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ग़ज़ल नूर की -दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है

२१२२,१२१२,२२ (११२)
.
दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है
तेरी यादों को पाल रक्खा है.
.
रोज़ मरता हूँ..और मरता हूँ 
फिर भी ख़ुद को सँभाल रक्खा है. 
.
यूँ तो अंजाम जानता हूँ मगर
एक सिक्का उछाल रक्खा है.
.
मैं तेरी शोख़ियाँ पकड़ लूँगा
मैंने आँखों में जाल रक्खा है.
.
तेरे मिलने तलक जुदाई का
फ़ैसला मैंने टाल रक्खा है. 
.
ख़ूब पीता हूँ..छक के पीता हूँ
ख़ुद का कितना ख़याल रक्खा है.
.
और सारा कुसूर अँधेरे का
रात ने दिन पे डाल रक्खा है.
.
देख नश्तर तुम्हारे हाथों में
“नूर” ने दिल निकाल रक्खा है.   
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on September 2, 2017 at 5:17pm

शुक्रिया आदरणीय समर सर... वो मुहावरा ही ऐसा है ..छक के खाया..छक के पीया.. अत: इसे ऐसे ही स्वीकार कर लिया मैंने.
सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on September 2, 2017 at 5:42am
आदरणीय निलेश जी आदाब, बेहतरीन, लाजवाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 1, 2017 at 11:00pm
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय..
Comment by ajay sharma on September 1, 2017 at 10:37pm

बहुत उम्दा

Comment by Gajendra shrotriya on September 1, 2017 at 9:21pm
//मैं तेरी शोख़ियाँ पकड़ लूँगा
मैंने आँखों में जाल रक्खा है//
वाह निलेश भाई!क्या कहने! मन बाँध लिया इस शेर ने। वाहह। बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको।
Comment by Mohammed Arif on September 1, 2017 at 5:28pm
आदरणीय निलेश जी आदाब, बेहतरीन, लाजवाब ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on September 1, 2017 at 4:52pm

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश जी | हार्दिक बधाई आपको |

Comment by Niraj Kumar on September 1, 2017 at 4:39pm

आदरणीय निलेश जी,

बेहतरीन ग़ज़ल हुई है.दाद के साथ मुबारकबाद.

सादर 

Comment by मेघा राठी on September 1, 2017 at 3:13pm
बहुत उम्दा
Comment by Samar kabeer on September 1, 2017 at 2:47pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
छटे शैर में ऐब-तनाफ़ुर देखिये 'छक के' ।

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