For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ये मिठाई कहाँ से आई जी ?" अपने खेत के किनारे चारपाई पर चुपचाप लेटे शून्य को निहारते हुए पति से पूछाI
"अरी, वो गुलाबो का लड़का दे गया था दोपहर को।" उसने चारपाई से उठते हुए उत्तर दियाI
"कौन? वही जो शहर में सब्ज़ी का ठेला लगाता है?"
"हाँ वही! बता रहा था कि अब उसने दुकान खोल ली है, उसकी ख़ुशी में मिठाई बाँट रहा थाI" पति ने मिठाई का डिब्बा उसकी तरफ सरकाते हुए कहाI
"चलो अच्छा हुआI" पत्नी ने चेहरे पर कृत्रिम सी मुस्कुराहट आईI
"वो बता रहा था कि उसने बेटे को भी टैम्पो डलवा दिया है, और बेटी को भी कॉलेज में भर्ती करवा दिया है।"
"अच्छा?"
"हाँ! काफी तरक्की कर गया ये लौंडा शहर जाकरI"
बेमौसम बरसात से उजड़े हुए खेत को निहार, पहाड़ जैसे क़र्ज़ और घर में बैठी दो दो कुँवारी बेटियों को याद करते हुए एक ठण्डी आह भरते हुए वह बोली :
"हमसे तो वो ही अच्छा है जी ।"

.

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 802

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on June 9, 2018 at 10:58am

जिसने अन्न उगाया वो वहीं रह गया और जिसने उस अन्न को बेचा वो कहाँ से कहाँ पहुँच गया. किसानों की व्यथा को कसक के माध्यम से क्या ख़ूब उभारा है आपने. मेरी तरफ़ से भी हार्दिक बधाई प्रेषित है सर. सादर.

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 4, 2016 at 4:26pm

किसानो के व्यथा बाखूबी दर्शायी है आदरणीय सर | 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 9, 2016 at 9:06pm

आ० प्रभाकर सर जी, सादर प्रणाम! समकालीन दुर्व्यवस्थाओं को उजागर करती यथार्थ कथावस्तु को नमन. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर

Comment by ram shiromani pathak on March 9, 2016 at 6:21pm
मार्मिक चित्रण आदरणीय ।।बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 9, 2016 at 12:27pm

किसानों को हमेशा मौसम पर निर्भर रहना पड़ता है और मौसम भी उसका सगा नहीं है परेशां होकर किसान उनके बच्चे पलायन कर रहे हैं किसानों की दयनीय स्थिति को इस लघु कथा के माध्यम से बाखूबी उकेरा है आपने ..बहुत शानदार प्रस्तुति .हार्दिक बधाई आ० योगराज जी .

Comment by Nita Kasar on March 8, 2016 at 2:52pm
किसानों की पीड़ा को महसूस किया जा सकता हाै कथा के ज़रिये ये कैसी लाचारी है?अन्नदाता पर आफ़त भारी है ।बधाईयां आपके लिये आद०योगराज प्रभाकर जी ।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 7, 2016 at 9:17pm

मोहतरम जनाब योगराज  साहिब ,   गरीब किसान की सही तस्वीर लघु कथा में खिंच गयी , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं  

Comment by Sushil Sarna on March 7, 2016 at 8:58pm

किसानों की दयनीय स्थिति का बहुत ही सूक्ष्म चित्रण किया है आदरणीय सौरभ सर। सब का पेट भरने वाला स्वयं शून्यता की तपिश सह रहा है। इस मार्मिक और श्रेष्ठ लघु कथा की प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकार करें आदरणीय। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 7, 2016 at 8:57pm
कहने भर की ज़मींदारी ,हैं अनगिनत लाचारी
जमीन होने से तो अच्छा ,बेच लेते तरकारी।।
मार्मिक चित्रण।सादर नमन श्रद्धेय सर जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on March 7, 2016 at 8:10pm

हार्दिक बधाई आदरणीय योगराज भाई जी!बेहद मार्मिक और हृदय स्पर्शी प्रस्तुति!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय संजय शुक्ला जी "
8 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
16 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"जो दुआओं के गुहर जेब में भर कर निकलाबस वही शख़्स मुक़द्दर का सिकंदर निकला /1 इक न इक रोज़ जियूँगा…"
22 minutes ago
Euphonic Amit and अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी are now friends
7 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल ~2122 1122 1122 22/112 तोड़ कर दर्द की दीवार वो बाहर निकला  दिल-ए-मुज़्तर से मिरे एक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service