For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

SALIM RAZA REWA's Blog (69)

ऐ मेरे दोस्त मोहब्बत को बचाए रखना   - सलीम 'रज़ा' रीवा

ऐ मेरे दोस्त मोहब्बत को बचाए रखना  

दिल में ईमान की शम्अ' को जलाए  रखना

-  

इस नए साल में खुशियों का चमन खिल जाए

सबको मनचाही  मुरादों का सिला मिल जाए

इस नए साल में खुशियों की हो बारिश घर घर

इस नए साल को ख़ुश रंग बनाए रखना

-

जान पुरखों ने लुटाई है वतन की ख़ातिर

गोलियाँ सीने में खाई है वतन की ख़ातिर

सारे धर्मों से ही ताक़त  है वतन  की मेरे

सारे धर्मों की मोहब्बत को बनाए रखना

-  

ज़ात के नाम पे दंगों को…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on December 24, 2019 at 7:00pm — 2 Comments

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया  - सलीम रज़ा

221 2121 1 221 212  

रुख़ से जो मेरे यार ने पर्दा हटा दिया   

महफ़िल में हुस्न वालों को पागल बना दिया

उसकी  हर एक अदा पे तो क़ुर्बान जाइए        

मौसम को जिसने छू के नशीला बना…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on December 11, 2019 at 10:16pm — No Comments

चाहे  दुनिया में कहीं और चले जाएंगे  - सलीम रज़ा

2122 1122 1122 22

चाहे  दुनिया में कहीं और चले जाएंगे            

चाह कर भी वो मुझे भूल नहीं पाएंगें             

 

उनके एल्बम में है तस्वीर पुरानी मेरी        

अब वो देखेंगे तो पहचान नहीं पाएंगे…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on December 11, 2019 at 10:00pm — No Comments

कैसे कहें की इश्क़ ने क्या क्या बना दिया - सलीम 'रज़ा'

 221 2121 1221 212      

  

कैसे कहें की इश्क़ ने क्या क्या बना दिया              

राधा को श्याम श्याम को राधा बना दिया               

 

उस बेर की मिठास तो बस जाने राम जी      

सबरी ने जिसको चख के…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on December 8, 2019 at 5:00am — 4 Comments

अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है - सलीम 'रज़ा'

2122 1122 1122 22             

अपने हर ग़म को वो अश्कों में पिरो लेती है

बेटी मुफ़लिस की खुले घर मे भी सो लेती है

 

मेरे दामन से लिपट कर के वो रो लेती है

मेरी तन्हाई मेरे साथ ही सो लेती है

 

तब मुझे दर्द का एहसास बहुत होता है                 

जब मेरी लख़्त-ए-जिगर आंख भिगो लेती है      

 

मैं अकेला नहीं रोता हूँ शब-ए-हिज्राँ में 

मेरी तन्हाई मेरे साथ में रो लेती है 

 

अपने दुःख दर्द…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on December 3, 2019 at 6:41pm — 5 Comments

रौशन है उसके दम से - सलीम 'रज़ा' रीवा

221 2121 1221 212

 -

रौशन है उसके दम से सितारों की रौशनी 

ख़ुश्बू लुटा रही है बहारों की रौशनी

 -

इक वो है माहताब फक़त आसमान में 

फीकी है जिसके आगे हज़ारों की रौशनी…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on November 21, 2019 at 8:52pm — 6 Comments

जब तलक ख़ुद ख़ुदा नहीं चाहे - सलीम रज़ा

2122 1212 22

-

हौसला जिसका मर नहीं सकता 

मुश्किलों से वो डर नहीं सकता 

-

लोग कहते हैं ज़ख़्म गहरा है 

मुद्दतों तक ये भर नहीं सकता

-…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on November 9, 2019 at 7:30pm — 5 Comments

सुख उसका दुख उसका है - सलीम 'रज़ा' रीवा

22 22 22 22 22 22 22 2

सुख उसका दुख उसका है तो फिर काहे का रोना है

दौलत उसकी शोहरत उसकी क्या पाना क्या खोना है //



चाँद-सितारे उससे रोशन फूल में उससे खुशबू है 

ज़र्रे-ज़र्रे में वो शामिल वो चांदी वो सोना है //



खुशिओं के वो मोती भर दे या ग़म की बरसात करे

उसकी हुकूमत है हर सू वो जो चाहे सो होना है //



सारी दुनिया का वो मालिक हर शय उसके क़ब्ज़े में 

उसके आगे सब कुछ फीका क्या जादू क्या टोना है…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 6, 2019 at 8:30pm — 10 Comments

जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा - सलीम 'रज़ा' रीवा

2122 1122 1122 22 

मेरी आँखों में हुआ जब से ठिकाना तेरा 

लोग कहते हैं सरे आम दिवाना तेरा



रोज़ मिलने की तसल्ली न दिया कर मुझको 

जान ले लेगा किसी रोज़ बहाना तेरा



छीन लेगा ये मेरा होश यकीनन इक दिन …

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on October 1, 2019 at 8:00am — 10 Comments

उदास बैठे हैं - सलीम रज़ा रीवा

1212 1122 1212 22

जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं

वो तेरी याद में दिलबर उदास बैठे हैं



तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं

हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं



तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से

तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं



बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं 



ज़रा सी बात पे वो छोड़ कर गया मुझको…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on September 20, 2019 at 11:00pm — 4 Comments

ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा  - सलीम 'रज़ा' रीवा

ज़मी ये हमारी वतन ये हमारा 

उजड़ने न देंगे चमन ये हमारा 

वतन के लिए जो मेरी जान जाए

ख़ुदारा यहीं  फिर जनम लें दुबारा 

 …

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on August 15, 2019 at 11:30am — 3 Comments

बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है, सलीम 'रज़ा' रीवा

2122 1122 1122 22
बिन तेरे रात गुज़र जाए बड़ी मुश्किल है
और फिर याद भी न आए बड़ी मुश्किल है

खोल कर बैठे हैं छत पर वो हसीं ज़ुल्फ़ों को
ऐसे में धूप निकल आए बड़ी मुश्किल है

मेरे महबूब का हो ज़िक्र अगर महफ़िल में
और फिर आँख न भर आए बड़ी मुश्किल है

वो हसीं वक़्त जो मिल करके गुज़ारा था कभी
फिर वही लौट के आ जाए बड़ी मुश्किल है

वो सदाक़त वो सख़ावत वो मोहब्बत लेकर
फिर कोई आप सा आ जाए बड़ी मुश्किल है

---
मौलिक अप्रकाशित

Added by SALIM RAZA REWA on July 29, 2019 at 9:30pm — 3 Comments

बुलन्दी मेरे जज़्बे की - सलीम 'रज़ा' रीवा

1222 1222 1222 1222

बुलन्दी मेरे जज़्बे की ये देखेगा ज़माना भी

फ़लक के सहन में होगा मेरा इक आशियाना भी

.

अकेले इन बहारों का नहीं लुत्फ़-ओ-करम साहिब

करम फ़रमाँ है मुझ पर कुछ मिजाज़-ए-आशिक़ाना भी

.

जहाँ से कर गए हिजरत मोहब्बत के सभी जुगनू

वहां पे छोड़ देती हैं ये खुशियाँ आना जाना भी

.

बहुत अर्से से देखा ही नहीं है रक़्स चिड़ियों का

कहीं पेड़ों पे भी मिलता नहीं वो आशियाना भी

.

हमारे शेर महकेंगे किसी दिन उसकी रहमत से

हमारे साथ…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on July 23, 2019 at 9:30pm — 1 Comment

अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब - सलीम रज़ा रीवा

2122 1212 22

अपनी ज़ुल्फों को धो रही है शब

और ख़ुश्बू निचो रही है शब

oo

मेरे ख़ाबों की ओढ़कर चादर

मेरे बिस्तर पे सो रही है शब

oo

अब अंधेरों से जंग की ख़ातिर

कुछ चराग़ों को बो रही है शब

oo

सुब्ह--नौ के क़रीब आते ही

अपना अस्तित्व खो रही है शब

oo

दिन के सदमों को सह रहा है दिन

रात का बोझ ढो रही है शब

___________________

"मौलिक व…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on April 29, 2019 at 10:51am — 6 Comments

जनाबे मीर के लहजे की नाज़ुकी कि तरह - सलीम रज़ा रीवा

1212 1122 1212 22/112

--

जनाबे मीर के लहजे की नाज़ुकी कि तरह 

तुम्हारे लब हैं गुलाबों की पंखुड़ी की तरह 

oo

शगुफ्ता चेहरा ये  ज़ुलफें ये नरगिसी आँखे 

तेरा हसीन तसव्वुर है शायरी की तरह 

oo

अगर ऐ जाने तमन्ना तू छत पे आ जाए 

अंधेरी रात भी चमकेगी चांदनी की तरह

oo

यूँ ही न बज़्म से तारीकियाँ हुईं ग़ायब

कोई न कोई तो आया है…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on April 18, 2019 at 9:55am — 7 Comments

हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ  -सलीम रज़ा रीवा

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

.

हद से गुज़र गई हैं ख़ताएँ तो क्या करें 

ऐसे में उनसे दूर ना जाएँ तो क्या करें 

oo

उसकी अना ने सारे तअल्लुक़ मिटा दिए 

उस बे-वफ़ा को भूल  जाएँ तो क्या करें   

oo

मीना भी तू है मय भी तू साक़ी भी जाम भी

आँखों में तेरी डूब न जाएँ तो क्या करें

oo

कश्ती को डूबने से बचाया बहुत मगर 

हो जाएं गर…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on April 8, 2019 at 4:30pm — 10 Comments

आख़िर ये इश्क़ क्या है - सलीम रज़ा रीवा

मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

_____________

आख़िर ये इश्क़ क्या है जादू है या नशा है

जिसको भी हो गया है पागल बना दिया है

oo

हाथो में तेरे हमदम जादू नहीं तो क्या है

मिट्टी को तू ने छूकर सोना बना दिया है

oo

उस दिन से जाने कितनी नज़रें लगी हैं मुझपर

जिस दिन से तूने मुझको अपना बना लिया है

oo

खिलता हुआ ये चेहरा यूँ ही रहे सलामत

तू ख़ुश रहे हमेशा मेरी यही…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on April 4, 2019 at 9:13am — 6 Comments

जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए-सलीम रज़ा रीवा

ओबीओ को समर्पित एक क़त'आ  

----------------------------------

जब से तेरी मेहरबानी हो गई

ख़ूबसूरत ज़िन्दगानी हो गई

हम हुए तेरे दिवाने इस तरह

जिस तरह 'मीरा' दिवानी हो गई

...........

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

--------

जिंदगी को गुनगुना कर चल दिए

मौत को अपना बना कर चल दिए

oo

उम्र भर की दोस्ती जाती रही

आप ये क्या गुल खिलाकर चल…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on April 2, 2019 at 10:00am — 6 Comments

धूप का विस्तार लगाकर सो गए - सलीम रज़ा रीवा

2122 2122 212

धूप का विस्तार लगाकर सो गए

छांव सिरहाने दबाकर सो गए

oo

ज़िंदगी से थक-थका कर सो गए

वो चराग़--जाँ बुझा कर सो गए

oo

गुफ़्तगू की दिल मे ख़्वाहिश थी मगर

वो मेरे ख़्वाबों में आकर  सो गए

oo

तंग थी चादर तो हमने यूँ किया

पांव सीने से लगाकर सो गए

oo

उनकी नींदों पर निछावर मेरे ख़ाब

जो ज़माने को जगाकर सो गए

oo

बे-कसी में…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on March 18, 2018 at 11:00pm — 19 Comments

दे सोच कर सज़ाएं गुनहगार हम नहीं - सलीम रज़ा रीवा

221   2121   1221   212 

दे सोच कर सज़ाएं गुनहगार हम नहीं

ये तू भी जानता है ख़तावार हम नहीं

-

जिस पर किया भरोसा वही दे गया  दगा

लेकिन किसी भी शख़्स से बे-ज़ार हम नहीं

-

दिल तो दिया था जान भी तुझपे निसार की

फिर क्यूँ  तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नहीं    

-

जिनकी खुशी के वास्ते सब कुछ लुटा दिया

उफ़ वो ही कह रहे हैं वफादार हम नहीं

-

हैरत है दिल के पास थे जिनके सदा 'रज़ा'

अब तो उन्ही के प्यार के हक़दार हम नहीं

____________________

मौलिक व…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on March 8, 2018 at 2:58pm — 15 Comments

Monthly Archives

2019

2018

2017

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"ऐसा मिसरा कहें जो सानी के साथ घुल मिल जाए और ऐसा लगे जैसे वो दो अलग मिसरे नहीं बल्कि एक ही वाक्य…"
4 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
" आदरणीय अमित जी कृपया गिरह भी देखियेगा सादर लद गए दिन वो कभी आपके तालिब थे हम "आप के…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आ. भाई जैफ जी, सादर अभिवादन। उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय महेंद्र जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी से सहमत सुझाव भी अच्छे…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय zaif जी नमस्कार बहुत ख़ूबब हुई ग़ज़ल बधाई स्वीकार कीजिये गिरह बहुत ख़ूब सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई हर शेर क़ाबिले तारीफ़ है गिरह भी ख़ूब बधाई स्वीकार कीजिये सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय zaif।जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका सादर"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय अमित जी, नमस्कार बहुत धन्यवाद समझ गई आपकी बात देखियेगा सानी फिर कहा है, और  2 मक़्ते भी…"
2 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय लक्ष्मण जी  बहुत शुक्रिया आपका, बेहतरी के लिए प्रयासरत रहूंगी सादर"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय Richa जी  पिन्हाँ की जगह नुमायाँ क़ाफ़िये का प्रयोग करें। इस भाव के साथ कि "जो…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"आदरणीय अजय गुप्ता 'अजेय' जी आदाब, तरही मिसरे पर ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार…"
3 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-153
"ग़ज़ल 2122 1122 1122 22/112 उसकी आमद से जब आबाद शबिस्ताँ होगाबा'द   मुद्दत के …"
3 hours ago

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service