For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक बूढ़ी माँ अकेली रह गई - लक्ष्मण धामी ' मुसाफिर '

2122    2122    212

*********************
बस गया है लाल बाहर क्या करे
हो  गया है  खेत  बंजर क्या करे

***
एक बूढ़ी माँ  अकेली  रह  गई
काटने को  दौड़ता घर क्या करे

***
चाँद  लौटेगा  नहीं   अब,  है  पता
रात भर रोकर भी अम्बर क्या करे

***
ठोकरें  खाना  खिलाना भाग्य में
राह  का  टूटा वो पत्थर क्या करे

***
रीत  तो थी, जिंदगी भर साथ की
दे गया धोखा जो सहचर क्या करे

***
हाथ   आयी   करवटों  की  बेबसी
मखमली है पास बिस्तर क्या करे

***
है ‘मुसाफिर’ भाग्य में केवल सफर
सिर्फ  यादों  में  बसा  घर क्या करे

रचना - 5 जनवरी 15
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 602

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 23, 2015 at 11:40am

ग़ज़ल पर अपनी उपस्थिति   से  ग़ज़ल का मान   बढ़ने   और  उत्साहवर्धन  के लिए सभी आ० प्रबुद्ध जानो का हार्दिक धन्यवाद . समयाभाव    के कारन    व्यक्तिगत तौर पर धन्यवाद ज्ञापित न कर पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 17, 2015 at 12:32pm

हाथ   आयी   करवटों  की  बेबसी
मखमली है पास बिस्तर क्या करे---जबरदस्त 

सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं 

बहुत बहुत बधाई इस शानदार ग़ज़ल के लिए 

Comment by aman kumar on January 16, 2015 at 11:02am

एक बूढ़ी माँ  अकेली  रह  गई
काटने को  दौड़ता घर क्या करे,

अगर घर पर है तो भी गनीमत ही है ,आजकल तो आश्रम में ....

दिल तक गयी है रचना ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2015 at 10:25pm

हाथ   आयी   करवटों  की  बेबसी
मखमली है पास बिस्तर क्या करे -....    बहुत खूब आदरणीय लक्ष्मण भाई , गज़्ल के लिये और इस शेअर के लिये बधाइयाँ ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 15, 2015 at 4:03pm

ठोकरें  खाना  खिलाना भाग्य में
राह  का  टूटा वो पत्थर क्या करे  बिलकुल सही 

रीत  तो थी, जिंदगी भर साथ की
दे गया धोखा जो सहचर क्या करे...सच है ...हर शेर उम्दा ..इस ग़ज़ल को गुनगुनाने में आनदं आया ..आपको बहुत सारी बधाई सादर 

Comment by khursheed khairadi on January 15, 2015 at 11:49am

चाँद  लौटेगा  नहीं   अब,  है  पता
रात भर रोकर भी अम्बर क्या करे

***
ठोकरें  खाना  खिलाना भाग्य में
राह  का  टूटा वो पत्थर क्या करे

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर , उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 15, 2015 at 4:42am
है ‘मुसाफिर’ भाग्य में केवल सफर
सिर्फ यादों में बसा घर क्या करे।
बहुत ही मार्मिक चित्रण, आदरणीय लक्षमण धामी जी , बधाई, सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 14, 2015 at 9:59pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई। सभी अशआर बेहतरीन है। शेर दर शेर दाद कुबूल फ़रमाये
Comment by gumnaam pithoragarhi on January 14, 2015 at 6:27pm

बस गया है लाल बाहर क्या करे
हो गया है खेत बंजर क्या करे

***
एक बूढ़ी माँ अकेली रह गई
काटने को दौड़ता घर क्या करे

वाह सभी शेर अच्छे लगे बधाई

Comment by asha pandey ojha on January 14, 2015 at 4:43pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service