For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा.... मुहावरों की सार्थकता

मुहावरों में दोहा छंद की छटा...

गाल बजा कर दल गये, जो छाती पर मूंग.

वही अक्ल के अरि यहां, बने खड़े हैं गूंग. १

शीष ओखली में दिया, जब-जब निकले पंख.

उंगली पर न नचा सके, रहे फूंकते शंख. २

डाल आग में घी करे, हवन दमन की चाह. 

अंत घड़ों पानी पियें, खुलती कलई आह. ३

फूंक-फूंक कर रख कदम, कांटों की यह राह.

खेल जान पर तोड़ना, चांद-सितारे- वाह. ४

अपने पैरों पर करें, लिये कुल्हाड़ी वार.

दोष  और को दे रहे, उलटा यह संसार.५

मौलिक व अप्रकाशित

रचनाकार..... केवल प्रसाद सत्यम

Views: 850

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ASHISH KUMAAR TRIVEDI on August 11, 2016 at 11:15am

 बहुत सुंदर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 13, 2016 at 11:42pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, मुहावरों से दोहे रचने का यह प्रयोग सुंदर है. बहुत-बहुत बधाई. सादर.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 13, 2016 at 8:28am

आ० राजेश'दी जी, सादर प्रणाम!  आपके संशय में ज्ञान का स्रोत ही छिपा है.....मेरी जानकारी में छंद विधान केवल संस्कृत भाषा के लिये लिखा गया और इसे बाद में क्षेत्रीय भाषाओं के लिये कुछ शिथिलता के साथ अफ्न्गीकार किया गया ....परंतु आज तक इस खड़ी भाषा के लिये कोई अलग से  अथवा गुंजाईश करते हुए परिभाषित नही किया गया. इस लिये इन सनातनी छंदों में यदा कदा समाज की बोलचाल की भाषा का प्रयोग सरसता व माधुर्यता के लिये ही किया जाता रहा है.....यद्यपि कि इन विधानों में मात्रा की कोई छूट की इज़ाज़त नही है फिर भी कतिपय विद्वान लोग अपेक्षित मन चाही छूट लेते रहे हैं. इस सम्बंध में मैं कुछ नही कह सकता. दूसरे दोहा में आपने // खुलती कलई आह// कुछ चूट गया है? लिखा है...जी यहां ..कलई और आह...के बीच संस्कृत के संधि नियमों के अंतर्गत आपस में जोड़े गए हैं...यहांं (-) विग्रह छूट गया है....जैसे अन्य दोहे में..//चांद-सितारे- वाह// है.  //अंत घड़ों पानी पियें,// मेरी समझ में // घड़ों // से ही पता चलता है कि असंख्य घड़े जिसे हम गिन नही सकते या गिनना नहीं चाहते......आपके इस विद्वतापूर्ण अनुसंशा के लिये आपका सहृदय धन्यवाद व हार्दिक आभार....सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 13, 2016 at 7:58am

आ० समर साहब जी,  सादर प्रणाम.   आपके द्वारा दी गयी विस्तृत जानकारी मुझे उत्साहवर्धक लगी.  आपको दोहे के साथ मुहावरों का प्रयोग पसंद आया, मेरी लेखनी धन्य हुई.  आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 13, 2016 at 7:52am

आ० सतविंदर भाई जी,  सादर प्रणाम.   आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 13, 2016 at 7:51am

आ० राहिला जी, सादर प्रणाम. जी, मात्रा तो बाद में आती है..सर्वप्रथम कविता  के भाव ही सर्वोपरि होते है....हां मात्रा का भी रोल कुछ कम नही होता है..इससे हम पठनीयता को लय, गति, ताल से जोड़ते हैं जिससे यह पढ़्ने में भी रोचक लगे. रचना की अनुसंशा हेतु आपका हार्दिक आभार.....सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 12, 2016 at 8:51pm

आपके इस सद प्रयास पर हार्दिक बधाई इसी तरह हमने कहावतों व् मुहावरों पर बहुत पहले दोहे लिखे थे यहाँ ओबीओ के ब्लॉग में ही होंगे |

आपने पहले दोहे में गूंगे शब्द को गूंग कर दिया तुक बनाने के लिए किसी मूल शब्द से छेड़ छाड़ क्या सही है आद० केवल जी ?

दुसरे दोहे में शीश को शीष लिखा है आपने --टंकण त्रुटी  रचना का सौन्दर्य बिगाड़ देते हैं आप इसका भी ध्यान रखिये 

दूसरा दोहा कम स्पष्ट है या उसका भाव मैं ही नहीं समझ पा रही |

अंत घड़ों पानी पियें, खुलती कलई आह---इसमें विषम चरण में अंत के बाद में की कमी खल रही है --घड़ों घड़ों पानी पिए कर सकते हो 

फूंक-फूंक कर रख कदम, कांटों की यह राह.

खेल जान पर तोड़ना, चांद-सितारे- वाह. ४--बहुत सुन्दर दोहा है किन्तु टंकण त्रुटी ने मजा किरकिरा कर दिया 

अपने पैरों पर करें, लिये कुल्हाड़ी वार.

दोष  और को दे रहे, उलटा यह संसार.५---वाह्ह्ह्ह  वाह बहुत सुन्दर 

Comment by Samar kabeer on July 11, 2016 at 10:28pm
कोशिश हमने भी कभी,की थी ये इक बार
लेकिन वो दोहा नहीं,ग़ज़ल कही थी यार
जनाब केवल प्रसाद जी आदाब,बहुत बढ़िया प्रयोग है, मज़ा आगया, बेहतरीन सृजन वाह दिल से ढेरों बधाइयाँ इस शानदार प्रस्तुति के लिये ।
दोहे का तो मालूम नहीं लेकिन ग़ज़ल में ये प्रयोग पहली बार हज़रत-ए-'दाग़'ने किया था,उनका मक़्ता देखिये :-
"'दाग़'आँखें निकालते हैं वो
उनको देदो निकाल कर आँखें"

उसके बाद एक ग़ज़ल मैने भी कही थी,मेरा एक शे'र देखिये :-
"सारे दानिश्वरओं के मुंह फ़क थ
चाल कुछ ऐसी चल गया सूरज"
इस बेहतरीन सृजन के लिये पुनः बधाई ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on July 11, 2016 at 9:39pm

दोहे पढ़कर आप के,रहते हम तो दंग

खूब कहावत जानते,नहीं गर्व का संग 

Comment by Rahila on July 11, 2016 at 9:11pm
मात्राओं का ज्ञान नहीं मुझे ।लेकिन दोहे इतने कमाल के लगे कि मन प्रसन्न हो गया ।खूब बधाई आपको आदरणीय सर जी ! सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service