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आदरणीय बृजेश जी हमारे कहे को मान देने के लिये आभार
आदरणीय ब्रजेश जी इस बहर में अच्छी कोशिश हुई है गजल की दाद हाजिर है । हुस्ने मतला के सानी में लक्षण शब्द कुछ अलग सा लग रहा है सभी अल्फाज उर्दू में है और मात्र लक्षण शब्द ही हिंदी का लिया है इसे उचित शब्द से बदले तो हमारी विनम्र राय में और अच्छा हो सकता है शेर ।
अाखिरी शेर के भाव तक हम भी नहीं पंहुचे साथ ही अगर वाक्य देखें तो निकली लबो से आह किसी बेजुबान की होना चाहिये आह स्त्रीलिंग शब्द है आपका रदीफ बदल रहा है इस तरह से ।
ज़ुल्मो सितम को देख के इस आसमान के
छलकें न अश्क क्या करें बेबस किसान के एक त्वरित सुझाव मात्र है
है मजहबी अलाव, सुलगते सभी बशर
बदहाल गाँव घर हुए भारत महान के इस शेर के उला मिसरे में हमारी सोच का नजरिया देखें
इस मजहबी अलाव ने सुलगा दिया वतन
बदहाल गावं गाँव घर हुए भारत महान के .... सादर
वीरां है मुददतों से मगर टूटता नहीं
ये हौंसले तो देखिये जर्जर मकान के...... बेहतरीन आ. बृजेश कुमार बृज जी, बधाई
आखिरी शेर कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा है
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