वक़्त हमारे पड़ोसी राजा की रियासत में था ।जिसपर चढ़ाई करके आपने पूरी रियासत को ही जीत लिया।और फिर ये महल मेरी सालगिरह के मौक़े पर आपने मुझे तोहफे में दिया था ।"
"अरे वाह..,आपको तो आज भी सब कुछ याद है।"
"याद क्यों न होगा ,वो जंग कोई मामूली जंग तो नहीं थी।वो राजा भी बड़ा पराक्रमी और बलशाली राजा था ।बड़ी जबरदस्त जंग हुयी थी।लाखों सैनिक शहीद हुए थे।"
"हाँ वाक़ई बहुत बड़ी तादाद हमारे बहादुर सिपाही शहीद हुए थे। लेकिन मैंने भी ठान लिया था कि उसकी रियासत छीन कर ही दम लूँगा ।फिर आपको ये महल भी तो नज़राने में देना था।"उनकी आवाज में कुछ शोख़ी उतर आई।
"अच्छा, और वो महल याद है तुम्हे,जिसे हमने अपने पहले बेटे की पैदाइश की ख़ुशी में आपको नज़र किया था?"
"हाँ उसे कैसे भूल सकती हूँ ।कितने बेशकीमती जवाहरातों और सोने चाँदी जड़वा के बनवाया था उसे आपने।वो तो मेरे पसंदीदा महलों में से एक था।"
"पसंद क्यों ना आता ,आखिर उसे बनवाने के लिए हमने दोनों हांथो से खजाना लुटाया था ।"
"इसलिए तो बना भी बेजोड़ था ।वो दिन भी खूब थे!लेकिन अफ़सोस ,ज्यादा वक़्त कहीं ठहर के न रह पाये हम। सारी जिंदगी बस उथलपुथल मची रही।साजिशों और जंगों ने औलाद को भी ना बख़्शा।"कहते- कहते बेग़म की आँखें भर आयीं।
"आप रो रहीं हैं?"
"हाँ बादशाह सलामत मैं रो रही हूँ।क्योंकि अब ये नहीं समझ नहीं पा रही हूँ कि इतनी दौलत,इतना ख़ून,किसके लिए और क्यों बहा दिया हमने,जबकि बाक़ी रह जाने वाला कुछ न था।सिवा इन खण्डरों के और चंद यादों के। "
"क्या आप भी ऐसा सोचती हैं?"बादशाह का ये जुमला ,ऐसा लगा जैसे किसी गहरे कुँए से निकला कर आ रहा हो।
"तो क्या आप भी....?"वो इससे आगे कुछ और भी कहतीं,लेकिन बादशाह की ज़मीन में गड़ी नज़र देख,कुछ और कहने की गुंजाईश ही नहीं बची थी। बेग़म ने हमदर्दी से बादशाह का हाथ अपने में लिया और दोनों कुछ दूरी पर बनी अपनी कब्र में समां गए।

.
मौलिक एवं अप्रकाशित

आखिर सब कुछ तो यहीं रह जाना है तो किसके लिए इतना खून खराबा| काश लोगों को ये बात समझ में आती, बहुत बढ़िया रचना विषय पर, बधाई आपको 

आदरणीय सुश्री राहिला जी , प्रदत्त विषय को सार्थक करती सटीक शीर्षक सहित बहुत ही मार्मिक लघु-कथा , इतिहास तो ऐसे बहुत से प्रश्न करता है , क्यों ? और किसके लिए ? , बहुत बहुत बधाई , इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए। सादर।

बहुत खूब प्रिय राहिला जी, लघु कथा बढ़िया सन्देश दे रही है की खून खराबा व जंग  से  कुछ हासिल नहीं होता नुक्सान ही नुक्सान होता है जिसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई|किन्तु  लघु कथा के पात्र अफ़सोस जरूर कर रहे हैं  प्रायश्चित क्या किया वो यहाँ स्पष्ट  नहीं है | 

प्रिय राहिला जी, बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से प्रदत्त विषय प्रायश्चित को परिभाषित किया है इस लघुकथा के माध्यम से। पढ़कर आनंद आया I बेगम और बादशाह की रूहों का यह वार्तालाप दिल को छू गया, बहुत बहुत बधाई इस उत्कृष्ट रचना पर ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
11 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service