खाली हो गई हूँ
इच्छाओं से, आशाओं से
व्यर्थ विचारों से
निरर्थक प्रवाहों से
अस्थिर लगावों से
अनर्गल खिंचावों से
आधुनिक चकाचौंध से
कौन जाने, मौत
कब दरवाजा खटखटा दे
साथ ले जाने को
किन्तु वह क्या साथ
ले जा पाएगी ?
वह तो पंच तत्वों में
तन को मिलाएगी
मुझे ना मार पाएगी
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 विजय निकोरे जी ,जानकर अत्यन्त हर्ष हुआ कि इस रचना से आपने आश्वासन प्राप्त किया। मेरा लेखन सार्थक हुआ।
बहुत ही सुन्दर रचना...
मुझको आश्वासन दे रही है कि जीवन में घबराना नहीं है
आ0 समर कबीर साहेब, रचना सुन्दर लगी , जानकर प्रसन्न हूँ।
बहुत आभार आपका
आ0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर ' जी । आपको रचना सुन्दर लगी , जानकर खुशी हुई।
हार्दिक धन्यवाद
मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी, सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन। सुन्दर प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई।
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