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है गिला, तो गिला कीजिए(गजल)/सतविन्द्र

212 212 212
बात जो हो कहा कीजिए
दिल में ही क्यों रखा कीजिए?

चार दिन की है ये जिंदगी
बस ख़ुशी से रहा कीजिए

जो बुराई करे आपकी
आप उसका भला कीजिए।

रूठना बात अच्छी नहीं
है गिला, तो गिला कीजिए

मिल गये जब जरूरत हुई
बे ग़रज भी मिला कीजिए।

टूटता वो अकड़ता है जो
वक्त आए झुका कीजिए।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on May 5, 2017 at 7:59pm

आदरणीय सतविन्द्र भाई , छोटी बहर मे , अच्छी गज़ल कही है आपने । आदरनीय समर भाई की सलाहों पर अमल कीजियेगा ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 5, 2017 at 3:49pm

आदरणीय सतविंदर जी बढ़िया सन्देश देती इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2017 at 8:42am

आ. सतविंदर जी,
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है ...सभी बातें समर सर ने कह ही दी है ..फिर भी 
.
जो अकड़ता वही टूटता....ये मिसरा अधूरा सा है. एक अदद है कि कमी है इसमें ...
ग़ज़ल के लिये बधाई 
सादर 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 4, 2017 at 10:17pm
आदरणीय समर कबीर जी,आपका टिप्पणी का इंतज़ार रहता है,देखिये आते ही आपकी पारखी और बारीक।नज्र ने कमियों को पकड़ा है,आपकी इस्लाह दुरुस्त है,उसी के अनुसार परिष्कार कर रहा हूँ,सादर हार्दिक आभार संग नमन!
Comment by Mohammed Arif on May 4, 2017 at 8:12pm
आदरणीय सतविंद्र कुमार जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल का प्रयास । मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । आली जनाब समर कबीर साहब की टिप्पणी पर ग़ौर करें ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 4, 2017 at 6:41pm
छोटी बहर की प्यारी ग़ज़ल..आदरणीय समर जी की टिप्पड़ी शिक्षाप्रद है..
Comment by Samar kabeer on May 4, 2017 at 6:12pm
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

मतले के दोनों मिसरों में 'दिल'शब्द भला नहीं लगता,एक तो छोटी बह्र में वैसे ही गुंजाइश कम होती है,हालांकि ये कोई ऐब नहीं है लेकिन इससे पाठक पर अच्छा तास्सुर नहीं पड़ता,इसलिये बचना चाहिये, उम्म्मीद है आप मेरी बात समझ गये होंगे ।

'जो बुरा कर रहा आपका
उसका भी बस भला कीजिये'

इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, दूसरी बात ये कि सानी मिसरे में 'भी बस'भर्ती के शब्द हैं,इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-
'जो बुराई करे आपकी
आप उसका भला कीजिये'
'मिल लिए जब ज़रूरत हुई
ऐसे भी तो मिला कीजिये'
इस शैर के ऊला मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है, ये शैर और साफ़ हो सकता है :-
'मिल गए जब ज़रूरत हुई
बे ग़रज़ भी मिला कीजिये'
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 4, 2017 at 3:17pm
आदरणीय गुरुप्रीत सिंह जी,अनुमोदन एवं प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया!
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 4, 2017 at 10:23am

बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय सतविन्द्र जी..., सभी अशआर अच्छे लगे 

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