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नूर की हिंदी ग़ज़ल-बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?

२१२२, २१२२,२१२ 
.
बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
.

सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
.

राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
.

देख कर इक कोमलांगी के अधर,   
कल्पना लेने लगी आकार क्या? 
.

आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.  

.
निलेश "नूर"
.
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 806

Comment

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Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:38am
आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन, उम्दा गजल हुई हैं, दाद के साथ मुबारकबाद आपको।
Comment by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 5:38am
आद0 नीलेश भाई जी सादर अभिवादन, उम्दा गजल हुई हैं, दाद के साथ मुबारकबाद आपको।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 11, 2017 at 9:07pm
आदरणीय नीलेश भाई बहुत ही सन्देश प्रद और आउन दिखाती शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 7:45pm

शुक्रिया आ. तस्दीक़ अहमद साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 7:44pm

शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 7:44pm

शुक्रिया आ. रवि जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 7:44pm

शुक्रिया आ. नरेन्द्रसिंह जी 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 11, 2017 at 6:17pm
जनाब नीलेश साहिब, राष्ट्र को समर्पित सुंदर ग़ज़ल,बधाई स्वीकारें
Comment by Samar kabeer on May 11, 2017 at 5:48pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,वाह बहुत ख़ूब, ये ग़ज़ल भी कमाल की हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 4:10pm

क्‍या कहने अंदाजे बयां के आदरणीय नीलेश जी बहुत खूब हर अश्‍आर बढि़या कहा है  बहुत बहुत बधाई

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