प्रतिपल अच्छा देखिए
आंंख चुरा कर घूमते, मिला न पाए आंख.
आखों के तारे मगर, बिखरे जैसे पांख.1
आसमान से बात कर, मत अम्बर पर थूंक.
कण्ठ-हार बन कर चमक, अवसर पर मत चूक.2
प्रतिपल अच्छा देखिए, अच्छे में उत्साह.
बालमीकि - रैदास भी, हुए ब्रह्म के शाह.3
अच्छे दिन की सोच में, बुरी नहीं यदि सोच.
दीन-हीन के दु:ख भी दूर करें बिन खोंच.4
संसारिक उद्देश्य ने, रिश्ते गढ़े कुलीन.
व्यवहारिक संताप में, मानव करे मलीन.5
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आ0 सुधिजनो, सादर प्रणाम! यदि आप लोग अच्छी रचनाओ पर भी अपने अपने विचार दे, तो शायद इन बाढ़ सी रचनाओ पर काबू पाया जा सकता है। आप सभी महानुभावो का तहेदिल से आभार।। सादर
प्रतिपल अच्छा देखिए, अच्छे में उत्साह.
बालमीकि - रैदास भी, हुए ब्रह्म के शाह
जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना आवश्यक है।
आदरणीय केवल प्रसाद जी सुंदर भाव युक्त दोहों के लिए हार्दिक बधाई। आदरणीय द्वितीय दोहे के प्रथम सम चरणान्त में मेरे विचार से ''थूंक '' के स्थान पर ''थूक '' होना चाहिए. चतुर्थ दोहे के द्वितीय सम चरणान्त में ''खोंच'' शब्द समझ नहीं आया शायद आपका तात्पर्य ''खरोंच'' से था। पांचवें दोहे प्रथम आदि चरण में मेरे विचार में ''संसारिक '' शब्द ''सांसारिक'' होना चाहिए। कृपया इसे अन्यथा न लेवें। यदि कहीं त्रुटि हो तो कृपया मार्ग दर्शन करें।
बहुत सुन्दर दोहे आदरणीय । हार्दिक बधाई आपको | सादर |
आ० समर साहब, अस्सलामअलेकुम! प्रणाम! आपकी प्रसंशनीय प्रतिक्रिया पर हार्दिक आभार. जहां तक आपके प्रश्न को मैं समझ रहा हूं...वहां तक आधे अक्षर की कोई स्वतंत्र गणना नही होती है....हा यदि होती है तो आधा अक्षर जिस अक्षर से जुड़ा होता है, उसी के साथ या ठीक उसके एक अक्षर पूर्व के व्यंजन (अक्षर) के साथ और इनकी मात्रा कुछ यूं होती है...व्य व हा रि क = ११ २ १ १....... म स्त = २ १........स्व र = १ १..........अ र्प ण = २ १ १ ...सं स्का र = २ २ १ ....व्यं ज न = २ १ १ जी सर, मेरे ख्याल से अब आप समझ गए होंगे....इस हेतु विस्तृत जानकारी हेतु ओ.बी.ओ. के ही हिंदी की कक्षा को भी देख या पढ़ सकते हैं...सादर
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