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कहीं ये नीयत फिसल न् जाए

121 22 121 2 2 121 22 121 22

नई जवानी नई अदाएं
कहीं ये नीयत फिसल न् जाए ।।
जरा सँभालो अदब में पल्लू
कोई इरादा बदल न् जाए ।।

कबूल कर ले सलाम मेरा
ऐ हुस्न वाले तुझे है सज़दा ।
मेरी मुहब्बत का दौर यूं ही
तेरी ख़ता से निकल न् जाए ।।

बड़ी तमन्ना थी महफ़िलो की
ग़ज़ल में उसके पयाम होगा ।
उधर है दरिया में बेरुखी तो
इधर समंदर मचल न् जाए ।।

है क़त्ल का गर तेरा इरादा
तो दर्द देकर गुनाह मत कर ।
हराम होगा ये इश्क़ तेरा
ख़ुदा के घर तक दखल न् जाए ।।

अगर ज़मीं में है तिश्नगी कुछ
तो बादलों पर यकीन रखना ।
तेरी बेसब्री बड़ी जुदा है
तमाम ख्वाहिश निगल न् जाए ।।

ये गर्म झोंके बता रहे हैं
वो आग अब तक बुझी नहीं है ।
खुदा से इतनी सी इल्तज़ा है
वो मोम का घर पिघल न् जाए ।।

न् राज पूछो मेरी जुबाँ से
मेरी मुहब्वत तबाह होगी ।।
मैं जख़्म अपना छुपा गया हूँ
ये दिल तुम्हारा दहल न् जाए ।।

मौलिक अप्रकाशित --नवीन मणि त्रिपाठी

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Comment by Naveen Mani Tripathi on April 18, 2017 at 6:34pm
आ0 शुक्ला सर सादर नमन
Comment by Ravi Shukla on April 18, 2017 at 3:09pm

आदरणीय नवीन मणि जी बढि़या गजल कही आपने बधाई हाजिर है । एक शेर में आपने दख्‍ल 21 को दखल 12 के वज्‍न में बांधा है शायद दख्‍ल का वजन 21 है ।

तेरी बेसब्री बड़ी जुदा है  यहां पर आपने बेसब्री के पहले हर्फ में मात्रा गिराई है इस पर नजरे सानी कीजियेगा

हमें लगता है मतले को और भी अच्‍छा आप कह सकते है । अच्‍छी गजल के लिये बधाई फिर से । सादर

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 16, 2017 at 1:05am
आ0 कबीर सर सादर नमन ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on April 16, 2017 at 1:03am
आ0 बृजेश जी आभार
Comment by Naveen Mani Tripathi on April 16, 2017 at 1:03am
आ0 आरिफ सर शुक्रिया ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 15, 2017 at 10:51pm
वाह आदरणीय बेहतरीन ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Samar kabeer on April 15, 2017 at 6:10pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by Mohammed Arif on April 15, 2017 at 6:03pm
वाह!वाह!!बधाई आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on April 14, 2017 at 10:36am
आ0 नीलेश सर शुक्रिया ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on April 14, 2017 at 10:36am
बहुत आभार आ0 नीलेश सर

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