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ग़ज़ल-गलतियाँ किससे नही होतीं-रामबली गुप्ता

ग़ज़ल
2122 2122 2122 212

गलतियाँ किससे नही होतीं भला संसार में
है मगर शुभ आचरण निज भूल के स्वीकार में

शून्य में सामान्यतः तो कुछ नही का बोध पर
है यहाँ क्या शेष छूटा शून्य के विस्तार में

आधुनिकता के दुशासन ने किया ऐसे हरण
द्रौपदी निर्वस्त्र है खुद कलियुगी अवतार में

सूर्य को स्वीकार गर होता न जलना साथियों
तो भला क्या वो कभी करता प्रभा संसार में

व्यर्थ ही व्याख्यान आदर्शों पे देने से भला
अनुसरण कुछ कीजिये इनका निजी व्यवहार में

लालसा दिल में यही मिल जाय वो मीठा शहद
जो मिला था माँ की लोरी थपकियों और प्यार में

प्रेम पूजा प्रेम ईश्वर प्रेम के ही पंथ सब
प्रेम ही कुरआन गीता बाइबिल के सार में

श्रम दिलों को जीतने में चाहिए उतना बली
चाहिए जितना हमें निज अहं के संहार में

रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 8:37pm
आदरणीय गिरिराज भाई जी प्रशंसा और प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार
Comment by रामबली गुप्ता on September 27, 2017 at 8:36pm
सादर धन्यवाद आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी
Comment by Gajendra shrotriya on September 27, 2017 at 6:35pm
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय रामबली गुप्ता जी।
शब्दशिल्प,कथ्य,प्रवाह सभी का सफल संयोजन किया है आपने।
सम्पूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई। इन अशआर के लिए खास तौर पर।
//आधुनिकता के दुशासन ने किया ऐसे हरण,
द्रौपदी निर्वस्त्र है खुद कलियुगी अवतार में//

//लालसा दिल में यही मिल जाय वो मीठा शहद,
जो मिला था, माँ की लोरी, थपकियों और प्यार में//

//प्रेम पूजा, प्रेम ईश्वर, प्रेम के ही पंथ सब,
प्रेम ही कुरआन गीता बाइबिल के सार में//

//श्रम दिलों को जीतने में चाहिए उतना 'बली',
चाहिए जितना हमें निज अहं के संहार में//
पुन: बधाई।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 27, 2017 at 5:56pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. रामबली गुप्ता जी...
बधाई 

Comment by Ravi Shukla on September 27, 2017 at 12:58pm
आदरणीय रामबली जी हिंदी भाषा में अच्छी ग़ज़ल कही आपने इसके लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 27, 2017 at 12:17pm
वाहहहह रामबली गुप्ता जी विशुद्ध हिन्दी शब्दावली लेकर बहुत ही उत्कृष्ट ग़ज़ल कही है। बधाई।
Comment by Samar kabeer on September 27, 2017 at 10:24am
जनाब गुप्ता जी आदाब,
उर्दू के आलमी शुहरत याफ़्ता शाइर जनाब 'हफ़ीज़ मेरठी'ने कहा था:-
'अब खुल के कहो बात तो कुछ बात बनेगी
ये दौर-ए-इशारात-ओ-किनायात नहीं है'
Comment by Afroz 'sahr' on September 27, 2017 at 9:14am
जनाब रामबली जी बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बहुत बधाई आपको।
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on September 27, 2017 at 8:52am
जनाब राम बली साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 26, 2017 at 10:44pm
आदरणीय गुप्ता जी..बहुत बेहतरीन सार्थक ग़ज़ल कही है..सादर

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