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तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता - सलीम रज़ा रीवा

 2122 1212 22 

तू अगर बा - वफ़ा नहीं होता
दिल ये तुझपे फ़िदा नहीं होता   
-
इश्क़ तुमसे किया नहीं होता 
ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता
-
ज़िन्दगी तो  संवर गयी  होती 
ग़र वो मुझसे जुदा नहीं होता
-
उसकी चाहत ने कर दिया पागल 
प्यार  इतना  किया  नहीं  होता 
-
सबको दुनिया बुरा बनाती है
कोई इंसाँ बुरा नही होता
-
चोट खाएँ भी मुस्कुराएँ भी
अब रज़ा हौसला नहीं होता.
_____________________
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:37pm
भाई लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर',जी
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:36pm
विजय जी ग़ज़ल पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:36pm
आ. काली प्रसाद जी,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 24, 2018 at 10:35pm
आ. अजय तिवारी जी,
आप का कहना भी सही है ख़्याल रखा जाएगा.
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 18, 2018 at 3:44pm

आ. भाई सलीम जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on January 18, 2018 at 8:29am

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 17, 2018 at 12:08pm

आ सलिन रज़ा जी  | ग़ज़ल बहुत उम्दा बनी  है , मुबारक बाद कुबूल करें |

Comment by Ajay Tiwari on January 16, 2018 at 4:19pm

आदरणीय सलीम साहब, आपकी बात ठीक है लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए की मिस्ररा भी ठीक हो और शेरियत भी बनी रहे. सादर   

Comment by SALIM RAZA REWA on January 15, 2018 at 10:09pm
आ. तिवारी जी,
आपकी मशविरे के लिए शुक्रिया लेकिन,
मिसरा सीधा करने के चक्कर में शेरियत,
मर जाए तो शेर कहने का फायदा क्या.. बहरहाल कुछ और सोचेंगे..
Comment by Ajay Tiwari on January 15, 2018 at 7:15pm

आदरणीय सलीम साहब,

तीसरे शेर को निकाल देने से ग़ज़ल बेहतर हो गयी है. दूसरे शेर में 'तो' कम होने से मेरी मुराद ये थी कि दोनों मिसरों को जोड़ने वाला संयोजक इनमे नहीं है. दोनों मिसरों को अगर सरल वाक्य के रूप में लिखें तो यह बात स्पष्ट हो जायेगी : 

'तुमसे इश्क़ नहीं किया होता तो ज़िन्दगी में मज़ा नहीं होता'. 

इसी मजमून को एक दूसरे सरल वाक्य में लिखते हैं :

'जिंदगी में मजा नहीं होता अगर आपका प्यार नहीं होता' 

अब इसे शेर में बदलेंगे तो कुछ यूं होगा :

प्यार अगर आपका नहीं होता >दर्द गर आपका नहीं होता  

जिंदगी में मजा नहीं होता

यह एक फ़ौरी सुझाव है ऊला के लिए इससे बेहतर मिसरे आप खुद सोच सकते हैं. 

सादर

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