For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

7 फेलुन 1 फ़ा

मेरी यादों से वो यारो जब भी घबराते हों गे

माज़ी के क़िस्सों से अपने दिल को बहलाते हों गे

काले बादल शर्म से पानी पानी हो जाते हों गे

बाम प आकर जब वो अपनी ज़ुल्फ़ें लहराते हों गे

जैसे हमको यार हमारे समझाने आ जाते हैं

उसके भी अहबाब यक़ीनन उसको समझाते हों गे

हम तो उनके हिज्र में तारे गिनते रहते हैं शब भर

वो तो अपने शीश महल में चैन से सो जाते हों गे

सुब्ह चमन की सैर को जब भी यार निकलते होंगे वो

उनके कदमों में तो ख़ुद ही फूल बिखर जाते हों गे

बाद अज़ तर्क-ए-तअल्लुक़ उनको जब अहसास हुआ होगा

वो भी कुढ़ते होंगे दिल में वो भी पछताते हों गे

शाम ढले परदेस में हम ये बैठ के सोचा करते हैं

यार हमारे महफ़िल में अब साग़र टकराते हों गे

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1183

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on February 5, 2022 at 3:22pm

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Samar kabeer on February 5, 2022 at 3:20pm

जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका धन्यवाद ।

Comment by Aazi Tamaam on February 4, 2022 at 3:40pm

वाह वाह वाह क्या बात है

इस ग़ज़ल को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके लिये आ गुरु जी आपका बहुत बहुत आभार

बेहतरीन ग़ज़ल है वाह

Comment by Nilesh Shevgaonkar on June 9, 2021 at 10:39am

आ. समर सर,
अच्छी ग़ज़ल हुई है.. बधाई 

Comment by vijay nikore on February 25, 2020 at 10:38am

सोचा, बता दूँ, जाने कितनी बार आपकी इस गज़ल ने मुझको बुलाया, इसे पढ़ कर हर बार मुझको बहुत लुत्फ़ आया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 17, 2020 at 11:51am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by vijay nikore on February 15, 2020 at 4:06pm

मेरे भाई, समर कबीर जी, आपकी गज़ल पढ़ कर दिल खुश हुआ। रिश्ते में अपनी स्थिति और उनकी स्थिति को अच्छा बयाँ किया है।

Comment by TEJ VEER SINGH on February 15, 2020 at 12:04pm

हार्दिक बधाई आदरणीय समर कबीर साहब जी।आदाब। बेहतरीन गज़ल।

जैसे हमको यार हमारे समझाने आ जाते हैं

उसके भी अहबाब यक़ीनन उसको समझाते हों गे

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on February 14, 2020 at 4:11pm

आदरणीय समर साहब, आपको प्रणाम और हार्दिक बधाई! बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने।

Comment by मनोज अहसास on February 14, 2020 at 2:07pm

एक बेमिसाल ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय

आपको तो पता ही है मैं इस बहर पर भी आजकल काम कर रहा हूँ 

मुझे इस ग़ज़ल से बड़ी प्रेरणा मिलेगी

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम. . . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। रोटी पर अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
59 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आदाब।‌ हार्दिक धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' साहिब। आपकी उपस्थिति और…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं , हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रेरणादायी छंद हुआ है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"आ. भाई शेख सहजाद जी, सादर अभिवादन।सुंदर और प्रेरणादायक कथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to योगराज प्रभाकर's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)
"अहसास (लघुकथा): कन्नू अपनी छोटी बहन कनिका के साथ बालकनी में रखे एक गमले में चल रही गतिविधियों को…"
23 hours ago
pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service