For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उस से मुझको सच में कोई शिकायत भी नही (ग़ज़ल)

2122, 212, 2122, 212

उससे मुझको सच मे कोई शिकायत भी नही,
हाँ मगर दिल से मिलूँ अब ये चाहत भी नही।

इस बुरुत पर ताव देने का मतलब क्या हुआ,
गर बचाई जा सके खुद की इज्जत भी नही।

अब अँधेरा है तो इसका गिला भी क्या करें,
ठीक तो अब रौशनी की तबीअत भी नही।

आती हैं आकर चली जाती हैं यूँ ही मगर,
इन घटाओं मे कोई अब इक़ामत भी नही।

जुल्म सहने का हुआ ये भी इक अन्जाम है,
अब नजर आँखों में आती बगावत भी नही।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1094

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 21, 2017 at 12:10pm
वाह बहुत खूब ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 20, 2017 at 8:32pm

बहुत खूब आ. हेमंत जी...
अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई...

Comment by Samar kabeer on April 20, 2017 at 6:05pm
जनाब हेमन्त कुमार जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
बाक़ी जनाब रवि जी बता ही चुके हैं ।
Comment by Samar kabeer on April 20, 2017 at 6:03pm
जी,रवि जी 'शिकस्ते नारवां'नहीं,"शिकस्त-ए-हर्फ़-ए-नारवा',जी हाँ गुंजाइश है ।
Comment by Hemant kumar on April 20, 2017 at 2:43pm
आदरणीय सर प्रणाम!
ग़ज़ल की सराहना के लिए एवं सुधारात्मक सुझाव देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
"अब नजर आखों में आती बगावत भी नही" से सुधार कर रहा हूँ।
चौथे शेर के सानी मिसरे मे "बरसती"को सही वज्न में लाने की कोशिश करूंगा...बस इसी तरह स्नेह बनाएँ रखें
आपका पुनः धन्यवाद!
सादर.....
Comment by Ravi Shukla on April 20, 2017 at 1:19pm

एक सवाल और है जो भी गुण्‍ाी जन इस गजल पर आएं कृपया बताएं कि इस बहर में शिकस्‍ते नारवां की गुजांइश  है या नहीं । हमें पढने में लग रहा है ।

Comment by Ravi Shukla on April 20, 2017 at 1:15pm

आदरणीय हेमंत जी  अच्‍छी  गजल कही है आपने मुबारकबाद कुबूल करें ।

आखिरी शेर पर नज्र और नजर में हमें कुछ संशय है आप शायद देखने की बात कर रहे है आपने नज्र लफ्ज लिया है जिसका अर्थ अता करना है देना है । शेर के हिसाब से नजर उपयुुक्‍त हो सकता है

अब नजर आखों में आती बगावत भी नहीं  इस पर भी विचार कर सकते है

चौथे शेर में सानी मिसरें में पहला रुक्‍न देख ले बरसती 122 के वज्‍न में है और अपनी बहर 2122 है । सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
53 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
16 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन।बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service