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“सर, दरवाजा खोलिए” प्रोफेसर राघव की शोध छात्रा नूर ने दरवाजे पर दस्तक देते हुए आवाज दी

“अरे! नूर तुम, दोपहर में अचानक, कैसे?” दरवाजा खोलते हुए प्रोफेसर राघव ने आने की वजह जाननी चाही

“ हाँ सर, एक रिसर्च पेपर में करेक्शन के लिए आई थी”

“ पर अभी तो मैडम घर पर नहीं हैं,और बाज़ार से कब तक लौटें इसका भी अंदाज नहीं है,आखिर तुम कब तक इस धूप में बाहर इंतज़ार करोगी”  प्रोफेसर राघव् ने त्वरित जवाब  दिया

“ बाहर क्यों सर ?” नूर ने कौतूहल से पूंछा

‘’ बस कुछ विबशता है “

“ कैसी विबशता सर “ चौंकते हुए अंदाज में नूर ने पूंछा

“ बात सिर्फ इतनी है नूर कि कुछ हैवानो की हैवानियत ने ऐसे प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं कि स्त्री पुरुष प्रजाति का तन्हाई में एक साथ होना,चंद रिश्तों को छोड़कर, समाज को अनैतिक ही लगता है”

“ लेकिन सर मैं तो आपकी बेटी जैसी हूँ “

“ हाँ! मैं जानता हूँ लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि इसमें उम्र के फासले और बालों की सफेदी भी अपने अर्थ खो चुकी है .....और ..और हम जैसे साधारण लोग अपनी पवित्रता को सिद्ध करने के लिए सीता जैसी अग्नि परीक्षा भी तो नहीं दे सकते हैं “ गंभीर मुद्रा में प्रोफेसर राघव नूर को समझा रहे थे

“ मैं सब समझ गयी सर” दरवाज़े से अपने कदम पीछे हटाते हुए नूर ने कहा

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by vijay nikore on December 14, 2017 at 4:40pm

बहुत ही खूबसूरत लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय  डॉ.आशुतोष मिश्रा जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 29, 2017 at 7:38pm
लाजवाब कोटि कोटि बधाई
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 28, 2017 at 4:00pm
आदरनीय समर सर रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए आशीर्वाद सम होती है ह्रदय से आभारी हूँ आपका सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 28, 2017 at 3:58pm
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी लघु कथा लेखन के आरती झुकाव आपकी रचनाये सतत पढ़कर ही हुआ है आपका मार्गदर्शन मुझे मिलता रहे इस कामना के साथ सादर
Comment by Samar kabeer on November 28, 2017 at 2:23pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 27, 2017 at 8:59pm
वाह। बेहतरीन सृजन के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी। जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी की टिप्पणियों से सहमत हूं।
Comment by नाथ सोनांचली on November 27, 2017 at 6:28pm
डॉ आशुतोष मिश्रा जी सादर अभिवादन। बढ़िया विषय लिया है आपने, वैसे गेंहू के साथ घुन भी पीस जाता है, क्योकि ऐसा माहौल बनाने में केवल एक पक्ष दोषी नहीं है, तथापि इसमें अच्छे लोग भी हैं। बढ़िया विषय को लघुकथा के रूप में ढालकर बेहद संजीदगी से आपने इसे प्रस्तुत किया है। कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ भी हैं जिसे देख लीजियेगा। इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 27, 2017 at 1:07pm
आदरणीय तेजवीर जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 27, 2017 at 1:04pm
आदरणीय आरिफ जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक और मार्गदर्शल प्रतीक्रिया के। लिए ह्रदय से आभारी हूँ पात्र के नाम के सम्बन्ध में आपके अनमोल सुझाव के लिए हार्दिक आभार सादर
Comment by TEJ VEER SINGH on November 26, 2017 at 8:23pm

हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ आशुतोष जी।बेहतरीन एवम संदेश प्रद लघुकथा।

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