For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-116

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 116वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब  फ़िराक़ गोरखपुरी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"इस ज़मीन ओ आसमाँ को क्या समझ बैठे थे हम "

2122         2122           2122    212

 

फाइलातुन    फाइलातुन      फाइलातुन   फाइलुन

(बह्र:  रमल मुसम्मन महज़ूफ़ )

रदीफ़ :- समझ बैठे थे हम।
काफिया :- आ( क्या, दीवाना, कैसा, प्यारा, अपना, तेरा आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 21 फरवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 22 फरवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 21 फरवरी दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 7065

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें ।

अब मुहब्बत फ़स्ल ए गुल से वहीं आबाद है'

ये मिसरा बह्र में नहीं है,देखियेगा ।

'इश्क़ को यूँ नहीं महंगा समझ बैठे थे हम'

ये मिसरा भी बह्र में नहीं है,देखियेगा ।

'इस तरह रोशन हुआ आने से तेरे बज़्म वो ।
स्याह शब में शम्स को उतरा  समझ बैठे थे हम'

इस शैर के ऊला में 'हुआ' को "हुई" करना होगा,'बज़्म' शब्द स्त्रीलिंग है,और सानी मिसरे में वाक्य विन्यास ठीक नहीं,ग़ौर करें ।

'बारहा झुक कर हुआ वह नाग का हमला ही था ।
जिसको कल तक इश्क़ का सज़दा समझ बैठे थे हम'

इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

आ0 कबीर सर बेहतरीन इस्लाह के लिए बहुत बहुत शुक्रिया और नमन ।

2122         2122           2122    212

अब   मुहब्बत फ़स्ल ए गुल से यहां आबाद है ।

2   अब

मुहब्बत   122 

फ़स्ल 21

ए 2

गुल 2 

से 2 

वहीं 12 

आबाद 221 

है 2

ए को दो पर लिया है सर

//ए को दो पर लिया है सर//

'ए' को 2 पर नहीं ले सकते,इसे 2 पर इस सूरत में लेंगे जब इज़ाफ़त से पहले हर्फ़-ए-इल्लत हो,अन्यथा नहीं ।

जनाब नवीन साहिब, गज़ल का अच्छा प्रयास किया है,मुबारकबाद कुबूल फरमाएं l 

अच्छी कौशिश हुई जनाब नवीन मणि जी। समर जी की सलाह का संज्ञान अवश्य लेंगें आप, यह विश्वास है

नवीन त्रिपाठी जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई बाकी सर ने इंगित कर दिया है 

आदरणीय नवीन मणि जी  उम्दा गिरह के साथ अच्छी ग़ज़ल आपने कही इसके लिए मेरी ओर से दिली मुबारकबाद कुबूल करें तीसरे और पांचवें शेर पर जो बात मैं कहना चाहता था उस पर आदरणीय समर साहब की टिप्पणी आ गई है ।सादर

आदरणीय नवीन साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है़ बाकी समर भाई जी मार्ग दर्शन कर ही चुके .दिल से मुबारकबाद आपको 

जनाब   डॉ नवीन मणि त्रिपाठी साहब उम्दा कोशिश के लिए बधाई बाकी गुणीजनों की इसलाह से हम लोगों को भी बहुत कुछ सीखने मिला सबका आभार ....

'यह भी इक धोका ही था जो धूप में तुझको सराब ।
तिश्नगी के वास्ते दरिया समझ बैठे थे हम।'

आदरणीय नवीन जी बहुत बढ़िया ,बधाई स्वीकार करें

ग़ज़ल

क्या हमारा था गुमाँ और क्या समझ बैठे थे हम l
बेवफ़ा दिलदार को अपना समझ बैठे थे हम l

कूच ए - जान ए - जहां में रखते ही अपने कदम
ख़ुद को सब की तरह दीवाना समझ बैठे थे हम l

ये दिखाई देते हैं लेकिन कभी मिलते नहीं
इस ज़मीन ओ - आसमाँ को क्या समझ बैठे थे हम

l

इस लिए करते रहे दीदार दिलबर रात भर
माह ए - कामिल को तेरा चहरा समझ बैठे थे हम l

मुस्कराकर ही वो हम से बात करते हैं सदा
यूँ न उनको भूल से प्यारा समझ बैठे थे हम l

खा रहे हैं पत्थरों की तरह ठोकर इस लिए
कुच ए-महबूब को डेरा समझ बैठे थे हम l

सिर्फ़ होता है जहां हासिल दग़ा, धोका, फ़रेब
उस जगह को प्यार की दुनिया समझ बैठे थे हम l

ज़ख्म खाकर ही मुहब्बत में चला है ये पता
इक सितमगर को ही दिल आरा समझ बैठे थे हम

l

देखते ही देखते वो भी मुखालिफ हो गया
जिसको यारों अपना हम प्याला समझ बैठे थे हम

l

वो रिआया का भला दिल से कभी करता नहीं
जिसको नासमझी से दिल दरया समझ बैठे थे हम

l

हो गई तस्दीक आखिर भूल हम से प्यार में
संग दिल को रब मुहब्बत का समझ बैठे थे हम l

दिल आरा - महबूब, दिल दरया - सखी, हम प्याला - हमदर्द

(मौलिक व अप्रकाशित)

आदरणीय तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब, आदाब। आपको इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल की रचना पर मुबारक़बाद और महाशिवरात्री की शुभकामनाएं।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"यह ग़ज़ल विवशता के भाव से आरंभ होकर आशा, व्यंग्य, क्षोभ और अंत में गहन निराशा तक की यात्रा समाज में…"
8 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"जी आदरणीय सम्मानित तिलक राज जी आपकी बात से मैं तो सहमत हूँ पर आपका मंच ही उसके विपरीत है 100 वें…"
49 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"इसी विश्व के महान मंच के महान से भी महान सदस्य 100 वें आयोजन में वही सब शब्द प्रयोग करते नज़र आ…"
52 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"मैं यह समझ नहीं पा रहा हूँ कि आपको यह कहने की आवश्यकता क् पड़ी कि ''इस मंच पर मौजूद सभी…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीया रिचा यादव जी सादर अभिवादन बेहतरीन ग़ज़ल हुई है वाह्ह्हह्ह्ह्ह! शैर दर शैर दाद हाज़िर है मतला…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर अभिवादन उम्द: ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई शैर दर शैर स्वीकार करें!…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी ' मुसफ़िर' जी सादर अभिवादन!आपका बहुत- बहुत धन्यवाद आपने वक़्त…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-183
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सादर नमस्कार आपका बहुत धन्यवाद आपने समय दिया ग़ज़ल तक आए और मेरा हौसला…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service