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झूठ मिटता गया देखते देखते (ग़ज़ल)

२१२ २१२ २१२ २१२

 

झूठ मिटता गया देखते देखते

सच नुमायाँ हुआ देखते देखते

 

तेरी तस्वीर तुझ से भी बेहतर लगी

कैसा जादू हुआ देखते देखते

 

तार दाँतों में कल तक लगाती थी जो

बन गई अप्सरा देखते देखते

 

झुर्रियाँ मेरे चेहरे की बढने लगीं

ये मुआँ आईना देखते देखते

 

वो दिखाने पे आए जो अपनी अदा

हो गया रतजगा देखते देखते

 

शे’र उनपर हुआ तो मैं माँ बन गया

बन गईं वो पिता देखते देखते

--------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by rajesh kumari on March 20, 2016 at 10:45am

बहुत  बढ़िया ग़ज़ल हर शेर खूबसूरत है हार्दिक बधाई आपको आ० धर्मेन्द्र जी 

Comment by जयनित कुमार मेहता on March 19, 2016 at 9:46pm
आदरणीय धर्मेन्द्र जी, कमाल की ग़ज़ल कही आपने। मुबारकबाद आपको।।
Comment by Rama Verma on March 19, 2016 at 1:44pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल, बधाई आपको
Comment by Rahul Dangi Panchal on March 18, 2016 at 8:17am
शे’र उनपर हुआ तो मैं माँ बन गया
बन गईं वो पिता देखते देखते
बहुत सुन्दर भैया जी
Comment by kanta roy on March 17, 2016 at 5:46pm

तार दाँतों में कल तक लगाती थी जो

बन गई अप्सरा देखते देखते------- हा  हा  हा  हा  ...वाह ! क्या  बात  है  आदरणीय धर्मेन्द्र जी , कमाल का  लिख  गए  है , बधाई 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on March 17, 2016 at 3:00pm
बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by Ravi Shukla on March 17, 2016 at 2:58pm

अादरणीय धर्मेन्‍द्र जी बढि़या ग़ज़ल कही है आपने बधाई

Comment by Samar kabeer on March 17, 2016 at 2:49pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ ।
Comment by रामबली गुप्ता on March 17, 2016 at 2:26pm
छोटी वह्र में बहुत ही सुंदर ग़ज़ल कही आ.धर्मेन्द्र सिंह जी बहुत बहुत सुंदर
Comment by narendrasinh chauhan on March 17, 2016 at 1:03pm

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