For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'पार्टियां अभी बाक़ी हैं !' (लघुकथा) /शेख़ शहज़ाद उस्मानी :

'पार्टियां अभी बाक़ी हैं !' (लघुकथा) :

एक दफ़्तर में त्योहार के अवकाश के बाद समोसे-कचौड़ी-आहार-रूपेण बधाईयों का दौर या 'दौरा सा' चला। सब अपने काम फिर से शुरू करने ही वाले थे कि उनमें से एक ने दूसरे से कहा- "कल तो तूने बधाई तक नहीं दी मेरे त्योहार पर! सोशल मीडिया पर मेरे धर्म और रीति-रिवाज़ों की जम कर खिल्ली उड़ा रहा था! उससे तेरे को कोई मेडल या अवार्ड मिल गया क्या?"
"तेरे को मिल गया क्या उन रीति-रिवाज़ों को दोहरा-दोहरा कर?" दूसरे ने कहा।
"तुझे तेरी कट्टरपंथी और पोंगापंथी से मिल गया क्या?" तीसरे ने चीख कर दूसरे से कहा।
"छोड़ो यार, समोसे-कचौड़ी का मज़ा ख़राब मत करो, अपना-अपना काम करो!" कुछ अनहोनी टालने की कोशिश कर चौथे ने उन तीनों को नियंत्रित करने के लिए कहा।
"हां, यार पार्टियों के मज़े लो, ये त्योहार-व्योहार और भाषण तो चलते ही रहते हैं!" उन सब में से एक ने तम्बाकू की पुड़िया मुंह में उड़ेलते हुए कहा। किसी ने सिगरेट फूंकी, किसी ने कोल्ड-ड्रिंक हलक़ में उड़ेला।

(मौलिक व अप्रकाशित)

शेख़ शहज़ाद उस्मानी

[03 सितम्बर, 2017]

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 29, 2017 at 8:01pm
समालोचनातत्मक टिप्पणी और मार्गदर्शन के लिए सादर हार्दिक आभार आदरणीय डॉ.आशुतोष मिश्रा जी।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 5, 2017 at 9:21pm
आदरणीय शेख जी या रचना के लिए हार्दिक बधाई। आपकी पिछले तमाम रचनाओं की तुलना में यह रचना कुछ कमी के साथ लग रही है । इस बुध पर मेरी जानकारी नहीं है लेकिन आपकीहर लघु कथा पढ़के कुछ न कुछ सिखने की कोशिश जरूर करता हूँ
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 5, 2017 at 7:57pm
रचना पर उपस्थित हो कर हौसला अफज़ाई व बेबाक मार्गदर्शक समीक्षाओं व सुझावों के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर साहब, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब और आदरणीय महेंद्र कुमार जी। रचना पर पुनः ग़ौर करूंगा। दरअसल यह सोशल मीडिया पर अभी हाल में चल रही सकारात्मक व नकारात्मक बहसों पर मेरी एक प्रतीकात्मक रचना का प्रयास था। शीर्षक भी इसी कारण ऐसा लिखा था।
Comment by Mahendra Kumar on September 5, 2017 at 4:44pm

आ. शेख़ शहज़ाद उस्मानी जी, लघुकथा अच्छी है किन्तु इसका शीर्षक इसके साथ न्याय नहीं कर रहा है. शीर्षक में संशोधन और थोड़े से संपादन से यह उम्दा लघुकथा हो जाएगी. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by PHOOL SINGH on September 4, 2017 at 3:02pm

प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on September 3, 2017 at 6:34pm
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब, अच्छा प्रयास । बधाई स्वीकार करें
Comment by नाथ सोनांचली on September 3, 2017 at 4:46pm
आद0 शहजाद उस्मानी साहब आदाब, मैं आपके लघुकथा का प्रशंशक रहा हूँ, पर इस कथा में वो बात उभर नही पायी जो अन्य दूसरी में होती है। खैर। आपको इस सृजन पर बधाई।

आप मेरी भी प्रथम लघुकथा (नासमझी) पर समीक्षात्मक प्रतिक्रिया दीजिये, ताकि इस विधा में कुछ और अच्छा कर सकूँ।
Comment by Samar kabeer on September 3, 2017 at 11:51am
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,लेकिन आप जो सन्देश देना चाहते हैं वो पूरी तरह उभरकर सामने नहीं आ सका,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service