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मूर्ख दिवस के दोहे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर

सूँघा हमने फूल को, महज समझ कर फूल
था कागज का तो मना, अपना 'अप्रैल फूल'।१।


हम में  दस  ही  मूर्ख हैं, नब्बे  हैं  हुशियार
लेकिन ये दस कर रहे, हर दुख का उपचार।२।


मूरख कब देता भला, मूर्ख दिवस को मान
 इस पर कृपा कर रहा, सहज भाव विद्वान।३।


भोले भाले का उड़ा, खूब कुटिल उपहास
मूर्ख दिवस पर सोचते, वो हैं खासमखास।४।


दसकों से सर पर रहा, बेअक्लों  का राज
मूर्ख बने इस बात का, भान हुआ है आज।५।


रोने को दिन एक है, सहने को भर साल
मूरख ही समझे यहाँ, हर मूरख का हाल।६।


साजन  सजनी  से कहे, लाऊँ  तारे तोड़
नाम प्यार के हो रही, मूर्ख बनन की होड़।७।


सुन  निर्धनता  हर  रहे, बीते  सत्तर साल
हर मूरख का आज भी, वही पुराना हाल।८।


बेअक्लों  की   संगते,  बेअक्लों  का  राज
मूर्ख बनी जनता फिरे, सिद्ध कहाँ हो काज।९।


मूर्ख दिवस ही तो रहा, सरकारी नव साल
मूर्ख बनी फिरती तभी, यह जनता कंगाल।१०।


सुमन  बाँटते  हम  रहे, सब  से  पाकर शूल
इसीलिए जग बोलता, सदियों से हम ‘फूल”।११।


अच्छे दिन की आस में, हर घर था उल्लास
वोटर वेटर हो गया, क्या  ये  कम परिहास।१२।


मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on April 2, 2018 at 12:32pm

जनाब लक्ष्मण धामी जी आदाब, बहुत उम्दा दोहे,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 2, 2018 at 9:54am

वाह बहुत बढ़िया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 2, 2018 at 7:26am

आ. भाई आरिफ जी, सादर अभिवादन । दोहों की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 11:15pm

आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन । दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभर ।

Comment by Mohammed Arif on April 1, 2018 at 5:35pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                        समसामयिकता का पुट लिए लाजवाब दोहे । दोहे सीखने वालों के लिए भी आदर्श है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ajay Tiwari on April 1, 2018 at 5:12pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, दोहे बहुत सामयिक, सटीक और खूबसूरत लगे. हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 10:31am

आ. प्रतिभाबहन, दोहों की स्नेहमयी प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2018 at 10:29am

आ. भाई शेख शहजाद जी, दोहों के अनुमोदन और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।

Comment by pratibha pande on April 1, 2018 at 10:03am

वाह वाह वाह   बहुत खूब दोहे रचे हैं आदरणीय लक्षमण जी  हार्दिक बधाई प्रेषित है

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 1, 2018 at 8:58am

बेहतरीन दिलचस्प, समसामयिक, कटाक्षपूर्ण और मार्गदर्शक सृजन। हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब।

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