झुक आई है एक और शाम
ग्रभ में गहरी-भूरी स्तब्धता लिए
कुछ फ़ासले, कुछ फ़ैसले
लगते थे जो कभी
थे हमारे लिए नहीं
हर किसी और के लिए
खड़े हैं अब वही फ़ासले
वही फ़ैसले
घूर रहे हैं सवाल बने बड़े-बड़े
सवालों के उत्तर की प्रत्याशा
ले आती एक और गंभीर शाम
और फिर एक और ...
मंज़िल तो लगती ही थी हमेशा
पकड़ के बाहर, पहुँच से दूर बहुतं
लेकिन उस आखरी शाम
कुछ तुमने कहा, जो मैंने सुना
"मेरे…
ContinueAdded by vijay nikore on February 16, 2021 at 7:00am — 3 Comments
अजीब था यह अनमोल नाता ... अमृता प्रीतम जी
कई दशक पहले मैं जब भी प्रिय अमृता प्रीतम जी के उपन्यास पढ़ता था, पुस्तक को रखते एक कसक-सी होती थी, यह इसलिए कि एक बार आरम्भ करके उनकी पुसत्क को रखना कठिन होता था। आज भी ऐसा ही होता है। जब से एक प्रिय मित्र पिंकी केशवानी जी ने अमृता जी की पुस्तक “मन मंथन की गाथा” मुझको भेंट में भेजी, जब भी ज़रा-सा अवकाश मिलता है, यह पुस्तक मुझको झट पास बुलाती है।
मित्र पिंकी ने पुस्तक में लिखा, “एक छोटी-सी भेंट,…
ContinueAdded by vijay nikore on September 25, 2020 at 10:51pm — No Comments
खालीपन का भारीपन
नहीं मालूम, नहीं मालूम मुझको
मेरा यह अनुभव केवल मेरा ही है
या है यह हर किसी का
कहीं कुछ खो देने की पीड़ा से निवर्त होने का
अनवरत प्रारम्भिक प्रयास…
ContinueAdded by vijay nikore on August 24, 2020 at 7:30am — 4 Comments
बदलाव !
तड़के प्रात:
स्वच्छ धूप की नरम दूब से
मिलने की उत्सुक्ता ...
कुछ इसी तरह कोई लोग
कितनी उत्सुक्ता से अपने बनते
निज को समर्पित…
ContinueAdded by vijay nikore on May 14, 2020 at 5:00am — 6 Comments
तृप्ति
चहुँ ओर उलझा कटा-पिटा सत्य
कितना आसान है हर किसी का
स्वयं को क्षमा कर देना
हो चाहे जीवन की डूबती संध्या
आन्तरिक द्वंद्व और आंदोलन
मानसिक सरहदें लाँघते अशक्ति, विरोध
स्वयं से टकराहट
व्यक्तित्व .. यंत्रबद्ध खंड-खंड
जब देखो जहाँ देखो हर किसी में
पलायन की ही प्रवृत्ति
एक रिश्ते से दूसरे ...
एक कदम इस नाव
एक ... उस…
ContinueAdded by vijay nikore on May 13, 2020 at 5:30am — 4 Comments
चेतना का द्वार
उठते ही सवेरे-सवेरे
चिड़ियों की चहचहाट नहीं
आकुल क्रन्दन... चंय-चंय-चंय
शायद किसी चिड़िया का बीमार बच्चा
साँसे गिनता घोंसले से नीचे गिरा था
वह तड़पा, काँपा…
ContinueAdded by vijay nikore on May 4, 2020 at 1:00pm — 7 Comments
आत्मावलंबन
बाहरी दबाव और आंतरिक आदर्श
असीम उलझन और तीव्रतम संघर्ष
ऐसा भी तो होता है कभी
कि मन का सारा संघर्ष मानो
किसी एक बिंदु पर केंद्रित हो उठा हो
और पीड़ा ... जहाँ कहीं से भी उभरी
सारी की सारी द्रवित हो कर
उस एक बिंदु के इर्द-गिर्द
ठहर-सी गई हो
बह कर कहीं और चले जाने का
उस पीड़ा का
कोई साधन न हो
वाष्प-सा उसका उड़…
ContinueAdded by vijay nikore on April 28, 2020 at 6:52am — 6 Comments
न सीखी होशियारी
सर्वसामान्य का संवाग रचाते
मानव में है मानो चिरकाल से
उथल-पुथल गहरी भीतर
पग-पग पर टकराहट बाहर
आदर्श, व्यवहार और विवेक में
असामंजस्य…
ContinueAdded by vijay nikore on April 13, 2020 at 10:00am — 2 Comments
असाधारण सवाल
यह असाधारण नहीं है क्या
कि डूबती संध्या में
ज़िन्दगी को राह में रोक कर
हार कर, रुक कर
पूछना उससे
मानव-मुक्ति के साधन
या पथहीन दिशा की परिभाषा
असाधारण यह भी नहीं है कि
ज़िन्दगी के पाँच-एक वर्ष छिपाते
भीगते-से लोचन में अभी भी हो अवशेष
नूतन आशा का संचार
चिर-साध हो जीवन की
सच्चे स्नेह की सुकुमार अभिलाषा
पर असाधारण है,…
ContinueAdded by vijay nikore on April 10, 2020 at 5:00am — 2 Comments
मृदु-भाव
प्रात की शीतल शान्त वेला
हवा की लहर-सी तुम्हारी मेरे प्रति
मृदु मोह-ममता
मैं बैठा सोचता मेरे अन्तर में अटका
कोलाहल था बहुत
क्यूँ किस वातायन से किस द्वार से कैसे
चुपके से आकर मेरे जीवन में
घोल दिए सरलता से तुमने मुझमें
प्रणय के पावन गीत
किसी सपने की मधुरिमा-सी
सच, प्यारी है मुझको तुम्हारी यह प्रीत
नए प्यार के नवजात गीत की नई प्रात
तुम आई,…
ContinueAdded by vijay nikore on April 4, 2020 at 4:31pm — 4 Comments
स्नेह-धारा
कल्पना-मात्र नहीं है यह स्नेह का बंधन ...
उस स्वप्निल प्रथम मिलन में, प्रिय
कुछ इस तरह लिख दी थीं तुमने
मेरे वसन्त की रातें
मेरी समस्याओं ने
अव्यव्स्थाओं ने, अभिलाषाओं…
ContinueAdded by vijay nikore on March 29, 2020 at 8:00am — 3 Comments
प्रणय-परीक्षा
सुना है कुछ ऐसा केवल
स्वप्न-लोक में
या परियों की कहानी में होता है
सात समुद्र पार से आता है
घोड़े पर सवार
सात युगों का प्यार
पर हवा-सी झूमती
शैतानी-भरी हँसी हँसती
भरे आँखों में खुमारी की लालिमा
ऐसी गुड़िया से मिलना
मेरे जीवन के रंग-मंच पर
यह कोई सपना नहीं था
काट रही थी कब से मुझको
समय की तेज़ धार
मिला हवा की लहर-सा…
ContinueAdded by vijay nikore on March 23, 2020 at 12:30pm — 2 Comments
बाँधा जो साँसों ने साँसों से धागा
आँसू में, कुछ मुस्कानों में
मिलन की वेला के सुख में मिश्रित
बिछोह की घड़ी की व्यथा अपार
डरते-मुस्कुराते चेहरे पर पाईं हमने
ढुलक आई थीं बूँदें जो भीगी पलकों से
मिला था उनमें प्राणों को प्रीति का दान
ऐसे में हृदय ने सुनी हृदय की मधुर धड़कन
मधुमय मूक स्वर उस अद्वितीय आलिंगन में
आच्छादित हुए ऐसे में ज्यों भीगे गालों पर गाल
मुझको लगा उस पावन…
ContinueAdded by vijay nikore on March 16, 2020 at 2:00pm — 6 Comments
सम्मोहन
सम्मोहन !
जानता था मन, शायद न लौटेंगे हम
वह प्रथम-मिलन की वेला ही होगी
शायद हमारा अंतिम मिलन
अंतिम मुग्ध आलिंगन
उस परस्पर-गुँथन में थी लहराती
चिन्तनशील यह उलझन गहरी
जी में फिर भी था अतुल उत्साह
कि रहेंगे जहाँ भी, खुले रहेंगे हमारे
सुन्दरतम मन-मंदिर के वातायन
खुले रहेंगे पूरम्पूर परस्पर प्राणों के द्वार
कि तड़पती भागती दिशाओं के पार भी
अजाने…
ContinueAdded by vijay nikore on March 8, 2020 at 12:30am — 6 Comments
सौन्दर्य-अनुभूति
नई जगह नई हवा नया आकाश
न जाने कितने बँधनों को तोड़
अनेक बाहरी दबावों को ठेल
सैकड़ों मीलों की दूरी को तय कर
मुझसे मिलने तुम्हारा चले आना
मानसिक प्रष्ठभूमि में होगी ज़रूर
पावन स्नेह के प्रति तुम्हारी साधना
और इस प्रष्ठभूमि में तुमसे मिलना
था मेरे लिए भी उस स्वर्णिम क्षण
सौन्दर्य का आकर्षण
हमारा वह प्रथम मिलन
सुखद सरल भाव-विनिमय
खुल गए थे…
ContinueAdded by vijay nikore on March 7, 2020 at 5:46am — 2 Comments
झोल खाई हुई खुशी
तारों भरी रात, फैल रही चाँदनी
इठलाता पवन, मतवाला पवन
तरू-तरु के पात-पात पर
उमढ़-उमढ़ रहा उल्लास
मेरा मन क्यूँ उन्मन
क्यूँ इतना उदास…
ContinueAdded by vijay nikore on March 2, 2020 at 4:30am — 4 Comments
प्रिय, मुझे आज तुमसे कुछ कहना है ...
जानता है उल्लसित मन, मानता है मन
तुम बहुत, बहुत प्यार करती हो मुझसे
गोधूली-संध्या समय तुम्हारा अक्सर चले आना,
गलें में बाहें, गालों पर चुम्बन, अपनत्व जताना
झंकृत हो उठता है मधुरतम पुरस्कृत मन-प्राण
मैं बैठा सोचता, सपने में भी कोई इतना अपना
आत्म-मंदिर में अपरिसीम मधुर संगीत बना
निज का साक्षात प्रतिबिम्ब बन सकता है कैसे
पलता है मेरी आँखों में प्रिय, यह प्यार…
ContinueAdded by vijay nikore on February 26, 2020 at 6:30pm — 4 Comments
जीवन्तता
माँ
कहाँ हो तुम ?
अभी भी थपकियों में तुम्हारी
मैं मुँह दुबका सकता हूँ क्या
तुम्हारा चेहरा सलवटों भरा
मन शाँत स्वच्छ निर्मल
पथरीले…
ContinueAdded by vijay nikore on February 24, 2020 at 5:30am — 4 Comments
प्यार का प्रपात
प्यार में समर्पण
समर्पण में प्यार
समर्पण ही प्यार
नाता शब्दों का शब्दों से मौन छायाओं में
आँखों और बाहों का हो महत्व विशाल
बह जाए उस उच्च समर्पण में पल भर…
ContinueAdded by vijay nikore on February 21, 2020 at 3:30am — 4 Comments
गुज़ारिश
मुहब्बत में मज़हब न हो
मज़हब में हो मुहब्बत
मुहब्बत ही हो सभी का मज़हब
तो सोचो, हाँ, सोचो तो ज़रा
कैसी होगी यह कायनात
कैसी होगी यह ज़मीन
खुश होगा कितना…
Added by vijay nikore on February 15, 2020 at 4:00pm — 4 Comments
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