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आ० भण्डारी भाई जी, कट -पेस्ट करने में ऐसी गल्तियां हो ही जाती हैं...अब सुधार कर लिया है. जी, ''मालिश'' की तुकांतता से सहमति प्रकट करने के लिया आपका तहेदिल से शुक्रिया. सादर
आ० रक्ताले भाई जी, आपकी कोशिश बहुत अच्छी है...आपने रचना पर अधिक ध्यान दिया जिसके लिये आपका आभार....////फूलों से कहते रहे....... कहते या कहती //...द्वितीय छंद में //जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.//.........यहाँ सम विषम चरणों का मेल देख लें,//राखो /आँखों .......तुक जांच लें//////
यह बात आपने किस आधार पर कही....सम-विषम किसे कहते हैं?...उसका निर्वहन किस प्रकार किया जाता है?.....कुण्डलिया.. रचना के शब्द सन्योजन की प्रक्रिया किस प्रकार की जाती है? आप पुन: बारीकी से पढ़े..और स्वयं भी अम्ल करें.....फिर बतायें..कि क्या होना चाहिये ?...सादर
आ. केवल भाई , आपने दूसरी प्रतिक्रिया जो मेरे नाम से दीहै , उसमे शायद आप किसी और को सम्बोधित है , नाम सुधार लीजिये नही तो उन तक आपनी बात नही पहुँचेगी ।
मालिश सच मे अच्छा तुकांत हो सकता है । आप वही कर लें। सादर ।
आ० भण्डारी भाई जी, आपकी कोशिश बहुत अच्छी है...आपने रचना पर अधिक ध्यान दिया जिसके लिये आपका आभार....कोशिश ..से अच्छा या बेहतर तुकांत..मालिस... भी हो सकता है...सादर
आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर, अच्छे कुण्डलिया छंद रचे हैं. बहुत-बहुत बधाई. फिरभी कुछ जगह एक बार देख लें. पहले छंद में //फूलों से कहते रहे....... कहते या कहती //./////द्वितीय छंद में //जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.//.........यहाँ सम विषम चरणों का मेल देख लें,//राखो /आँखों .......तुक जांच लें//सादर.
आदरणीय ये कैसा रहेगा -- छंदों मे अल्पज्ञ हूँ , फिर भी एक प्रयास किया है ।
नित्य प्रभा का लाल, दीप्ति की करता कोशिश
मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश
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