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माँ के हाथों सूखी रोटी का मजा - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122        2122         212

आँसुओं को यूँ  मिलाकर  नीर में

ज्यों  दवा  हो  पी  रहा हूँ  पीर में

**

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में

**

कौन  डरता   जाँ  गवाने  के  लिए

रख जहर जितना हो रखना तीर में

**

हर तरफ उसके  दुशासन डर गया

मैं न था कान्हा  जो बधता चीर में

**

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में

**

शायरी  कहता  रहा उलझन भरी

शब्द  बध  पाये  नहीं  जंजीर में

******

रचना मौलिक और अप्रकाशित

Views: 848

Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 26, 2014 at 5:30pm

आदरणीय लक्ष्मण जी   इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मेरी तरफ से हार्दिक बधाई सादर 

Comment by कल्पना रामानी on May 22, 2014 at 8:37pm

आदरणीय लक्ष्मण जी, बहुत सुंदर गजल कही है आपने, दिली बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on May 8, 2014 at 6:31pm

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में |    बेहतरीन !!

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में |  वाह वाह !!

बहुत अच्छी ग़ज़ल, आदरणीय लक्ष्मण भाई !!


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Comment by शिज्जु "शकूर" on May 5, 2014 at 1:48pm

आदरणीय लक्ष्मणजी बेहतरीन ग़ज़ल है दिली दाद कुबूल करें

Comment by Maheshwari Kaneri on April 20, 2014 at 7:44pm

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में.....बहुत ही भावपूर्ण रचना...

Comment by vijay nikore on April 20, 2014 at 11:55am

 

बहुत अच्छी गज़ल कही है। बधाई।

Comment by वेदिका on April 19, 2014 at 11:58pm
आँसुओं को यूँ मिलाकर नीर में
ज्यों दवा हो पी रहा हूँ पीर में//
बहुत खूब मतला हुआ है,
बढ़िया गजल पर हार्दिक बधाई
Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 5:42pm

बेहतरीन बहुत ही उम्दा ग़ज़ल सभी अशआर पसंद आये खासकर ये दो अधिक पसंद आये इनके लिए विशेषतौर से बधाई स्वीकारें.

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में .. बहुत ही लाजवाब शेअर

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में.. बेहतरीन

हर तरफ उसके  दुशासन डर गया

मैं न था कान्हा  जो बधता चीर में .. मुझे ये शेअर स्पष्ट नहीं लगा.

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 19, 2014 at 4:57pm

हाथ की रेखा  मिटाकर चल दिया

क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में

माँ के  हाथों  सूखी  रोटी का मजा

आ  न  पाया  यार  तेरी  खीर में

**

शायरी  कहता  रहा उलझन भरी

शब्द  बध  पाये  नहीं  जंजीर में

वाह सर बहुत खूब बधाई स्वीकारें

Comment by Deepak Sharma Kuluvi on April 19, 2014 at 1:17pm

हाथ की रेखा मिटाकर चल दिया
क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में

बहुत अच्छी रचना सर

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