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अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,--ग़ज़ल

2212/2212/2212

अक्सर मैं फूलों को बचाया करता हूँ,

काँटो से मैं खुद को सजाया करता हूँ।



इन मन्दिरों में मस्जिदों में जाना क्या,

कुछ भूखे बच्चों को खिलाया करता हूँ।



रोता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,

गम को मियाँ हँस कर छुपाया करता हूँ।



मुझसे भी मिलने गाँव तुम आया करो,

मै सब को आईना दिखाया करता हूँ।



मै प्यार मे जीता करूं ! चाहत नही,

मै प्यार मे सब हार जाया करता हूँ।

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on May 11, 2017 at 8:24pm
जनाब हेमन्त कुमार जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
एक बात आपको बताना चाहता हूँ वो भी इसलिये कि आप अभी सीखने के इच्छुक हैं,वो ये कि ग़ज़ल सिर्फ़ बह्र साधने का नाम नहीं है,इसके लिए अच्छा कथ्य,शिल्प,मिसरों की चुस्त बंदिश भी ज़रूरी होती है,मैं हर नये सीखने वाले को ये मश्विरा देता हूँ कि अपनी बनाई हुई ज़मीन में ग़ज़ल न कहें मश्क़-ए-सुख़न(अभ्यास)के लिये जरूरी है कि पुराने उस्तादों के मिसरे पर ग़ज़ल का अभ्यास करें उसके बाद जब कुछ कामयाबी मिल जाये तब अपनी बनाई हुई ज़मीन पर ग़ज़ल कहें,उम्मीद है थोड़े को बहुत समझते हुए मेरी बात पर ध्यान देंगे,आपसे बहुत सी आशाएं जुडी हैं,मेरी शुब्जमनाएँ आपके साथ हैं ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 8:23pm

आ. हेमंत जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है.... और भी बेहतर हो सकती थी/..
.
रोता बहुत हूँ पर तुने जाना नही,.... इस मिसरे की तक्तीअ कर के देखिये...

गाँव आने से आईने   का सम्बन्ध भी नहीं जुड़ रहा है ..
सादर 

Comment by Ravi Shukla on May 11, 2017 at 4:13pm

आदरणीय हेमंत जी अच्‍छी गजल कही है बधाई

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 10, 2017 at 8:24pm
अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय..सादर
Comment by Hemant kumar on May 10, 2017 at 6:29pm
आदरणीय मिश्रा जी ग़ज़ल की सराहना और आपके प्यार के लिए बहुत बहुत धन्ययवाद!
जी अभी अभी ही मैने यह मंच ज्वाइन किया है दो चार ग़ज़ल ही ले दे के पोस्ट हुई है..
सादर।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 10, 2017 at 5:42pm
आदरणीय हेमंतजी पहली बार आपकी रचना को पढ़ने का सुअवसर मिला रचना अच्छी लगी रचना के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by Hemant kumar on May 10, 2017 at 3:48pm
आदरणीय आरिफ सर मेरी ग़ज़ल पर आने और हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ..
सादर...
Comment by Mohammed Arif on May 10, 2017 at 1:39pm
आदरणीय हेमंत कुमार जी आदाब,हर शे'र लाजवाब । बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शे'र दर शे'र दिली मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए ।

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