For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-148

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 148 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा जनाब मिर्ज़ा 'ग़ालिब' साहिब की ग़ज़ल से लिया गया है |

'जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं'
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
बह्र-ए-मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम


रदीफ़ :- देखते हैं

क़ाफ़िया:-(अम की तुक) सनम,हरम,करम, ग़म, नम,अलम आदि

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन होगी | मुशायरे की शुरुआत दिनांक 28 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 29 अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |

एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |

तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |

शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |

ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |

वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें

नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |

ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 अक्टूबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन

बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक...

मंच संचालक

राणा प्रताप सिंह 

(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 5470

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय दण्डपाणी नाहक जी सादर, प्रस्तुत ग़ज़ल पर उत्साहवर्धन हेतु अतिशय आभार आपका. सादर

आदरणीय  Ashok Kumar Raktale जी
सादर अभिवादन
तरही मिसरे पर उम्दः ग़ज़ल कही आपने।  बधाई स्वीकार करें। उस्ताद जी की इस्लाह क़ाबिल - ए - ग़ौर है।

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले साहिब, सादर अभिवादन। तरही मिस्रे पर ग़ज़ल का उम्द: प्रयास है, इस पर बधाई स्वीकार करें। गिरह बहुत अच्छी लगाई आपने। आपके चौथे शे'र का मिस्रा-ए-ऊला (उतरने लगा है नशा धीरे-धीरे) बहुत ख़ूब है, लेकिन मिस्रा-ए-सानी में इस्तेमाल किये गए लफ़्ज़ 'शरम' के बारे में उस्ताद-ए-मुहतरम बता ही चुके हैं। शुभकामनाएँ

आदरणीय अशोक जी, ग़ज़ल के अच्छे प्रयास के लिये बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय अशोक कुमार जी उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय समर साहब की उपयोगी इस्लाह से ग़ज़ल और  ख़ूबसूरत हो गई ।

अजब बेकसी का करम देखते हैं
ख़ुद अपनी निगाहों को नम देखते हैं

दिल-ए-ज़ार का आज दम देखते हैं
चलो ख़ुद पे करके सितम देखते हैं

ग़रीबी ने ऐसा डसा है कि हर सू
ख़ुशी के बजाय आज ग़म देखते हैं

निगाहें बता दें न उल्फ़त हमारी
हम उस शख़्स की ओर कम देखते हैं

निगूँ आप हो जाता है सर हमारा
'जहाँ तेरा नक़्श-ए-क़दम देखते हैं'

वफ़ा में हया का अलग रंग है कुछ
उसे रोज़ छुप-छुप के हम देखते हैं

अभी और कितना लहू थूकती है
चलो 'ज़ैफ़' ज़ोर-ए-क़लम देखते हैं

मौलिक व अप्रकाशित

आदरणीय ज़ैफ़ जी आदाब अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।

'ख़ुशी के बजाय आज ग़म देखते हैं'... ये मिसरा बह्र में नहीं है, देखियेेगा। 

आदरणीय ज़ैफ़ जी सादर, तरही मिसरे पर बढिया ग़ज़ल हुई है आपकी. बहुत मुबारकबाद क़ुबूलें. सादर

आदरणीय  Zaif   जी
सादर अभिवादन
तरही मिसरे पर उम्दः ग़ज़ल कही आपने।  बधाई स्वीकार करें। 

ख़ुशी की जग़ह आज ग़म देखते हैं ,सादर सुझाव

जनाब ज़ैफ़ साहिब, आपने आयोजन में आई हुई किसी भी ग़ज़ल पर टिप्पणी नहीं की है,न ही आपकी ग़ज़ल पर आई किसी टिप्पणी का जवाब दिया है, इससे लगता है कि आप सिर्फ़ अपनी ग़ज़ल दूसरों को पढ़वाना चाहते हैं, मैं आपकी ग़ज़ल पर अपनी टिप्पणी उसी वक़्त दूँगा जब आपकी आयोजन में सक्रियता देखूँगा ।

आदरणीय जैफ जी नमस्कार। ग़ज़ल का शानदार प्रयास किया है आपने । बहुत बहुत बधाई हो।

अन्य साथियों की सलाह ले कर इस मिसरे को यूँ कर सकते है।

*खुशी की जगह आज ग़म देखते हैं*

सादर जी।

122 122 122 122

कभी तेरे चेहरे पे ग़म देखते हैं।
न पूछो कि कैसे ये हम देखते हैं।।

तेरे मुख पे मुस्कान कम देखते हैं।
परेशां तुझे जब भी हम देखते हैं।।

तड़पता है उस वक़्त दिल तो हमारा।
कभी जो तेरी आँख नम देखते हैं।।

बिना गर्ज़ करते सभी की मदद जो।
कुछ ऐसे भी हैं लोग हम देखते हैं।।

जहाँ कद्र जज़्बात की हो न कोई।
तमाशा नया रोज़ हम देखते हैं।।

ये है ख़ासियत सिन्फ़-ए-नाज़ुक ग़ज़ल की।
हमेशा नया रंग हम देखते हैं।।

कहे नज़्म के शेर को भी ग़ज़ल का।
हम ऐसे भी अहले कलम देखते हैं।।

तुम्हारी तरफ राह जाए कोई भी।
हो मायूस अक्सर ही हम देखते हैं।।

जगह वह लगे खूबसूरत भला क्यों।
"जहाँ तेरा नक्श-ए-कदम देखते हैं।।"

मौलिक व अप्रकाशित।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुण्डलिया * पानी-पानी  हो  गया, जब आयी बरसात। सूरज बादल में छिपा, दिवस हुआ है रात।। दिवस…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"रिमझिम-रिमझिम बारिशें, मधुर हुई सौगात।  टप - टप  बूंदें  आ  गिरी,  बादलों…"
12 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"हम सपरिवार बिलासपुर जा रहे है रविवार रात्रि में लौटने की संभावना है।   "
19 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद +++++++++ आओ देखो मेघ को, जिसका ओर न छोर। स्वागत में बरसात के, जलचर करते शोर॥ जलचर…"
19 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"कुंडलिया छंद *********** हरियाली का ताज धर, कर सोलह सिंगार। यौवन की दहलीज को, करती वर्षा पार। करती…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
Wednesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service