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“क्या पढ़ रही हो बेटा, लैपटॉप पर इस कदर आखें गडाये?”-साहित्यकार मनमोहन ने अपनी बेटी रूपा से सवाल किया
“कुछ नहीं पापा, साहित्य सेवा मंच पर प्रकाशित रुपेश जी की कहानी पढ़ रही हूँ, लेकिन पापा इस शानदार रचना पर किसी की कोई भी प्रतिक्रिया नहीं है” रूपा ने जवाब देते हुए प्रश्न किया
“शानदार रचना! नहीं बेटा बड़ी कमियाँ हैं इसके लेखन में“
“कमियाँ हैं! कमियां हैं तब तो आपको निश्चित रूप से मंच से जुड़े हर सदस्य को इस पर प्रतिक्रिया करनी चाहिए थी”
“ हाँ, बेटा तुम सही कह रही हो, लेकिन ये महाशय सिर्फ अपनी रचना पोस्ट तो करना जानते हैं लेकिन किसी की भी रचना पर दो शब्द लिखना इन्हें गंवारा नहीं है इसलिए कोई इनकी रचनाओं पर भी नहीं लिखता”
“लेकिन पापा इससे तो मंच के पाठकों और साहित्य में पदार्पण करने वाले नव अभ्यासी मार्गदर्शन से महरूम रह जायेंगे” रूपा ने गंभीरता के साथ अपने पिता से कहा
“ नहीं बेटा! ऐसा नहीं है, मैंने और कई रचनाकारों ने इनकी रचना पर प्रतिक्रिया स्वरुप कुछ कमियों को इंगित किया था तो इनके जवाब में रोष परिलक्षित हो रहा था और फिर इन्होने मेरी रचनाओं की बखिया उधेड़ना शुरू कर दिया” अपनी कृत्यों को स्पष्ट करने की चेष्टा करते हुए मनमोहन ने कहा
“मतलब पापा, आप ये मानते हैं कि आपकी रचनाओं में कोई कमी नहीं है और प्रतिक्रियाओं में मिलने वाली वाह वाह आपकी रचना की पूर्णता को सिद्ध कर रही हैं ....या फिर एक दूसरे की रचनाओं पर तारीफ करके आप लोग एक दूसरे को साहित्य में स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं”- रूपा ने बिश्लेश्नात्मक तरीके से अपनी बात रखते हुए कहा
“नहीं बेटा तुम गलत कयास लगा रही हो, ऐसा कुछ भी नहीं है” गंभीर चिनतन्मयी मुद्रा में बेटी की तरफ देखते हुए मनमोहन ने कहा
“अच्छा पापा, एक बात बताईये, क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि इस वाहवाही से रचना अपना सुंदरतम स्वरुप प्राप्त करने से बंचित रह जाती है? ......क्या आपको नहीं लगता है कि परीर् को मिलने वाले वाले अंक परीक्षक की भी योग्यता पर निर्भर करते हैं.?” प्रश्न पर प्रश्न करते हुए रूपा ने कहा
“सहमत हूँ, तुम्हारी हर बात से सहमत हूँ” रूपा के चेहरे की तरफ खुशी और लाचारी के मिले जुले भावों से देखते हुए मनमोहन ने कहा
“मतलब, मुझे सब समझ में आ गया ...साहित्यकार कहलाने की चाह लिए आप सब यूं ही लिखते रहेंगे साहित्य का जनाजा निकलता है तो निकलता रहे” लैपटॉप को शट डाउन करके कमरे से बाहर निकलते हुए रूपा ने कहा


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr. Vijai Shanker on November 17, 2017 at 5:41am
सुन्दर ,सार्थक प्रयास। इस जटिल प्रश्न को उठाने के लिए बधाई , आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी , सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on November 16, 2017 at 4:36am
समाज और साहित्य में चल रहे उठापठक के बीच से कटाक्ष बुनती एक लघुकथा कहने का आपने बढ़िया प्रयास किया है, इसके लिए बधाई आद0 डॉ आशुतोष मिश्रा जी। आद0 रवि प्रभाकर जी के बातों पर गौर कीजियेगा
Comment by vijay nikore on November 14, 2017 at 6:58pm

लघु कथा का संदेश बहुत अच्छा लगा। हार्दिक बधाई, आदरणीय आशुतोष जी।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2017 at 3:41pm

आदरणीय रवि प्रभाकर जी आपने मेरी रचना को अपना अमूल्य समय और मार्गदर्शन दिया उसके लिए मैं ह्रदय से आभारी हूँ ..आपके मशविरे पर अमल करूंगा ..हाँ आदरणीय एक बात जो मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ वो यह है कि संवाद चूंकि बेटी और पिता के बीच में था इसलिए भाषा को मिलावट से बचाना चाहा था दोस्तों के बीच या अपनी उम्र वाले लोगों के साथ बात करने का तरीका थोडा अलग हो जाता है यह मेरी अपनी सोच है इस पर भी आप मार्गदर्शन देने का कष्ट करें सादर 

Comment by Ravi Prabhakar on November 14, 2017 at 2:52pm

आदरणीय आशुतोश जी,  प्रस्‍तुत लघुकथा का कथानक बढ़ीया है । परन्‍तु भाषा अस्‍वभाविक सी लगी।  जैसे इस संवाद में / नहीं बेटा! ऐसा नहीं है, मैंने और कई रचनाकारों ने इनकी रचना पर प्रतिक्रिया स्वरुप कुछ कमियों को इंगित किया था तो इनके जवाब में रोष परिलक्षित हो रहा था और फिर इन्होने मेरी रचनाओं की बखिया उधेड़ना शुरू कर दिया” अपनी कृत्यों को स्पष्ट करने की चेष्टा करते हुए मनमोहन ने कहा /  लघुकथा में आम बोलचाल वाले शब्‍द प्रयोग करना उचित माना जाता है । बेटे की भाषा भी पात्रानुकूल नहीं लग रही । लैपटॉप पर काम करने वाले लड़के कुछ कुछ अंग्रेजी के शब्‍दों का प्रयोग भी करते हैं। शीर्षक चयन बेहतर है। सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2017 at 9:29am

आदरनीय कालिपद प्रसाद जी उत्साह वर्धन के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2017 at 9:28am

आदरणीय आरिफ जी आप मुझे हर रचना पर मार्गदर्शन देते हैं ह्रदय से आभारी हूँ आपका सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2017 at 9:28am

aआदरणीय सलीम राजा रेवा जी रचना पर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 14, 2017 at 9:27am

आदरणीय समर सर रचना पर आपके प्रोत्साहन से उर्जान्वित महसूस कर रहा हूँ सादर 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 14, 2017 at 8:08am

बहुत सुन्दर सन्देश प्रेषित हुआ है आ डॉ आशुतोष जी , वधाई

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