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बाज़ार में जूतमपैजार (लघुकथा)/ शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"अब्बू, चलिए जूतों की दुकान पर!"
"नहीं बेटा, ई़़द़ के लिए तुम ही कोई सस्ती सी चप्पलें ख़रीद लाओ मेरे लिए!"
"आप भी चलिये न, दिल बहल जायेगा!" सुहैल ने अपने अब्बू को पलंग से लगभग उठाते हुए कहा।
"ख़ाक दिल बहलेगा। वहां तो ऐसा लगता है कि ग्राहक, दुकान के नौकर और मालिक और जूते-चप्पलों की कम्पनियां सब एक-दूसरे को जूते मार रहे हों!"
"हां, सो तो है! जूतमपैजार और हमें ग़रीबी का अहसास!" सुहैल ने अब्बू को पलंग पर लिटाते हुए कहा।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2017 at 7:56pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहब।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 26, 2017 at 10:49pm
अच्छी लघु कथा हुई आदरणीय..सादर
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2017 at 7:29pm
हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2017 at 7:02pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आदाब।बेहतरीन लघुकथा।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 26, 2017 at 6:53pm
रचना पर समय देकर अनुमोदन व हौसला अफज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहब, मोहम्मद आरिफ़ साहब,, जनाब महेंद्र कुमार जी व आदरणीय कल्पना भट्ट जी।
आदरणीय महेंद्र जी दो बार'और'के प्रयोग की त्रुटि पर ध्यान आकृष्ट कराने व सुझाव के लिए सादर हार्दिक आभार।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 25, 2017 at 10:04pm

उम्दा लघुकथा लिखी है आपने आदरणीय शहजाद जी एक प्रश्न आ रहा है मन में अन्यथा न लीजियेगा 

"हां, सो तो है! जूतमपैजार और हमें ग़रीबी का अहसास!" सुहैल ने अब्बू को पलंग पर लिटाते हुए कहा।

यह एक बच्चे ने कही न बात , क्या इतनी गंभीर बात उसके मुंह से कहलवाना ठीक होगा ? कितना बड़ा है यह ? सादर |

Comment by Mahendra Kumar on September 25, 2017 at 8:07pm

वाह! बहुत ही उम्दा लघुकथा है आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. 

"दुकान के नौकर और मालिक जूते-चप्पलों की कम्पनियाँ"

सादर.

Comment by Samar kabeer on September 25, 2017 at 7:21pm
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,कम शब्दों में बहुत सुंदर लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on September 25, 2017 at 1:25pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,क्या कहने । बहुत ही मासूम लघुकथा में सशक्त कथानक को सफल अमली जामा पहना दिया आपने । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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