For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हर ख़ुशी का इक ज़रीआ चाहिये- ग़ज़ल

2122 2122 212

हर ख़ुशी का इक ज़रीआ चाहिए
ठीक हो वह ध्यान पूरा चाहिए।

दर्द को भी झेलता है खेल में
दिल भी होना एक बच्चा चाहिए।

जान लेना राह को हाँ ठीक है
पर इरादा भी तो पक्का चाहिये।

टूट कर शीशा  जुड़ा है क्या कभी
टूट जाए तो न रोना चाहिए।

झूठ की बुनियाद पर है जो टिका
वो महल हमको तो कचरा चाहिए।

 विष वमन कर जो हवा दूषित करे
उस जुबाँ पर ठोस ताला चाहिए।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 617

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 22, 2018 at 11:49am

आदरणीय सतविंद्र जी अच्छी ग़ज़ल कही है..लेकिन आदरणीय समर कबीर जी की बात से इत्तफ़ाक़ रखता हूँ..

Comment by राज़ नवादवी on December 21, 2018 at 11:43am

आदरणीय सतविंदर सिंह जी, आदाब. ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें. बाक़ी आदरणीय समर कबीर साहब ने अपनी बहुमूल्य प्रक्रिया दे दी है. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 20, 2018 at 12:07pm

'मफ़हूम'--यानी,जो बात आप कहना चाहते हैं वो स्पष्ट नहीं हो रही है ।

Comment by नाथ सोनांचली on December 20, 2018 at 9:33am

आद0 सतविंदर भाई जी ग़ज़ल के बेहतरीन प्रयास के लिए बधाई। मफ़हूम मतलब अर्थ या meaning होता है मेरे समझ से। 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 20, 2018 at 6:57am

आदरणीय समर कबीर जी सादर वन्दन, मार्गदर्शन के लिए सादर आभार।

मफ़हूम का मतलब मई न समझ पाया। सादर

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 20, 2018 at 6:55am

आदरणीय छोटे लाल सिंह जी नमन सादर, हार्दिक आभार

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 20, 2018 at 6:54am

आदरणीय फूल सिंह जी सादर नमन, हौंसलाफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on December 19, 2018 at 9:03am

आदरणीय राणा जी सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई

Comment by Samar kabeer on December 17, 2018 at 9:42pm

जनाब सतविन्द्र कुमार 'राणा' जी आदाब,ग़ज़ल की कोशिश अच्छी है,लेकिन अभी समय चाहती है,बहरहाल बधाई स्वीकार करें ।

हर ख़ुशी का इक ज़रिआ चाहिए
ठीक हो यह ध्यान पूरा चाहिए'

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,दूसरी बात,ऊला मिसरे में 'ज़रिआ' ग़लत है,सहीह शब्द है "ज़रीआ" ।

' दर्द को भी झेल ले जो खेल में
दिल को होना एक बच्चा चाहिए'

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है,और दूसरे मिसरे का शिल्प कमज़ोर है,इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-

'झेल पाये दर्द को जो खेल में

दिल हमारा ऐसा होना चाहिये'

' काँच टूटा फिर जुड़ा है क्या कभी
टूटने को फिर न रोना चाहिए'

इस शैर को यूँ कर लें:-

'टूट कर शीशा जुड़ा है क्या कभी

टूट जाये तो न रोना चाहिये'

बाक़ी अशआर में मफ़हूम साफ़ नहीं है ।

Comment by PHOOL SINGH on December 17, 2018 at 2:48pm

सुंदर रचना बधाई स्वीकारे

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जनाब, Gajendra shotriya, आ.' 'मुसाफिर ' साहब को प्रेषित मेरा प्रत्युत्तर आप, कृपया,…"
11 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मुसाफिर' साहब मैं आप की टिप्पणी से सहमत  नहीं हूँ। मेरी ग़ज़ल के सभी शे'र …"
20 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन। मुशाइरे में सहभागिता के लिए बहुत बधाई। प्रस्तुत ग़ज़ल के लगभग…"
35 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय महेन्द्र जी। थोड़ा समय देकर  सभी शेरों को और संवारा जा सकता है। "
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। यह गजल इस बार के मिसरे पर नहीं है। आपकी तरह पहले दिन मैंने भी अपकी ही तरह…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल कुछ शेर अच्छे हुए हैं लेकिन अधिकांश अभी समय चाहते हैं। हार्दिक…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
6 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
6 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
6 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service