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मुंतज़िर मुंतज़िर रहा

मुंतज़िर मुंतज़िर रहा 

मूरत बनाई थी जो

मुस्सवर ख़्यालों में

अब तक वह पाक

हसीन खवाब ही रही

रातों अँधेरे में कभी

दिन के उजाले में भी

रोज़ आई मुस्तकिल:

हलकी-सी मुस्कराई

बिना सलाम चली गई

मैं डरता रहा थर-थर

तस्वीर की तकदीर से...

 

मैं खुश था बहुत  

बाहरआई तो सही

वह उस तस्वीर से

पर मिलते ही लगा

वह खफ़ा थी ज़रा

मुझसे ही हुई होगी

ज़रूर कोई खता ...

आँखें खुलते ही क्यूँ

वह मुंतज़र बाहें

इन मुंतज़िर बाहों से 

हो गईं इतनी पराई ...

        ------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

मुस्सवर          = सचित्र, चित्रित

मुस्तकिल:       = निरंतर

मुंतज़र            = जिसकी प्रतीक्षा करी जा रही हो

मुंतज़िर           = प्रतीक्षक

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Comment by vijay nikore on April 13, 2018 at 6:45am

सराहना के लिए हृदयतल से आभार, आदरणीय भाई समर जी। कोशिश कर रहा हूँ उर्दु कविता लिखने की.... आपके आशीर्वाद साथ रहें।

Comment by vijay nikore on April 13, 2018 at 6:43am

सराहना के लिए हृदयतल से आभार, आदरणीय हर्ष जी।

Comment by vijay nikore on April 13, 2018 at 6:42am

सराहना के लिए हृदयतल से आपका आभार, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी

Comment by Samar kabeer on April 12, 2018 at 6:11pm

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,आजकल आप उर्दू अल्फ़ाज़ में कमाल की कविताएं लिख रहे हैं,ये कविता भी अपने आप में बहुत ख़ूब हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Harash Mahajan on April 11, 2018 at 8:38pm

आदरणीय विजय निकोरजी आदाब ।

सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई ।

सादर ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 8:00pm

बहुत ही भावपूर्ण रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब विजय निकोरे साहिब।

Comment by vijay nikore on March 28, 2018 at 9:04am

सराहना के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय बृजेश जी

Comment by vijay nikore on March 27, 2018 at 6:06am

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र जी

Comment by नाथ सोनांचली on March 26, 2018 at 8:19pm

आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन। बढिया रचना के लिए बधाई आपको

Comment by vijay nikore on March 25, 2018 at 9:39pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय लक्ष्मण जी।

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