For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल....मुहब्बत आह भरती है इबादत हार जाती है

1222 1222 1222 1222
सदा पत्थर से टकरा कर मेरी बेकार जाती है
मुहब्बत आह भरती है इबादत हार जाती है

हमारे दर्द के किस्से बराए आम हैं कब से
तुम्हारे आसरों तक भी कुई चीत्कार जाती है ?

अज़ब सी बहशतों में आजकल डूबा हुआ है दिल
सँभालूँ जो मैं दरवाजा दरक दीवार जाती है

जरा सा रोक लो ये गम जरा सीं राहतें दे दो
मुसलसल बेरुखी भी अब ह्रदय के पार जाती है

तुम्हें भी इल्म हो जायेगा तुम भी जान जाओगे
क्षितिज के पार सच्चे इश्क़ की झनकार जाती है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 819

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 18, 2017 at 2:48pm
अदरणीय डा.मिश्रा जी आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार
Comment by Samar kabeer on February 16, 2017 at 9:15pm
'पथ्थर'शब्द टाइपिंग की गलती से लिख दिया,लिखना "पत्थर'ही था,जनाब रवि शुक्ल जी के सुझाव मुझे पसंद आये ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 16, 2017 at 8:29pm
आदरणीय बृजेश जी इस सुंदर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 16, 2017 at 8:10pm
आदरणीय रामबली गुप्ता जी रचना पटल पे आपकी उपस्थिति स्वागतयोग्य है..हार्दिक आभार सादर..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 16, 2017 at 8:07pm
उचित है अदरणीय रवि शुक्ला जी..आपकी सलाह सर्वथा उचित है मतले पे अधिक समय दिया ही जाना चाहिए..इसका मैं पूर्ण ध्यान रखूँगा..मतले के उला का आपका सुझाव भी खूबसूरत है..सानी में अदरणीय दो बातें कहना चाहता हूँ..उला में पत्थर के दो मायने हैं..पहला पत्थर दिल सनम..और दूसरा पत्थर के भगवान(नाकाम प्रेमी के लिए)जब हर सदा बेकार जाती है तब..एक तरफ मुहब्बत गम में डूबकर आहें भरती है और दूसरी तरफ सदा बेकार जाती है इसलिए इबादत हार जाती है..सादर
Comment by रामबली गुप्ता on February 16, 2017 at 12:39pm
बढ़िया ग़ज़ल हुई है भाई बृजेश कुमार जी। हृदय से बधाई लीजिये। सादर
Comment by Ravi Shukla on February 16, 2017 at 12:32pm

आदरणीय ब्रजेश कुमार जी  आपकी गजल पढ़ी अच्‍छी लगी बधाई स्‍वीकार करें ।

जहां तक समर साहब का कथन है हम जो समझे वो इंगित ये है कि मलते के उला मे व्‍याकरण का दोष है टकरा कर सही वाक्‍य विन्‍यास होना चाहिये जो कि बहर के हिसाब से नहीं आ सका । इस कदर आदरणीय समर साहिब के अनुसार भर्ती का है इसे सुधार कर मतले के उला मिसरे को सही किया जा सकता है

एक त्‍परित सुझाव आपके भाव को ध्‍यान में रख कर इस प्रकार है

 सदा पत्‍थर से टकरा कर मेरी बेकार जाती है

मगर सानी में अभी भी प्रश्‍न अनुत्तरित हे कि मुहब्‍बत के आह भरने से इबादत कैसे हारती है

आदरणीय गिरिराज जी की एक सलाह को आप भी ध्‍यान में रखें कि मतले को अपेक्षकृत अधिक समय दें शानदार मतला अच्‍छी गजल का स्‍वरूप निश्चित करता है

दूसरे शेर में हुजरे सही शब्‍द है, इसे सुधारने की जरूरत है । इस शेर सीधे सीधे शब्‍दों में कहे तो ( त्‍वरित सुझाव मात्र )

हमारे दर्द की आहें बुलाती हैं तुम्‍हे ले‍किन

तुम्‍हारी बेहिसी को देख कर ये हार जाती हैं   बाकी शुभ शुभ

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 15, 2017 at 6:38pm
आदरणीय 'कुशक्षत्रप' जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार..मतले में सुधार का प्रयास करता हूँ..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 15, 2017 at 6:35pm
परम आदरणीय समर कबीर जी..आपके पोस्ट पे आने का बेसब्री से इंतजार रहता है क्योंकि आप बारीक़ से बारीक़ कमी भी खोज के इंगित करते हैं जिससे हम सीखने वालों का बहुत ज्ञानवर्धन होता है..मतले के उला मिसरे में मैंने 'पत्थर'लिखा और आज तक यही पढता आया हूँ..क्या ये शुद्ध नहीं है? 'इस कदर' को 'इस तरह' या 'बेबजह' या 'बेसबब' लिखा जाये तो उचित रहेगा..
दूसरे शैर के सानी को 'तुम्हारे आसरों तक भी कुई चीत्कार जाती है'किया जाये तो कैसा रहेगा?
Comment by नाथ सोनांचली on February 15, 2017 at 3:54pm
आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन स्वीकार करें।ग़ज़ल पर आपजे प्रयास की प्रशंसा करता हूँ, मतला ऊला मुझे सटीक नही लग रहा है। आपको इस ग़ज़ल के लिए बधाई निवेदित करता हूँ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी । नववर्ष की…"
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।नववर्ष की हार्दिक बधाई…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . दिन चार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .शीत शृंगार
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post नूतन वर्ष
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।।"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-117
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लेखन के विपरित वातावरण में इतना और ऐसा ही लिख सका।…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service